एनडीटीवी की पत्रकार निधि राजदान ने नॉर्वे के प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग का इंटरव्यू लेने के बाद ट्वीट किया कि प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग ने कहा है कि अगर दोनों देशों की सहमति हो तो वो भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने को तैयार हैं। इसके बाद ये खबर तेज हो गयी कि अगर दोनों देश तैयार हैं तो नॉर्वे कश्मीर के मुद्दे को सुलझाने में सहायता करेगा। निधि राजदान के इस ट्वीट के बाद भारत में नॉर्वे के राजदूत निल्स राग्नार कमस्वाग ने अधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि, “प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग भारत और पाकिस्तान के बीच की ससमय को सुलझाने का ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया है। नोर्वे न ही मदद का और न ही मध्यस्थता का प्रसताव दिया है। नोर्वे सिर्फ मदद मांगने पर ही मदद करता हो”
PM @erna_solberg has not offered to mediate between India and Pakistan as has been erroneously reported. Norway has neither been asked nor offered to mediate.
— Nils Ragnar Kamsvåg (@nrkamsvaag) January 7, 2019
बीजेपी के सदस्य और पब्लिक पालिसी रिसर्च सेंटर के निदेशक सुमित भसीन ने इस घटना का अवलोकन किया और निधि राजदान के ट्वीट और नार्वे के राजदूत ट्वीट को एक साथ शेयर किया।
Has this becoming habit of @ndtv @Nidhi to manufacture fake news on a daily basis. Time .@Ra_THORe ji initiates stringent action against such forces who just to oppose PM have sold their soul. pic.twitter.com/QHWmiU9mYp
— Sumeet Bhasin (मोदी का परिवार) (@sumeetbhasin) January 7, 2019
इसके बाद निधि राजदान ने इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए भसीन को झूठा हैं और भाजपा आईटी सेल को सुमित भसीन को झूठ के लिए भुगतान दिया होगा।
Liar. There is no manufacturing. The quotes are on TV and reported as is. I know the IT cell pays you to lie but I will call your lies out every single day https://t.co/gpv5jvrlG6
— Nidhi Razdan (@Nidhi) January 7, 2019
सुमित भसीन ने Rightlog से बातचीत में कहा, “भारत कई बार कह चुका है कि कश्मीर का एक द्विपक्षीय मुद्दा है ऐसे इस तरह का सवाल करने की जरूरत ही नहीं है। कोई भी पत्रकार भारत सरकार और संसद भवन से ऊपर कैसे हो सकता हो? नोर्वे के राजदूत भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता को लेकर किसी भी सहमती से इंकार किया है। इसके बाद भी वो बार बार तथ्यों को तोड़-मोड़ कर पेश कर रही हैं ऐसे में एक पत्रकार की जवाबदेही बनती है।
बीजेपी ने इसके लिए पैसे दिए ये कहना गलत है क्योंकि बीजेपी कार्यकर्ता और स्वयंसेवकों की पार्टी है। चूंकि मेरे खिलाफ आरोप लगाये गये हैं तो मैं उन्हें चुनौती देता हूं कि वो मेरे खिलाफ लगाये गये आरोपों को साबित करें अन्यथा क़ानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहें। संभवतः कांग्रेस को इस तरह के ट्रॉल्स के लिए भुगतान करती होगी लेकिन ये बीजेपी और उसके कार्यकर्ताओं की संस्कृति नहीं है कि वो राष्ट्र से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों के लिए पैसे नहीं देती है। मुझे उम्मीद है कि भारतीय पत्रकार जिम्मेदारी से काम करेंगे और अपने निजी एजेंडे और राजनीतिक पूर्वाग्रहों के अनुरूप तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना बंद कर देंगे।
अक्सर ही ये दावें किये जाते हैं कि सोशल मीडिया ट्रॉल्स के लिए बीजेपी पैसे देती है जबकि वास्तविकता कुछ और है। जब भी कोई एनडीए के पक्ष में या राष्ट्रवादी विचारधारा का समर्थन करता है उसपर इस तरह के आरोप लेफ्ट लिबरल गैंग और विपक्षी पार्टियां लगाती रही हैं। फिर भी सुमित भसीन ने अपना पक्ष रखा। सुमित भसीन ने सही कहा कि भारतीय पत्रकारों को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और जवाबदेही के अधीन होना चाहिए, खासकर तब जब अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों से जुड़े मामलों हों।