देश की स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में पिछले चार सालों में पहले से सुधार आया है। शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत देश के सबसे बड़े गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ के वार्षिक सर्वेक्षण ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (असर) – 2018 की रिपोर्ट में ये सामने आया है। ये रिपोर्ट देश के 596 जिलों के 17,730 गांव के 50 लाख 46 हजार 527 छात्रों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। सालों से देश की शिक्षा व्यवस्था सुस्त और पिछड़ी रही है लेकीन मोदी सरकार के प्रयासों से इसमें 2.2 फीसदी का सुधार देखा गया है। हालांकि, ये सुधार बहुत कम है लेकिन आने वाले सालों में और बड़ा अंतर देखने को मिल सकता है। ये फर्क प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों की वजह से ही आया है। ये आकंडे और भी बेहतर होते अगर पिछली सरकारों ने अयोग्य शिक्षकों की भर्ती सरकारी स्कूलों में न की होती। इसी के खिलाफ जब पीएम मोदी और यूपी की योगी सरकार कदम उठा रही है तो विपक्ष इसपर भी सरकार की आलोचना कर रहा है। ऐसा लगता है कि जानबूझकर पिछली सरकारों ने कभी शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने का प्रयास ही नहीं किया।
असर की रिपोर्ट के मुताबिक, पांचवीं कक्षा में 50.3 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा के लिए तैयार किए गए पाठ को पढ़ सकते हैं लेकिन साल 2014 में यही आंकड़ा 48.1 फीसदी था। इससे साफ़ है कि पिछले चार सालों में 2.2 फीसदी का सुधार हुआ है। ये साबित करता है कि स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं की शिक्षा में सुधार आया है। वहीं उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य ने इस स्तर पर काफी बेहतर प्रदर्शन किया है। उत्तर प्रदेश में 7.3 फीसदी एवं उत्तराखंड में 3.7 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। वहीं यूपी के सरकारी स्कूलों न सिर्फ सुविधायें बढ़ी हैं बल्कि बच्चों की हाजिरी में भी 4% का सुधार देखा गया है। वहीं यूपी के निजी स्कूलों में नामांकन में कमी देखने को मिली है। साल 2018 में 49.7% बच्चे पहुंचे निजी स्कूल जबकि 2016 में 52.1 फीसदी बच्चों ने प्राइवेट स्कूल में एडमिशन लिया था। यही नहीं यहां हिंदी पढने की हिंदी पढ़ने की क्षमता राष्ट्रीय औसत से 5 से 9 प्रतिशत ज्यादा देखा गया। इसके साथ ही गणित की पढ़ाई बेहतर देखी गयी। सालों से सपा और बसपा ने उत्तर प्रदेश पर शासन किया लेकिन इनमें से किसी भी सरकार ने बच्चों की शिक्षा में विकास के लिए उचित शिक्षक या व्यवस्था पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। यही अन्हीं शिक्षकों की भर्ती में भारी घोटाला किया गया जिससे धीरे धीरे सरकारी स्कूल बदहाली की ओर अग्रसर होते गये। इसके बाद योगी सरकार ने साल 2017 में यूपी की बागडोर संभालने के बाद शिक्षा के स्तर न सिर्फ सुधार के लिए कदम उठाये बल्कि अयोग्य शिक्षकों पर कार्रवाई भी शुरू की। उन्होंने साफ़ कहा, “बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं, अयोग्य नहीं बनेंगे शिक्षक.”
इसके अलावा बच्चों को मिड-डे-मील देने वाले स्कूलों में भी बढ़ोतरी देखी गयी है जो साल 2010 में 84.6 फीसदी थे उनकी संख्या साल 2014 में बढ़कर 85.1 फीसदी पहुंच गई और साल 2018 में ये बढ़कर 87.1% हो गया। यही नहीं गर्ल्स टॉयलेट में भी बढ़ोतरी देखी गयी है। इसका वादा प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2014 को स्वतंत्रता दिवस पर किया भी था और कहा था कि “मैं इसकी शुरुआत आज से करना चाहता हूं. देश के सभी स्कूलों में लड़कियों के लिए अगल टॉयलेट की व्यवस्था होनी चाहिए। इस लक्ष्य को राज्य सरकारों की मदद से एक साल के भीतर पूरा करना है. अगले साल 15 अगस्त को हम उस स्थिति में हों, कि हम कह सकें कि देश में ऐसे एक भी स्कूल नहीं है, जहां लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है।” उन्होंने अपने वादे पर के मुतबिक काम भी किया और नतीजे सामने हैं। साल 2010 में 32.9 फीसदी स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग टॉयलेट की व्यवस्था थी जो साल 2018 में 66.4 फीसदी हो गयी है।
यही नहीं रिपोर्ट में कक्षा 2 और पांच के बच्चों द्वारा साधारण से पाठ न पढ़ पाना शिक्षा के उस स्तर को भी दर्शाता है जिसे कांग्रेस ने शायद कभी उंचा उठने ही नहीं दिया। हालांकि, अब धीरे धीरे इसमें सुधार हो रहा है। इसी का नतीजा है कि साल 2008 में आठवीं कक्षा के 84.4 फीसदी कक्षा दो की किताब बमुश्किल पढ़ पाते थे लेकिन साल 2018 में ये संख्या गिरकर 72.8 फीसदी तक पहुंच सकी है। किसी भी देश का विकास में शिक्षा की अहम भूमिका होती है। देश के भविष्य के साथ इस तरह का खिलवाड़ किया जाता रहा लेकिन जब अयोग्य पाये जानेवाले शिक्षकों के खिलाफ मोदी सरकार ने कार्रवाई शुरू की तब एक एक करके अयोग्य शिक्षकों की नियक्ति सामने आने लगी लेकिन विपक्ष इसका भी विरोध करता नजर आया कि बेरोजगार किया जा रहा है लेकिन एक ऐसे अयोग्य व्यक्ति को ऐसी नौकरी देना जिसकी उसे समझ ही नहीं कहां तक उचित है? कांग्रेस ने अपने शासनकाल में यही किया है जिस वजह से आजादी के सालों बाद भी सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर बहुत ही निम्न रहा। ये तो केंद्र की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार के प्रयासों की वजह से ही अब सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है।