सत्ता में बने रहने का लालच कांग्रेस से जो न करा दे, कम ही है। ऐसा ही एक बार फिर से सामने आया है। बसपा सुप्रीमों मायावती ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में भारत बंद के दौरान हुए उपद्रव में कथित दलितों के ऊपर हए मुकदमें वापस लेने का दबाव बनाया है। मायावती का कहना है कि अगर कांग्रेस दलितों पर हुए मुकदमों को वापस नहीं लेती तो उनकी पार्टी राजस्थान और मध्यप्रदेश में इस पारिवारिक पार्टी को दिए अपने समर्थन को वापस लेगी। इतने में कांग्रेस के हाथ पांव फूल गये। मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने तो पिछले 15 सालों में नेताओं, पार्टी कार्यकर्ताओं और अन्य पर दर्ज किए गए राजनीतिक मुकदमे वापस लेने की घोषणा तक कर दी। वहीं, राजस्थान में कांग्रेस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मायावती की मांग पर समीक्षा करने की बात कही। मतलब की साफ़ है देश की सबसे पुरानी पार्टी मायावती की राजनीतिक ब्लैकमेलिंग के आगे झुक गयी है।
इस मामले पर मध्य प्रदेश के कानून मंत्री पीसी शर्मा ने कहा है कि “एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ 2 अप्रैल 2018 को हुए भारत बंद आंदोलन के तहत जिन लोगों पर मामले दर्ज किए गए थे, सरकार ने उन्हें वापस लेने का फैसला किया है। इसी तरह पिछले 15 सालों में जितने भी राजनीतिक मामले दर्ज किए गए हैं वो सभी वापस लिए जायेंगे।“ बिना मामलों की जांच किये ही मामलों को वापस लेने की बात कह दी गयी भले ही वो दोषी ही क्यों न हो। बता दें कि भारत बंद के दौरान हिंसा फैलाने के आरोप में बीएसपी के जिलाध्यक्ष कमल गौतम को गिरफ्तार किया था वहीं, यूपी के मुजफ्फरनगर में बसपा जिलाध्यक्ष को गिरफ्तार किया गया था। मतलब की साफ़ हो मायावती के बयान के विपरीत देश में दलित संगठनों द्वारा किये गये विरोध प्रदर्शन को भड़काने का काम बसपा के नेताओं न भी किया था।
वहीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कल यानी मंगलवार को कहा कि उनकी सरकार 2 अप्रैल 2018 को आयोजित ‘भारत बंद‘ के सिलसिले में दलित समुदाय के लोगों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की समीक्षा करेगी। इन मामलों को वापस लिए जाने की बीएसपी प्रमुख मायावती की मांग पर गहलोत ने कहा कि यह मांग स्वाभाविक है और इसकी समीक्षा की जाएगी।
गहलोत ने कहा, “मायावती की मांग स्वाभाविक है। दलितों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए और उनमें से कितने दोषी हैं यह जांच का मामला है। कई बार निर्दोषों के खिलाफ भी मामले हो जाते हैं। वह अपनी सोच में सही हो सकती हैं और सरकार इस पर विचार करते हुए मामलों की वरीयता के आधार पर समीक्षा करेगी।” गहलोत का यह बयान बताता है कि कांग्रेस कुर्सी बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकती है। वह किसी को भी रिहा कर सकती है।
बता दें कि बीएसपी प्रमुख मायावती ने सोमवार को कहा था कि अगर दो अप्रैल 2018 को हुए ‘भारत बंद’ के सिलसिले में ‘निर्दोष’ लोगों के खिलाफ दर्ज मामले वापस नहीं लिए गए तो उनकी पार्टी मध्य प्रदेश और राजस्थान की कांग्रेस सरकारों को बाहर से दिए जा रहे समर्थन पर ‘पुनर्विचार’ करेगी।
मायावती की ये शर्त खुलेआम कांग्रेस को ब्लैकमेल करने जैसी है। गिनी चुनी सीटें देकर बीएसपी कांग्रेस को ब्लैकमेल करने में लगी है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ब्लैकमेल होने के लिए तैयार है।
गौरतलब है कि, राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 99 विधायक हैं और चुनाव पूर्व सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल का एक विधायक है। इसके अलावा बसपा के छह विधायक व 13 निर्दलीय सदस्य हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए कम से कम 116 विधायकों की जरूरत होती है लेकिन कांग्रेस के पास सिर्फ 114 विधायक हैं। कांग्रेस को बसपा के 2, सपा का 1 और 4 निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिला। इस समर्थन क बाद ही वो सरकार बनाने में सफल हो सकी।
मायावती की ब्लैकमेलिंग से मध्य प्रदेश 15 सालों के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस को अब सत्ता से जाने का इतना डर लगा जिसके बाद पार्टी ने बिना देरी किये मायावती की मांग को स्वीकार कर लिया। तभी तो राजस्थान में गहलोत ने इस मामले की समीक्षा की बात कही है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा ने अपने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल न करने का निर्णय लिया है। जिसे लेकर कांग्रेस परेशान है। कांग्रेस इस जद्दोजहद में लगी है कि किसी तरह से वह सपा-बसपा गठबंधन में शामिल हो जाए। इसके लिए कांग्रेस कुछ भी करने को तैयार है। अब बसपा को लेकर कांग्रेस कोई कोताही नहीं बरतना चाहती है। उन्होंने राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस को समर्थन देकर कांग्रेस की नब्ज पकड़ ली है। ऐसे में स्पष्ट रूप से अब बसपा कांग्रेस को अपनी उंगलियों पर नचा रही है। यहां ध्यान देने वाली बात तो ये भी है कभी भाजपा पर गैर-जिम्मेदाराना और अलोकतांत्रिक आचरण का आरोप लगाने वाली कांग्रेस आज सपा की हर बात मान रही है और इसे राजनीतिक ब्लैकमेलिंग का नाम भी नहीं दे रही है।