टाटा ग्रुप के पूर्व उद्योगपति और पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा ने एक इंटरव्यू के दौरान पीएम मोदी पर अपना विश्वास व्यक्त किया था। ये इंटरव्यू स्तंभकार और लेखक सुहेल सेठ ने लिया था। जब सुहेल ने रतन टाटा से पीएम मोदी को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा, देश के नागरिकों से किये अपने वादे के मुताबिक मोदी ‘न्यू इंडिया’ बनाने में सक्षम रहे हैं। एक घटना को साझा करते हुए उन्होंने कहा, जब पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने अपने वादे के मुताबिक मेरी मदद की थी। सिंगुर घटना के बाद जब रतन टाटा को अपनी फैक्ट्री पश्चिम बंगाल से हटानी थी तब मोदी जी ने सार्वजनिक तौर पर हमारा स्वागत किया था। मोदी ने हमें गुजरात बुलाया और अपने वादे के अनुसार महज तीन दिनों में फैक्ट्री के लिए जरूरी जमीन दे दी। हमें उम्मीद नहीं थी कि एक राजनेता से इतनी जल्दी जवाब मिलेगा। सरकारी स्तर पर इस तरह का निर्णय भारत में नहीं लिया जाता है। रतन टाटा के मुताबिक ये भारत में एक नई बात थी।
पीएम मोदी बिज़नस-फ्रेंडली कहे जाने से कभी शर्मिंदगी महसूस नहीं करते चाहे व्यापारिक लोगों से मिलने के लिए विपक्ष उनकी कितनी भी आलोचना करे। उनका मानना है कि एक मजबूत सरकार और व्यापारिक संबंध आर्थिक विकास के लिए अच्छा है यही वजह है कि सार्वजानिक तौर पर व्यापारिक लोगों से मिलना-जुलना कहीं से भी गलत नहीं लगता। किसी भी समझौते को छुपकर करना सही नहीं है। देश के विकास के लिए राजनेता और उद्योगपतियों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध आवश्यक है। जब से मोदी सरकार सत्ता में आयी है वो उद्योगपति बहुत खुश हैं जो नियम-आधारित अर्थव्यवस्था में विश्वास करते हैं जहां उन्हें अनुबंधों की पेशकश की जाती है, स्वस्थ प्रतियोगिता के आधार पर महत्व दिया जाता है, न की राजनेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंधो के आधार पर फायदा मिले। एयरटेल के सुनील मित्तल ने कहा था कि “वो अर्थ्व्यस्व्था को बढ़ाने, बाजार में वृद्धि, नियम और विनियमों को बनाये रखने के प्रयास कर रहे हैं। वास्तव में उनके प्रयास अर्थव्यवस्था में नियमों का पालन किये जाने की दिशा में है जिससे अर्थव्यवस्था समय के साथ और बेहतर हो।”
वहीं दूसरी तरफ, वीडियोकॉन ग्रुप के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत ने अपनी कंपनी को हो रहे घाटे के लिए पीएम मोदी को दोषी ठहराया था। ये वो व्यापारी होते हैं जिन्हें यूपीए सरकार में ‘सहचर पूँजीवाद’ (क्रोनी कैपिटलिजम) की आदत पड़ चुकी थी, जहां बिजनेस की कामयाबी सत्ता में बैठे लोगों से करीबी रिश्तों पर निर्भर करती थी। शानदार जीवनशैली के लिए विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लोगों द्वारा करदाताओं के पैसे बर्बाद किये जाते थे। मोदी सरकार द्वारा लाये गए इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी लॉ से एनपीए की समस्या हल हुई जो कुछ उद्योगपतियों को रास नहीं आया क्योंकि नियमों के आधार पर चलना ही नहीं चाहते हैं। वो दौर जहां ‘फैबियन समाजवाद’ था जहां मुनाफे को बुरा माना जाता था वो बीत चुका है। नेहरूवादी समाजवाद युग जहां व्यापारियों और मुनाफे को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था अब वो बदल चुका है।
आधुनिक भारतीय अर्थव्यस्था 1990 के दशक के ‘नेहरूवादी समाजवाद’ से काफी दूर जा चुका है और अब वो धीरे धीरे उदारीकरण युग के ‘लांछित पूंजीवाद’ से बाहर निकल रहा है। मोदी सरकार नियम आधारित और स्वस्थ प्रतियोगिता वाली अर्थव्यवस्था बनाने की कोशिश कर रही है जहां मुनाफे को बुरा नहीं माना जाता लेकिन यदि कंपनी को कोई मुनाफा नहीं हो रहा और वो कर्ज चुका पाने में सक्षम नहीं है तो कंपनी को दंडित किया जायेगा। हाल ही में प्रधानमंत्री ने लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, “हम वो लोग नहीं हैं जो उद्योगपतियों के बगल में खड़े रहने से डरते हैं क्योंकि हमारे इरादें ईमानदार हैं।” उन्होंने आगे कहा, कुछ लोगों को आपने देखा होगा कि वो उद्योगपति के साथ खड़े होने से डरते हैं, जिन लोगों को सार्वजनिक तौर पर नहीं मिलना वो परदे के पीछे सौदेबाजी करते हैं और ऐसे लोग ही डरते हैं।” उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि उद्योगपति देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
किसी भी सरकार को उद्योगपतियों पर दबाव नहीं डालना चाहिए क्योंकि वो अर्थव्यवस्था के स्तंभ हैं। उद्योगपतियों से खुलकर बातचीत करने में किसी को भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए और इस डर से कि सार्वजनिक तौर पर मिलने पर संदेह के घेरे में होंगे परदे के पीछे सौदेबाजी करते हैं, ये पूरी तरह से गलत है। कांग्रेस के नेता यही करते आये हैं और परिणामस्वरुप सीडब्ल्यूजी, आदर्श, 2 जी स्पेक्ट्रम जैसे कई घोटाले हुए। अर्थव्यस्था की मजबूती के लिए उद्योगपतियों और राजनेताओं दोनों को साथ मिलकर पारदर्शिता के साथ काम करना होगा और पीएम मोदी इस तथ्य को अच्छी तरह से समझते हैं यही वजह है कि यूपीए सरकार के विपरीत मोदी सरकार स्वस्थ प्रतियोगिता पर विश्वास करती है।