मात्र 4 साल पहले दिल्ली में एकतरफा जीत हासिल करने वाली ‘आम आदमी पार्टी’ आज दयनीय स्थिति में पहुँच चुकी है लेकिन यहाँ तक पहुँचने में वाकई ‘आप’ के नेताओं ने बड़ी शिद्दत से मेहनत की है। इन 4 वर्षों में केजरीवाल समेत तमाम पार्टी के नेताओं ने जिस तरह की ओछी राजनीति का प्रदर्शन किया, आज वही कारण है कि वह सभी जगह अन्य दलों के साथ गठबंधन करने के लिए गिड़गिड़ा रही है, और मकसद लोगों की सेवा करना नहीं, बल्कि भाजपा को हराना है।
केजरीवाल को दिल्ली में पहले ही कांग्रेस द्वारा किनारे किया जा चुका है। इसके बाद उन्होंने हरियाणा में ‘मौका’ तलाशने की कोशिश की। ट्वीट जड़ते हुए मुख्यमंत्री जी ने लिखा ”देश के लोग अमित शाह और मोदी जी की जोड़ी को हराना चाहते हैं। अगर हरियाणा में JJP, AAP और कांग्रेस साथ लड़ते हैं तो हरियाणा की दसों सीटों पर भाजपा हारेगी। राहुल गांधी जी इस पर विचार करें।”
देश के लोग अमित शाह और मोदी जी की जोड़ी को हराना चाहते हैं। अगर हरियाणा में JJP, AAP और कांग्रेस साथ लड़ते हैं तो हरियाणा की दसों सीटों पर भाजपा हारेगी। राहुल गांधी जी इस पर विचार करें।
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) March 13, 2019
लेकिन दोनों ही पार्टियाँ बड़ी बेवफा साबित हुई। JJP ने तो जवाब देने में पल-भर लगाया ‘माफ़ करना केजरीवाल जी, हमारी पार्टी स्वर्गीय देवीलाल चौधरी जी के सिंद्धातो पर बनी है, कांग्रेस से लड़ने में उन्होंने अपनी जिंदगी खपा दी, भला कांग्रेस के साथ हम कैसे जा सकते हैं।’ इसके पहले दिल्ली में आप के साथ गठबंधन के विचार को हवा में उड़ाते हुए, सोमवार को कांग्रेस द्वारा भी केजरीवाल पर राजनीतिक स्ट्राइक की गई। राहुल गांधी ने अपने कार्यकर्ताओं को सभी सातों सीटों पर जीत दिलाने का भरोसा दिलाया।
राजनीति में अपने आप को ‘सबसे अलग’ कहने वाली आम आदमी पार्टी के इस दावे को आज कोई गलत नहीं कह सकता। केजरीवाल ने पिछले 4 सालों में जैसी निम्नस्तरीय राजनीति का प्रदर्शन किया है, शायद ही इतिहास में कोई ऐसा करने में सफल हुआ हो। साफ है कि केजरीवाल के अच्छे दिन समाप्ति की ओर अग्रसर हैं, क्योंकि चुनाव दहलीज पर आ खड़े हैं। अब हमें तो डर इस बात का है कि कहीं चुनावों को भी केजरीवाल ‘मोदी की साजिश’ न करार दें।
इस बात की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इन चुनावों के बाद कहीं पार्टी के साथ-साथ खुद केजरीवाल भी इतिहास ना बन जाएं! वैसे इसको लेकर भाजपा से हमें सवाल पूछने की आवश्यकता है कि वह क्यों राजनेताओं की ऐसी दुर्लभ प्रजाति को विलुप्त करने की जिद पर अड़ी है? पीएम मोदी भी अपने हर भाषण में लोगों को रोज़गार देने की बात करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ वे केजरीवाल जैसे नेताओं की पोल खोलकर उन्हें बेरोज़गार करने पर आखिर क्यों तुले हुए हैं?
हालांकि, मानना पड़ेगा कि केजरीवाल एक दूरदर्शी नेता तो हैं। वे खुद भी जानते हैं कि दिल्ली की जनता अब उन्हें वहाँ से चलता करने का मन बना चुकी है। इसलिए वे लगातार हरियाणा में अपने पैर जमाने में लगे हुए थे, लेकिन कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी की भी अपनी महत्वकांक्षाएं हैं। दोनों को लगता है कि हरियाणा की दस की दस सीटों पर तो उनके अलावा कोई जीत ही नहीं सकता, लेकिन केजरीवाल को भाजपा की जीत का पूरा भरोसा है। पिछले चुनावों में हरियाणा की दस सीटों में से 7 सीटें भाजपा ने जीती थी, जबकि इनेलो को 2 और कांग्रेस को बची 1 सीट मिली थी। राज्य में आम आदमी पार्टी का न तो पहले कोई वजूद रहा है, और न ही अब कोई प्रभाव है।