लोकसभा चुनाव पास है और बीजेपी को हराने के लिए उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने गठबंधन भी कर लिया लेकिन उससे पहले ही इन दोनों पार्टी के अध्यक्ष की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। जहां सपा अध्यक्ष अपने कार्यकाल में हुए खनन घोटाले की जांच की आंच से तप रहे हैं वहीं बसपा अध्यक्ष स्मारक घोटाले की वजह से मुश्किलों में हैं। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मायावती ने अपने मुख्यमंत्री रहने के दौरान जो मूर्तियां और स्मारक बनवाए थे वो पैसे जनता के थे ऐसे में खर्च किया गया धन उन्हें लौटाना होगा। इस फैसले से मायावती लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा झटका लगा है। इस फैसले को लेकर जब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से सवाल किया गया तो वो इस सवाल से दूरी बनाते नजर आए।
जब अखिलेश यादव से सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने इस सवाल से बचते हुए कहा, “मैं समझता हूं कि इस मामले में बसपा नेता के वकील अपना पक्ष रखेंगे। ये कोई शुरुआती टिप्पणी हो सकती है फ़िलहाल ये अभी मेरी जानकारी में नहीं है।” अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मायावती को जनता के पैसे लौटाने के आदेश पर कहा कि उन्हें सावर्जनिक धन सरकारी खजाने में जमा कर देना चाहिए। अखिलेश यादव ने कहा, “हमारा ऐसा विचार है कि मायावती को अपनी और अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न की मूर्तियां बनवाने पर खर्च हुआ सार्वजनिक धन सरकारी खजाने में वापस जमा करना होगा।” अखिलेश यादव के इस बयान से साफ़ है कि वो इस मामले से दूरी बनाकर रखना चाहते हैं। वो खुलकर मायावती का समर्थन नहीं कर रहे हैं। भले ही सपा-बसपा ने गठबंधन कर लिया हो लेकिन इन दोनों पार्टियों के बीच की बरसो पुरानी दुश्मनी की झलक नजर आ ही जाती है। ऐसा लगता है दोनों पार्टियों ने पीएम मोदी को हरान एके लिए दुश्मनी को दरकिनार कर गठबंधन तो कर लिया लेकिन वास्तव में ये गठबंधन सिर्फ दिखावे का है।
बता दें कि पिछले महीने ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमों मायावती ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में गठबंधन पर मुहर भी लगा दी थी। दोनों के बीच सीटों का बंटवारा 38-38 का हुआ था और अन्य सीटें दोनों पार्टियों ने अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ दी थी। गठबंधन के बाद से दोनों पार्टियों ने एकजुटता का प्रदर्शन करने के लिए मायावती का जन्मदिन मिलकर मनाया था। हालांकि, चुनाव से पहले अखिलेश यादव और मायावती को बड़ा झटका लगा है। अखिलेश जहां हमीरपुर खनन घोटाला, सरकारी व्यवस्था में यादवीकरण करने के आरोपों की वजह से मुश्किलों में घिर गये हैं तो वहीं मायावती स्मारक घोटालों की वजह से चर्चा में हैं। यही नहीं दोनों का मतदाता आधार भी इस गठबंधन से खुश नहीं है वहीं मुस्लिम समुदाय भी गठबंधन में मुस्लिमों की अनदेखी से नाराज है। हर तरफ से ये गठबंधन मुश्किलों से घिरा हुआ है। अब अखिलेश यादव के बयान से ऐसा लग रहा है लोकसभा चुनाव से पहले ही इस गठबंधन में खट्टास आ गयी है। ऐसे में किस आधार पर ये अपनी जीत की टाल ठोक रहे हैं ये तो बसपा और सपा ही बता सकते हैं।
वास्तव में अब दोनों ही पार्टियों द्वारा अपने शासनकाल में किये गये घोटाले इनके गले की हड्डी बन गये हैं जिससे इन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में भरी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन को जनता से क्या प्रतिक्रिया मिलती है।