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पत्रकार ने किया खुलासा, मनमोहन सिंह की झाड़ पर प्रणय रॉय ने गिरा दी थी खबर

TFI Desk द्वारा TFI Desk
19 September 2018
in मत
एनडीटीवी पत्रकार
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पीएम मोदी जबसे सत्ता में आये हैं तबसे उनके हर कदम पर मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है, ये ‘अघोषित इमरजेंसी’ है जैसे शब्द अक्सर ही सोशल मीडिया, टीवी न्यूज़ सुनने और देखने को मिलते हैं। हालांकि, इस बीच एनडीटीवी के पूर्व पत्रकार समरेंद्र सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट पर पूर्व की मनमोहन सरकार को लेकर कुछ ऐसा खुलासा किया है जिसने अब यूपीए सरकार और एनडीटीवी पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ये सवाल हैं कि क्या वास्तव में मोदी के शासन में मीडिया पर दबाव बनाया जा रहा है, क्या उन्हें सिर्फ वही खबरें दिखाने के लिए कहा जा रहा है जो मौजूदा सरकार के पक्ष में हो? या इसके पीछे की कहानी कुछ और ही है?

एनडीटीवी के पूर्व पत्रकार समरेंद्र सिंह अपने एक पोस्ट में बताया है कि किस तरह से 2005 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मनमोहन सिंह ने एनडीटीवी को झाड़ लगाई थी क्योंकि तब ये न्यूज़ चैनल मनमोहन सरकार के मंत्रियों की रिपोर्ट कार्ड तैयार करने का विचार कर रहा था जिसमें अच्छे और खराब मंत्री के प्रदर्शन को भी चिन्हित किया जाना था लेकिन इस खबर के प्रसारित होने से पहले ही उदार पूर्व प्रधानमंत्री ने एनडीटीवी को सिर्फ अच्छे मंत्रियों की सूची प्रसारित करने के लिए दबाव बनाया था और एनडीटीवी ने दबाव में सिर्फ वही खबर दिखाई जिसका आदेश मिला तब इस न्यूज़ चैनल ने ‘अघोषित इमरजेंसी’ का राग नहीं अलापा था।

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एनडीटीवी के पूर्व पत्रकार समरेंद्र सिंह ने अपनी पोस्ट में लिखा, “इन दिनों टीवी के दो बड़े पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी और रवीश कुमार अक्सर ये कहते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की तरफ से चैनल के मालिकों और संपादकों के पास फोन आता है और अघोषित सेंसरशिप लगी हुई है। सेंसरशिप बड़ी बात है। जिस हिसाब से सरकार के खिलाफ खबरें आ रही हैं उनसे इतना स्पष्ट है कि सेंसरशिप जैसी बात बेबुनियाद है।”

उन्होंने आगे कहा, “हां ये जरूर है कि ऐसा स्वच्छंद माहौल नहीं है कि आप प्रधानमंत्री के खिलाफ जो चाहे वह छाप दें और सत्तापक्ष से कोई प्रतिक्रिया नहीं हो। लेकिन यहां सवाल ये है कि क्या ऐसा स्वच्छंद माहौल पहले भी था? क्या पहले वाकई ऐसा था कि पीएमओ की तरफ से कभी किसी संपादक या फिर मीडिया संस्थान के मालिक को फोन नहीं किया जाता था और उन्हें जो चाहे वह छापने की आजादी थी? चैनल पर सरकार विरोधी “भाषण” देने की खुली छूट थी? सरकार विरोधी “एजेंडा” चलाने की पूरी आजादी थी?”

समरेंद्र सिंह ने अपनी पोस्ट में उस दौरान की घटना का जिक्र भी किया है और आगे लिखा, “यहां मैं आपको एक तेरह साल पुराना किस्सा सुनाता हूं। ये किस्सा उसी संस्थान से जुड़ा है जहां रवीश कुमार काम करते हैं। उन दिनों मैं भी एनडीटीवी इंडिया में ही हुआ करता था और उन्हीं दिनों केंद्र में आजादी के बाद से अब तक के सबसे “उदार और कमजोर” प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का शासन था। दान में मिली कुर्सी पर बैठकर मनमोहन सिंह भी गठबंधन सरकार पूरी उदारता से चला रहे थे। तो सत्ता और पत्रकारिता के उस “सर्णिम काल” में, एनडीटीवी के क्रांतिकारी पत्रकारों को अचानक ख्याल आया कि क्यों नहीं मनमोहन सरकार के मंत्रियों की रिपोर्ट कार्ड तैयार की जाए और अच्छे और खराब मंत्री चिन्हित किए जाएं। एनडीटीवी ने इस क्रांतिकारी विचार पर अमल कर दिया। एनडीटीवी इंडिया पर रात 9 बजे के बुलेटिन में अच्छे और बुरे मंत्रियों की सूची प्रसारित कर दी गई।

उसके बाद का बुलेटिन मेरे जिम्मे था तो संपादक दिबांग का फोन आया कि बुरे मंत्रियों की सूची गिरा दो। मैंने कहा कि सर, अच्छे मंत्रियों की सूची भी गिरा देते हैं वरना यह तो चाटूकारिता लगेगी। उन्होंने कहा कि बात सही है।।। रुको, रॉय (डॉ प्रणय रॉय, चैनल के मालिक) से पूछ कर बताता हूं। थोड़ी देर बाद दिबांग का फोन आया कि वो (डॉ रॉय) अच्छे मंत्रियों की लिस्ट चलाने को कह रहे हैं। मैंने बुरे मंत्रियों की सूची गिरा दी और अच्छे मंत्रियों की सूची चला दी।

करीब नौ साल बाद 2014 में जब मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब “द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर” बाजार में आयी तो पता चला कि आखिर डॉ प्रणय रॉय ने ऐसा क्यों किया था। पेज नंबर 97 पर संजय बारू ने बताया है कि अब तक के सबसे अधिक उदार और कमजोर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फोन करके एनडीटीवी के ताकतवर पत्रकार मालिक डॉ प्रणय रॉय को ऐसी झाड़ पिलाई कि उनकी सारी पत्रकारिता धरी की धरी रह गई। खुद प्रणय रॉय के मुताबिक मनमोहन सिंह ने उन्हें कुछ ऐसे झाड़ा था जैसे कोई टीचर किसी छात्र को झाड़ता है। मनमोहन सिंह से मिली झाड़ के बाद महान पत्रकार/मालिक प्रणय रॉय इतना भी साहस नहीं जुटा सके कि अपनी रिपोर्ट कार्ड पूरी तरह गिरा सकें। अच्छे मंत्रियों की सूची सिर्फ इसलिए चलाई गई ताकि मनमोहन सिंह की नाराजगी दूर की जा सके। आप इसे पत्रकार से कारोबारी बने डॉ प्रणय रॉय की मजबूरी कह सकते हैं, सरकार की चाटूकारिता कह सकते हैं या जो मन में आए वह कह सकते हैं, लेकिन इसे किसी भी नजरिए से पत्रकारिता नहीं कह सकते।”

समरेंद्र सिंह ने जिस घटना का अपनी पोस्ट में जिक्र किया है उसका उल्लेख साल 2014 में मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब “द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर” में भी है।

एनडीटीवी

एनडीटीवी जो आज पीएम मोदी की सरकार में मीडिया की स्वतंत्रता पर खतरे का रोना रो रही है वही न्यूज़ चैनल साल 2005 में शांत था तब इसने शोर नहीं मचाया कि मौजूदा सरकार पत्रकारिता पर दबाव बना रही है और न ही ‘अघोषित इमरजेंसी’ का रोना रोया। ये दर्शाता है कि शायद आज के दौरे में बड़े बड़े पत्रकार भी बड़े सियासी खेल का हिस्सा बन चुके हैं जिसका समाज पर आज बुरा असर पड़ रहा और ये आने वाले समय में देश और जनता दोनों के लिए बुरे संकेत है।

Tags: एनडीटीवीकांग्रेसडॉ मनमोहन सिंहपत्रकार
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