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कांग्रेसी राज के वो दिन, जब देश को मजबूत बनाने की सोचने वाले नहीं बचते थे जिंदा

Harish Chandra Srivastava द्वारा Harish Chandra Srivastava
30 March 2019
in समीक्षा
कांग्रेस भारत

PC : Hindustan

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मिशन शक्ति की कामयाबी के साथ भारत दुनिया के उन तीन शक्तिशाली देशों अमरीका, रुस और चीन के साथ उस क्लब में सम्मिलित हो गया, जिनके पास उपग्रह आधारित अत्याधुनिक सुरक्षा प्रणाली है। भारत ने पूर्णत: स्वदेशी उपग्रह निरोधी मिसाइल (एंटी सैटेलाइट मिसाइल) ए-सैट का सफलतापूर्वक परीक्षण करते हुये उपग्रह मार गिराने के साथ ही स्पेसस्ट्राइक की क्षमता हासिल कर ली। यह देश का न केवल बड़ा गौरव है, बल्कि भारत के रक्षा क्षेत्र में मील का पत्थर है। किंतु दुर्भाग्य ये है कि जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की इस उपलब्धि की घोषणा की तो एक तरफ देश की जनता का माथा गर्व से उठ गया वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने भारतीय वैज्ञानिकों की इस असाधारण उपलब्धि पर भी सवाल उठाते हुये इसे प्रधानमंत्री मोदी के साथ ही देश को नीचा दिखाने का बहाना बना लिया।

वह भी दौर था, जब इस तरह की प्रणाली या देश की रक्षा से संबंधित किसी बड़ी परियोजना पर सोचने पर शीर्ष रक्षा वैज्ञानिकों की संदिग्ध मौत हो जाती थी। भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई की संदिग्ध मौत भला कैसे भूल जायें!

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एक पत्रकार ग्रेगरी डगलस और अमरीका की खुफिया एजेंसी सीआईए के एक अफसर के बीच बातचीत (11 जुलाई, 2008) में यह खुलासा हुआ था कि भाभा की मौत में सीआईए की भूमिका थी। सीआईए की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ था। डॉ भाभा का एयर इंडिया बोइंग 707 विमान स्विस आल्प्स में उस समय क्रैश हो गया था जब वो एक बैठक में भाग लेने वियना जा रहे थे। अक्टूबर, 1965 में डॉ भाभा ने आकाशवाणी पर घोषणा की कि यदि उन्हें अनुमति मिली तो वे भारत को 18 माह के भीतर नाभिकीय बम बनाने की क्षमता वाला देश बना देंगे। इसके ठीक दो माह बाद 24 जनवरी, 1966 को विमान क्रैश होने पर उनकी संदिग्ध मृत्यु हो गयी।

इस तथ्य को जानने से पहले एक और रहस्यमयी बात जानना आवश्यक है। जिस समय डॉ भाभा ने यह घोषणा की थी, उस समय देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे। यह समझा जा सकता है कि भारत को परमाणु सम्पन्न बनाने को लेकर शास्त्री जी ने डॉ भाभा को हरी झंडी दे दी होगी, इसीलिए आकाशवाणी पर उन्होंने इसकी घोषणा की थी। इस घोषणा के दो माह बाद ही 11 जनवरी, 1966 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की तत्कालीन सोवियत रूस के ताशंकद में रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी। स्वतंत्र प्रेक्षकों का संदेह है कि शास्त्री जी को विष देकर मारा गया था। अंतिम समय में शास्त्री जी के साथ रहे उनके व्यक्तिगत चिकित्सक डॉ आर.एन. चुग इसके गवाह थे। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद इस मामले की जांच शुरू की गयी। डॉ चुग को संसद में उस दिन की पूरी घटना पर गवाही देनी थी और वे सड़क मार्ग से संसद सत्र में भाग लेने दिल्ली आ रहे थे कि एक ट्रक ने रहस्मयी ढंग से उनकी कार को टक्कर मार दी और वे व उनकी पत्नी की मौत मौके पर ही हो गयी। यह और रहस्यमय बात है कि शास़्त्री जी की संदिग्ध मौत के बाद 12 दिन बाद ही 24 जनवरी को कांग्रेस की इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं और उसी दिन डॉ. भाभा की संदिग्ध मृत्यु हो गयी।

डॉ. भाभा की भारत को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनाने की घोषणा और इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के दिन तक की घटनाओं के बीच संबंधों को लेकर अक्सर संदेह के बादल मंडराते हैं। क्या लाल बहादुर शास्त्री और डॉ भाभा दोनों की संदिग्ध मृत्यु का कारण इन दोनों विभूतियों द्वारा भारत को शक्तिसम्पन्न राष्ट्र बनाने का संयुक्त रूप से बीड़ा उठाना था?

बता दें कि इसके बाद भारत परमाणु सम्पन्न राष्ट्र तब बना जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की अटल बिहारी बाजपेयी सरकार बनीं। 11-13 मई, 1998 को अटल जी ने पोखरण परमाणु परीक्षण किया, जिसके बाद विश्व ने भारत को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। हालांकि, इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में भी 18 मई, 1974 को भी पोखरण में परमाणु परीक्षण करने का दावा किया गया था, लेकिन विश्व ने भारत के इस दावे को खारिज कर दिया था।

भारत में अमरीका के राजदूत व सांसद रहे डेनियल पैट्रिक मॉयनिहन ने अपनी पुस्तक में खुलासा किया था कि सीआईए कांग्रेस को फंडिंग करती थी। यह भी आरोप लगे हैं कि इंदिरा गांधी रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी से भी धन लेती थीं। 1967 के चुनाव में इंदिरा गांधी की कांग्रेस ने केजीबी से धन लिया था। केजीबी के वगीकृत (गोपनीय) दस्तावेज लीक हुये तो यह खुलासा हुआ था। सीआईए की रिपोर्ट में भी यह दावा किया गया था। केजीबी पेपर्स के हवाले से द टेलीग्राफ अखबार की 25 अक्टूबर, 2005 की एक रिपोर्ट के मुताबिक जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में ही केजीबी संवेदनशील प्रतिष्ठानों में घुसपैठ कर चुकी थी। 2005 में ही केजीबी के पूर्व जासूस वसीला मित्रोखिन ने अपनी पुस्तक में खुलासा किया था कि केजीबी ने कांग्रेस पार्टी के चुनाव प्रचार के लिये इंदिरा गांधी को सूटकेसों में भरकर रुपए भेजे थे। इसके अतिरिक्त नेहरू के चहेते और उनकी कैबिनेट में रक्षा मंत्री वीके कृष्णमेनन के चुनाव के लिये केजीबी ने पैसा दिया था और 1970 में चार अन्य केंद्रीय मंत्रियों को अलग से धन मुहैया कराया था। सीआईए की एक रिपोर्ट में यह भी दावा किया है कि राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में केजीबी के लोग थे।

यहां ये तथ्य उजागर करने का कारण यह है कि आज जब कांग्रेस भारत को अंतरिक्ष महाशक्ति बनाने की भारतीय वैज्ञानिकों और वर्तमान नेतृत्व की उपलब्धि को झुठलाने के लिये मिशन शक्ति का श्रेय भी जबरन इंदिरा गांधी को दे रही है तो देश को इस सवाल का जवाब भी ढूंढ़ना चाहिये कि इंदिरा का शास्त्री जी, डॉ भाभा और विक्रम साराभाई की संदिग्ध मृत्यु और इससे भारत के परमाणु कार्यक्रम ठप पड़ने का क्या संबंध है?

डॉ भाभा की तरह ही विक्रम साराभाई भी देश को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आगे ले जाना चाहते थे और उनके प्रयासों से ही 1962 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान राष्ट्रीय समिति (आईएनसीओएसपीएआर) गठित हुयी थी, जिसे 1969 में भंग कर दिया गया और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की गयी, जो प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतरिक्ष विभाग के अधीन कार्य करती है। विक्रम साराभाई देश को अंतरिक्ष शक्ति बनाने के काम में लग गये और उनकी अगुवायी में देश का पहला उपग्रह आर्यभट्ट तैयार होने लगा, किंतु 30 दिसम्बर 1971 को उनकी भी तिरुअनंतपुरम में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी। उनका पोस्टमार्टम तक नहीं कराया गया। साराभाई की बेटी मल्लिका साराभाई ने अपने पिता की मौत में साजिश का संदेह जताते हुए सरकार द्वारा पोस्टमार्टम न कराये जाने के निर्णय पर सवाल उठाया था। ‘विक्रम साराभाई अ लाइफ’ पुस्तक में अमृता शाह ने साराभाई की निकट सहयोगी कमला चौधरी के हवाले से लिखा है कि साराभाई ने उनसे अपने जीवन पर खतरे की बात बतायी थी।

इसी तरह स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन विकसित कर देश को उपग्रह प्रक्षेपण क्षेत्र में शक्तिशाली बनाने की परियोजना का हिस्सा रहे डॉ नम्बी नारायण का किस्सा भी जगजाहिर है। जनवरी 1991 में तत्कालीन सरकार ने रूस के साथ तकनीक हस्तांतरण के साथ 7 क्रायोजनिक राकेट इंजन क्रय करने का 235 करोड़ रुपए का समझौता हुआ था। इसके बाद डॉक्टर नारायण उन तीन वैज्ञानिकों में शामिल थे, जिन्होंने समझौते के तहत रूस जाकर इस पर काम किया था। अमरीका के दबाव में जब रूस ने 1993 में भारत को इसे देने क्रायोजनिक इंजन की तकनीक देने से इनकार कर दिया तो इसरो वैज्ञानिकों ने इसे खुद बनाने की ठान ली। नारायण स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन के प्रोजेक्ट को लीड कर रहे थे। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस शासन में दिसम्बर 1994 में डॉ नारायण को जासूस होने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया। जांच में उनके ऊपर लगे आरोप झूठे पाये गये और बरी किये गये। इस बीच अटल जी की सरकार बनने के बाद इस प्रोजेक्ट पर काम तेज कर दिया गया और इसरो स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन विकसित करने की ओर सफलतापूर्वक बढ़ने लगा। 2004 में अटल जी की सरकार चली गयी और कांग्रेस नीत यूपीए सत्ता में आई तथा दस साल बाद 5 जनवरी 2014 को स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।  

जिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में भारत को अंतरिक्ष की महाशक्ति बनने की इतनी बड़ी उपलब्धि मिली है। उन पर व्यंग्य मारने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से यह पूछा जाना चाहिए कि उनकी मां और तत्कालीन कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी के इशारे पर चलने वाली मनमोहन सरकार सरकार द्वारा देश की सेना को आधुनिक हथियारों, लड़ाकू विमानों व साजोसामान से वंचित कर देश की सुरक्षा को खतरनाक स्थिति में लाने का षडयंत्र क्यों हुआ? मिशन शक्ति की उपलब्धि पर प्रश्न उठाने वाले कांग्रेस से यह भी पूछा जाना चाहिए कि इंदिरा के समय से लेकर सोनिया व राहुल तक चाहे देश के शीर्ष रक्षा वैज्ञानिकों की रहस्यमयी व अचानक मृत्यु की घटनाएं हों अथवा कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी दलों द्वारा राफेल सौदे, सर्जिकल स्ट्राइक व एयरस्ट्राइक पर चीन और पाकिस्तान की मदद कर देश की सुरक्षा खतरे में डालने वाली षडयंत्रकारी बयानबाजी हो अथवा 2007 और 2012 में इसरो द्वारा ए-सैट मिसाइल कार्यक्रम के प्रस्ताव की अनुमति न देने के पीछे उनकी सरकार और पार्टी की मंशा क्या थी?

 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने साफ कहा कि भारत के पास एक दशक से भी पहले भी ऐंटी सैटलाइट मिसाइल क्षमता थी, लेकिन उस समय राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण इसे सफलतापूर्वक अंजाम नहीं दिया जा सका। जिस समय चीन ने 2007 में यह परीक्षण किया और अपने मौसम उपग्रह को मार गिराया, उस समय भी भारत के पासे ऐसा ही मिशन पूरा करने की तकनीक थी। नायर ने कहा, ‘अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी पहल की है। उनके पास राजनीतिक इच्छा शक्ति है और साहस है, यह कहने का कि हम इसे करेंगे। इसका प्रदर्शन अब हमने पूरी दुनिया को कर दिया है।’ रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) इसरो के पूर्व अध्यक्ष वीके सारस्वत ने भी कहा कि राजनीति उन्होंने 2012 में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को इसके परीक्षण का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन तब उन्होंने इसकी अनुमति देने के बजाय इस पर रोक लगा दी। इस सफलता का श्रेय मोदी सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति व साहस को ही जाता है। मोदी सरकार के कार्यकाल में जब ए-सैट मिसाइल पर काम शुरू हुआ तो डीआडीओ के मुखिया सारस्वत थे।

मोदी विरोध के लिये देश की उपलब्धियों को झुठलाने वाली कांग्रेस व विपक्षी दल फिर कटघरे में हैं। आज नहीं कल, लोग उनसे हिसाब मांगेंगे और पूछेंगे कि देश को मजबूत बनाने वालों की संदिग्ध मौत और भारत को असुरक्षित बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के इतिहास में इतने ब्लैक होल क्यों हैं?

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