सत्ता पाने के लिए कांग्रेस ने चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे तो कर दिए लेकिन अब उसके सामने सबसे बड़ी समस्या उन वादों को पूरा करने की है। चुनाव से पहले कांग्रेस ने सत्ता हासिल करने के लिए इन तीनों राज्यों में एक से बढ़कर एक वादे किए थे। इन वादों में कांग्रेस ने बिना सोचे-समझे तीनों राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़) में कर्जमाफी समेत तमाम वादे तो कर दिए लेकिन अब सत्ता में आने के बाद उसे महसूस होने लगा है कि हम अपने हवा-हवाई वादों में फंस चुके हैं। कांग्रेस अपने हवा-हवाई वादों में किस तरह से फंस चुकी है, इसके लिए बहुत बड़ी गणित समझने की जरुरत नहीं है। बस थोड़ा सा ध्यान देने से ही इसे आसानी से समझा जा सकता है। आइए हम आपको बहुत सरल ढंग से समझाते हैं कि कांग्रेस किस तरह से अपने ही घोषणापत्र के ‘लिखित’ वादों में फंस चुकी ही…
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में मध्य प्रदेश के 81 लाख किसानों के 2 लाख रुपये तक की कर्जमाफी की घोषणा की थी। इसके अलावा उसने हर महीने 10 हजार रुपये तक बेरोजगारी भत्ता देने का वादा भी किया था। मध्य प्रदेश में छोटे किसानों की बेटियों की शादी में 51 हजार रुपये तक की आर्थिक सहायता राशि देने का भी वादा किया था। यही नहीं कांग्रेस ने किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा बढ़ाए जाने और स्वयं सहायक समूह की महिलाओं की कर्जमाफी करने जैसे वादे भी किए थे।
ऐसे ही मिलते-जुलते ढेरों वादे कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी किए थे। राजस्थान में कांग्रेस ने हर परिवार से एक युवक को 3,500 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था। इसके अलावा कांग्रेस ने बिजली के बिल भी माफ करने के वादे किए थे।
इस तरह से कांग्रेस ने बड़े-बड़े वादों का ढिंढोरा पीटकर सत्ता तो हासिल कर लिया लेकिन अब सत्ता में आने के बाद उसे आभास होने लगा है कि शायद उसने जनता से बहुत बड़े-बड़े वादे कर दिए हैं। अब कांग्रेस की हालत खस्ता हो चली है क्योंकि वो उन वादों को पूरा करने में शायद सक्षम नहीं है।
दरअसल, किसानों के कर्जमाफ करने के लिए कांग्रेस को केवल मध्य प्रदेश में ही 36,000 करोड़ रुपये की जरुरत होगी। जबकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किसानों की कर्जमाफी में क्रमश: 18,000 और 6,100 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। आलम ये है कि मध्य प्रदेश में केवल किसानों की कर्जमाफी में ही राज्य का 20 प्रतिशत बजट खर्च हो जाएगा। जबकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी ये आकड़ा क्रमश: 15 प्रतिशत और 10 प्रतिशत तक हो जाएगा। आपको जनकारी के लिए बता दें कि 2018-19 के बजट में से पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पहले से ही जनहित में 50 से 70 प्रतिशत धनराशि खर्च कर चुकी है।
इसका मतलब अब अगले वित्तवर्ष में सरकार के पास इतनी धनराशि नहीं है कि वो अपने हवा-हवाई वादों को पूरा कर सके। अब ऐसे में सवाल उठते हैं कि जब कांग्रेस केवल किसानों की ही कर्जमाफी करने में सक्षम नहीं है तो फिर बाकी के बेरोजगारी भत्ता, गरीब किसानों की बेटियों की शादी में पैसे और बिजली के बिल माफ करने जैसे वादों को भला कैसे पूरा कर पाएगी। छत्तीसगढ़ के वित्त विभाग के एक ऑफिसर ने कहा,“कुछ वादों को पूरे करने का समय अगले वित्तवर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। इसका निर्णय सरकार लेगी।”
मध्यप्रदेश के वित्त विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा,“अगर सरकार अपने वादों को पूरा करना चाहती है तो उसके पास केवल एक ही विकल्प बचा है कि वो बाजार से कर्ज ले।”बता दें कि मध्यप्रदेश के पास कुल 60,000 करोड़ रुपये तक कर्ज़ लेने की क्षमता है। जिसमें से मध्य प्रदेश सरकार पहले से ही 50,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ ले चुकी है। इसका मतलब मध्य प्रदेश सरकार अब बहुत थोड़ी सी राशि ही कर्ज़ ले सकती है। इसके अलावा अगर एमपी सरकार कर्ज लेती है तो धीरे-धीरे वो कर्ज के जाल में भी फंस जाएगी।
राजस्थान की बात की जाए तो वहां पर पिछले वित्तवर्ष में ही सरकार का राजकोषीय घाटा 3.01 प्रतिशत था। यानी ये घाटा पहले से ही 3 प्रतिशत की लिमिट पार कर चुका है। राज्य के कर्ज़ लेने की सीमा 36,000 करोड़ रुपये है। यहां पर भी सरकार ने पहले से ही 25,000 करोड़ रुपये कर्ज़ ले चुके हैं।
ये सारी स्थितियां और आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस द्वारा किए गए हवा-हवाई वादों को पूरा किया जाना इतना आसान नहीं हैं। कांग्रेस ने सत्ता पाने के लिए वादों की बौछार तो कर दी था लेकिन उस समय उसने पलटकर एक बार भी नहीं सोचा कि, इन वादों को पूरे करने के लिए हमारी सरकार के पास पैसे आखिर कहां से आएंगे। अब कांग्रेस अपने हवा-हवाई वादों को पूरा करने के लिए जनता पर नाना प्रकार के टैक्स बढ़ाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।