देश की सत्ता पर काबिज़ होने के ख्वाब देखने वाली कांग्रेस में अंदरूनी कलह बढ़ती ही जा रही है। अंदरूनी मतभेदों की वजह से कांग्रेस को पहले ही महाराष्ट्र, गुजरात तथा तेलंगाना में बड़े झटके मिल चुके हैं। अब लगता है कि भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश से भी बुरी खबर आ सकती है। जिस वक्त कांग्रेस को एकजुट करने के लिए गांधी परिवार के सबसे आकर्षक चेहरे,यानि प्रियंका गांधी को चुनावी मैदान में उतारा गया है, ठीक उसी वक्त बुंदेलखंड से गुटबाजी की नींव रखने की भी शुरुआत कर दी गई है। इसकी शुरुआत समथर क्षेत्र के कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक रणजीत सिंह जूदेव ने की है। रणजीत सिंह कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं। सिंह ने झांसी के सबसे प्रभावशाली नेता माने जाने वाले प्रदीप जैन को टिकट नहीं देने की पैरवी की है, साथ ही टिकट के लिए जिन लोगों के नामों की सिफारिश की है वो जमीनी संघर्ष में प्रदीप के आगे कहीं नहीं टिकते। इसके बाद झांसी में कांग्रेस के भीतर ही घमासान शुरू हो गया है।
कांग्रेस पार्टी आलाकमान द्वारा कोई पर्याप्त दिशानिर्देश न मिलने की वजह से झाँसी कांग्रेस अब गुटबाज़ी पर उतर आयी है। रणजीत सिंह ने कांग्रेस को धमकी भी दी है कि अगर उनके द्वारा सिफारिश किये गए नामों को टिकट न दिया गया तो इसके नतीजे खतरनाक होंगे। यह बेशक कांग्रेस के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है, क्योंकि जिनके बलबूते कांग्रेस अब तक लोकसभा चुनाव जीतती आई है,वही नेता अब कांग्रेस पार्टी का हाथ छोड़ अन्य दलों का हाथ थाम रहें हैं।
यहाँ प्रियंका वाड्रा के नेतृत्व पर भी सवाल उठना लाज़मी है। दरअसल प्रियंका वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश कांग्रेस को मज़बूत करने की कमान सौंपी गई थी, लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस में गुटबाज़ी का दौर शुरू होना ना तो कांग्रेस के लिए अच्छा है और न ही प्रियंका वाड्रा के राजनीतिक करियर के लिए। गुजरात में भी उनकी पहली रैली के बाद कांग्रेसी विधायक के भाजपा में शामिल होने की खबर सामने आई थी। गुजरात में पिछले एक महीने में अब तक 4 बड़े नेता एवं विधायक भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं, जिनमें जवाहर छावड़ा,परषोत्तम सबारिया,वल्लभ धारविया और आशाबेन पटेल जैसे नाम शामिल हैं।
इससे पहले कल दिल्ली कांग्रेस में भी आपसी फूट पड़ने की ख़बरें सामने आयी थी। दरअसल शीला दीक्षित इस बात के पक्ष में है कि आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन ना किया जाए, लेकिन दिल्ली कांग्रेस के अजय माकन केजरीवाल के साथ गठबंधन करने के पक्ष में थे, जिससे की पूर्व मुख्यमंत्री उनसे नाराज भी हुई थीं।
चुनाव नज़दीक है, और सभी पार्टियाँ प्रचार अभियान में जमकर जुटना चाहती हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी में सामने आ रहे अंदरूनी मतभेद न सिर्फ पार्टी के प्रचार अभियान को कमज़ोर करने का काम करेंगे, बल्कि चुनाव के नतीजों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने की पूरी उम्मीद है।