“देश में असहिष्णुता, सांप्रदायिक विभेद, कुछ विशेष समुदाय द्वारा की जा रही हिंसा और कानून को हाथ में लेती भीड़ से हमारे देश की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है। पिछले कई सालों से देश ‘डिस्टर्बिंग ट्रैंड्स’ का गवाह बना है।“ ये शब्द पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी के हैं जो उन्होंने जवाहर भवन में 24वें राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार समारोह के दौरान कहे। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी भी ठीक वैसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं जैसा कि मनमोहन सिंह जी के कार्यकाल के आखिरी वर्षों में बीजेपी ने उनकी सरकार के साथ किया था बस फर्क इतना है कि तत्कालीन यूपीए सरकार पर लगाये गये आरोपों की तुलना में एनडीए पर लगाये गये आरोपों में कोई वास्तविकता नहीं है या यूं कहें कि उनके पास कोई मुद्दा ही नहीं है। जब मुद्दे मिलने बंद हो गये तो विपक्ष ने खुद ही मुद्दे बनाना शुरू कर दिया और असहिष्णुता, सांप्रदायिक विभेद, ध्रुवीकरण जैसे मुद्दों द्वारा वर्तमान की सरकार पर हमले कर रही है हालांकि वो किसी भी आरोपों पर स्पष्टीकरण देने में विफल रही है। यहां तक कि हर आरोपों के साथ कांग्रेस का ही वास्तविक चेहरा जनता के सामने आया है। खैर, राहुल गांधी, कांग्रेस प्रवक्ता और अन्य वरिष्ठ नेताओं के बाद अब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी बीजेपी पर बिना आधार के आरोप लगाने की सूची में शामिल हो गये हैं।
कांग्रेस की अगुवाई वाली तत्कालीन यूपीए सरकार के आखिरी वर्षों में बीजेपी ने वास्तविक मुद्दों से हमला बोला था और एक-एक करके कांग्रेस का भ्रष्टाचार जनता के सामने आने लगा था। जितने जानदार तरीके से कांग्रेस की अगुवाई में तत्कालीन यूपीए सरकार ने देश की बागडोर संभाली थी, उतने ही जोरदार तरीके से जनता ने यूपीए सरकार को वर्ष 2014 में नकार दिया था। 2जी घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, कोयला घोटाले जैसे न जाने कितने घोटाले यूपीए सरकार के सामने आने लगे थे जिसे मुद्दा बनाकर उस दौरान बीजेपी ने कांग्रेस पर तीखे प्रहार किये थे। इसके अलावा तत्कालीन यूपीए सरकार ने कभी भ्रष्टाचार, महंगाई से पिछले कई सालों से जूझ रही जनता को खुलकर स्पष्टीकरण नहीं दिया था। हर सवाल के साथ कांग्रेस की चुपी बढ़ती गयी और नतीजतन जनता ने कांग्रेस को अपने जनादेश से सत्ता से उखाड़ फेंका। इसके बाद एनडीए की सरकार आयी और देश के विकास को फिर से ट्रैक पर लाने के लिए अपने काम शुरू कर दिया। कांग्रेस के विपरीत बीजेपी ने हर मोर्चे पर काम किया। भ्रष्टाचार को रोकने, आर्थिक व्यवस्था में सुधार करने की दिशा में काम शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री ने तब आश्वासन भी दिया था कि “न खाएंगे और न खाने देंगे” और इस नीति को अपनाते हुए मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई, काले धन पर लगाम लगाई, करदाताओं में वृद्धि हुई, आर्थिक व्यवस्था में सुधार हुआ और न जानें कितनी योजनाओं को लाया गया जिससे आम जनता को लाभ मिले। आम जनता से सरकार ने सीधा जुड़ना शुरू कर दिया। ऐसे में कांग्रेस के पास एनडीए सरकार पर हमला करने के लिए वास्तविक आरोप नहीं रहे।
कांग्रेस के पास बीजेपी पर निशाना साधने के लिए वास्तविक आरोपों की कमी हो गयी। न ही कोई बड़ा घोटाला न कोई भ्रष्टाचार ऐसे में कांग्रेस की हताशा बढ़ती गयी। ये हताशा इतनी बढ़ती गयी कि कांग्रेस ने कभी राहुल गांधी ने रफेल डील के बहाने मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये तो कभी मोदी सरकार के मंत्री पीयूष गोयल पर झूठे भ्रष्टाचार के आरोप लगाये लेकिन इन आरोपों को साबित करने में हमेशा ही कांग्रेस विफल रही। कांग्रेस जो मौजूदा सरकार पर असहिष्णुता, सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप लगा रही है जबकि इस तरह के असहिष्णुता और सांप्रदायिकता तो खुद कांग्रेस ने ही बढ़ावा दिया है। टाइम्स नाउ ने अपनी एक रिपोर्ट में इसका खुलासा भी किया था। टाइम्स नाउ को मिले पत्र में स्पष्ट रूप से ये उल्लेख किया गया था कि कांग्रेस पार्टी जिग्नेश मेवानी के माध्यम से पूरे भारत में योजनाबद्ध तरीके से दलित आंदोलन को वित्त पोषित किया था। चूंकि कांग्रेस के पास कोई वास्तविक मुद्दा नहीं है इसलिए अब वो खुद ही सत्ता के लिए देश की शांति को भंग करने में भी पीछे नहीं है और इससे वो एक और बनावटी मुद्दा लेकर मोदी सरकार पर हमले करने की साजिश को अंजाम दे सके। फिर भी हर बार कांग्रेस का झूठ, दिखावा, बनावटी आरोप सामने आते रहे हैं।