कुछ ही दिनों बाद लोकतंत्र का महाकुंभ यानी 2019 के लोकसभा चुनाव आने वाले हैं। यह चुनाव अगले पांच साल का देश का भविष्य तय करेंगे। इस चुनाव में वोटर किसी भी पार्टी के लिए भगवान से कम नहीं है। हर राजनीतिक पार्टी किसी भी तरह से जनता को अपने पक्ष में करने का जतन कर रही है। यह अलग बात है कि, कोई विकास के सहारे जनता को लुभा रही है, तो कोई प्रलोभन तो कोई पार्टी तुष्टिकरण में ही लगी है। चुनावों के चलते एक-दूसरे को बदनाम करने के लिए फेक न्यूज का कारोबार भी जोरों पर है। लेफ्ट-लिबरल पत्रकारिता संस्थान अपने-अपने स्वार्थ की पत्रकारिता करने में व्यस्त हैं। ऐसे में जनता के सामने सही नेता और सही पार्टी का चुनाव करना किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक बड़ी जिम्मेदारी हाथ में ली है। आरएसएस के कार्यकर्ता आम चुनावों को लेकर जनता को जागरूक करने जा रहे हैं। आरएसएस का यह जागरुकता अभियान काफी बड़े पैमाने पर होगा। इसमें आरएसएस के स्वयंसेवक 100 फीसदी मतदान के लिए लोगों को जागरूक करेंगे। इस जागरुकता अभियान में विशेष तौर से आरएसएस लोगों को नोटा का इस्तेमाल नहीं करने के बारे में बताएगा।
दरअसल, नोटा बीजेपी के लिए एक बड़ी मुसीबत बना हुआ है। विधानसभा चुनावों में नोटा की वजह से बीजेपी को काफी नुकसान हुआ था। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी नेताओं ने हार के पीछे नोटा को जिम्मेदार बताया था। जिस बात को बीजेपी अभी समझी है उसे आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत पहले ही समझ चुके थे। 3 राज्यों के चुनाव से पहले ही वे नोटा का विरोध कर रहे थे। अब लोकसभा चुनाव में मोहन भागवत और उनके स्वयंसेवक NOTA के लिए लोगों को NO कहना सिखाएंगे। बता दें कि, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे के मौके पर दिए अपने भाषण में दो अहम मुद्दे उठाए थे। पहला उन्होंने राम मंदिर के लिए कानून बनाने की मांग की और दूसरा उन्होंने लोगों से चुनाव में नोटा ना चुनने की बात कही थी। संघ अब विशेष रूप से इसी मुद्दे को लेकर मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है। संगठन के कार्यकर्ता नोटा के दुष्परिणामों के बारे में देश की जनता को बताने वाले हैं।
हाल ही में हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद संघ को फीडबैक मिला है कि, नोटा के इस्तेमाल की वजह से बीजेपी को काफी नुकसान हुआ है। संघ के कई स्वयंसेवक इस बात को मानते हैं कि, मध्यप्रदेश में बीजेपी को कांग्रेस ने नहीं बल्कि नोटा ने हराया। इसी स्थिति को देखते हुए आरएसएस प्रमुख ने सौ प्रतिशत मतदान के साथ नोटा के विरोध में प्रचार का भी फैसला लिया है। पिछले चुनाव परिणामों को देखें तो नोटा से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को ही होना है।
हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश विधानसभा की 10 सीटें ऐसी रहीं, जहां जीत और हार का अंतर 1,000 वोट से भी कम रहा। बेहद ही करीबी मुकाबले वाली इन 10 सीटों में से सिर्फ 3 पर ही भाजपा की जीत हुई है और बाकी 7 सीटों पर कांग्रेस विजयी रही। भाजपा को जिन सीटों पर 1000 से कम वोट के अंतर से कांग्रेस ने हराया उन सभी सीटों पर नोटा को दिए गए वोट भाजपा और कांग्रेस के बीच हार के अंतर से ज्यादा थे। जिन सात सीटों पर कांग्रेस के हाथों भाजपा को केवल 1000 से कम वोटों से हार का सामना करना पड़ा है, अगर हम उन सभी सीटों पर हार और जीत के आंकड़ों को जोड़ लें तो यह कुल 4,337 वोट बैठता है। यानी, भाजपा को अगर 4,337 वोट और मिल जाते तो उसे ये सातों सीटें भी मील जाती और यह पार्टी बहुमत के लिए जरूरी 116 सीटों के जादुई आंकड़े को छू लेती। ऐसा होता तो लगातार 4 बार मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड शिवराज सिंह के नाम हो जाता। मध्यप्रदेश में मामला कितना करीबी था, उसे इस बात से ही समझा जा सकता है कि, यहां 18 सीटें ऐसी रहीं, जहां हार-जीत का अंतर 2,000 वोट से कम था। इसी तरह 30 सीटों पर तो हार-जीत का अंतर 3,000 से भी कम रहा। जबकि 45 सीटें ऐसी रहीं जहां जीत का अंतर 5,000 से कम था। बीजेपी के लिए काफी निराशाजनक रहे इन आंकड़ों के पीछे सबसे बड़ा जिम्मेदार नोटा ही रहा है। क्योंकि ये नोटा वोट किसी और के वोट नहीं, बल्कि नाराज बीजेपी समर्थकों के ही थे। ये नाराज बीजेपी समर्थक बीजेपी से एससी-एसटी ऐक्ट और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर नाराज थे। दूसरी तरफ ये कांग्रेस को वोट सपने में भी नहीं कर सकते थे। ये बात कांग्रेस को पता थी। इन लोगों द्वारा नोटा का बटन दबाने से सीधा फायदा कांग्रेस को मिला
चुनाव आयोग द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में भाजपा को 38.8 प्रतिशत तो कांग्रेस को 39.2 प्रतिशत वोट मिले हैं। दोनों के वोट प्रतिशत का अंतर महज 0.4 प्रतिशत है। वहीं दूसरी ओर अब तक राज्य में नोटा के खाते में गए वोटों का प्रतिशत 1.3 है। यानी हार और जीत के अंतर के तीन गुने से भी अधिक लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया है। वहां कुल मिलाकर 4,47,133 लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया। राजस्थान में लगभग 15 सीटों पर जनता ने किसी को न चुनने के विकल्प के रुप में NOTA का बटन जमकर दबाया। इन 15 सीटों पर नोटा वोटों की संख्या कांग्रेस-बीजेपी के बीच जीत-हार के अंतर से अधिक थी। असल में जनता ने अपनी ओर से किसी को भी वोट नहीं किया लेकिन यही वोट किसी एक पार्टी को जिताने का काम कर गया और वह पार्टी ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस ही है।
बता दें कि, चुनाव आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं अर्थात नोटा का बटन ईवीएम पर दिया था। नोटा उम्मीदवारों को खारिज करने का एक विकल्प देता है। नोटा में कितने लोगों ने वोट किया, इसका भी आकलन किया जाता है। लेकिन, समीकरण कुछ ऐसे हैं कि, नोटा के वोट किसी एक पार्टी के लिए बहुत खतरनाक साबित हो रहे हैं। इसीलिए संघ अब नोटा के खिलाफ खुला आवाहन करेगा, इसके साथ ही लोगों को बताएगा कि, कैसे नोटा की वजह से अनुचित व्यक्ति का चुनाव हो जाता है। संघ प्रचारक और स्वयंसेवक ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलकर ये बात समझाने की कोशिश करेंगे।