कल यानी 1 फरवरी को केन्द्र सरकार अंतरिम बजट पेश करेगी। यह अंतरिम बजट कई मायनों में खास हो सकता है। इस बजट में किसानों का खास ख्याल रखे जाने उम्मीद है। इस बार के बजट में मोदी सरकार कर्जमाफी की योजना से बेहतर और स्थाई समाधान दे सकती है।
मोदी सरकार एक फरवरी को पेश होने वाले अंतरिम बजट में गरीबों के लिए न्यूनतम आय योजना की घोषणा कर सकती है। हालांकि, जानकारों का मानना है कि इससे देश पर कम से कम 1500 अरब रुपये का बोझ पड़ सकता है लेकिन उनका भी मानना है कि यह योजना किसान कर्ज माफी की योजना से कहीं बेहतर विकल्प साबित होगी। साथ ही अन्य खर्चों में कटौती के जरिये नुकसान की भरपाई की कोशिश की जाएगी। बता दें कि अभी फूड सब्सिडी के तौर पर हर साल सरकार 1,69,323 करोड़ रुपये खर्च करती है। इसके अलावा मनरेगा पर भी प्रति वर्ष 55 हजार करोड़ रुपये का खर्च आता है।
इस बारे में एक घरेलू रेटिंग एजेंसी ने यह अनुमान लगाया है। एजेंसी ने कहा है कि विपक्षी दल कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव के अपने घोषणा पत्र में कई लुभावनी योजनाओं का वादा कर सकती है। इसके बाद एजेंसी ने इस बात की उम्मीद जताई कि आगामी बजट में केन्द्र सरकार राहुल गांधी के इन लुभावनी योजनाओं का काउंटर करने के लिए ऐसी योजनाएं ला सकती है। हालांकि, वास्तविक सच ये है कि राहुल गांधी से पहले एनडीए सरकार थी जो यूबीआई का आईडिया लेकर आई थी।
इसके अलावा एजेंसी की तरफ से यह भी कहा गया है कि केंद्र की ओर से प्रायोजित न्यूनतम आय योजना किसान ऋण माफी से ज्यादा अच्छा विकल्प है। साथ ही एजेंसी ने कहा कि तेलंगाना की रयथू बंधु योजना की तर्ज पर सरकार 2019-20 के लिए अंतरिम बजट में किसानों के लिए राहत पैकेज की घोषणा कर सकती है। आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुये केंद्र और राज्य सरकार दोनों का बजट किसानों के संकट को दूर करने के उपायों पर आधारित होगा।
एक आंकलन के बाद एजेंसी ने कहा कि अगर अंतरिम बजट में छोटे और सीमांत किसानों को हर साल 8,000 रुपये प्रति एकड़ की राशि दी जाती है। ऐसे में इस योजना के तहत औसत आधार पर प्रतिवर्ष एक सीमांत किसान को 7,515 रुपये और एक छोटे किसान को 27,942 रुपये मिलेंगे। एजेंसी ने कहा, “यह आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में प्रस्तावित गरीबों के लिए न्यूनतम आय योजना के तहत प्रस्तावित राशि के स्तर काफी कम हैं। इस योजना से केंद्र पर 1468 अरब रुपये यानी जीडीपी के 0.70 प्रतिशत का बोझ पड़ेगा।”
हालांकि एजेंसी ने इस बात की ओर भी संकेत दिए कि अगर यह योजना केंद्र प्रायोजित होती है तो ये बोझ केंद्र और राज्यों के बीच बंट जाएगा यानी इससे अकेले केन्द्र सरकार पर बोझ नहीं पड़ेगा। इस योजना के बाद अगर ऐसा होता है तो केंद्र को जीडीपी के 0.43 प्रतिशत के बराबर हिस्से का वहन करना होगा बाकी 0.27 प्रतिशत का बोझ राज्यों को वहन करना होगा।
ऐसे में अगर केन्द्र सरकार यह योजना शुरू कर देती है तो इससे किसनों के लिए बहुत हद तक राहत मिल सकती है। अब देखना यह होगा कि कल जब वित्तमंत्री बजट पेश कर रहे होंगे तो उनके बजट में जनता के लिए क्या होगा और वह किसानों के लिए कौन सी सौगात लाएंगे।