प्रधानमंत्री मोदी के आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने के आव्हान पर इस बार पूरी दुनिया ठान चुकी थी कि जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसदू अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किया जाए। पूरी उम्मीद थी कि आतंक के इस सरगना पर प्रतिबंध लगाया जाएगा लेकिन ऐन वक्त पर पाकिस्तान परस्त चीन एक बार फिर अड़ गया। उसने मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर अड़ंगा लगा दिया। चीन ने लगातार चौथी बार जैश सरगना मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित कराने में रोड़ा अटकाया है। ‘ड्रैगन’ का यह ‘मसूद प्रेम’ यूं ही नहीं है। दरअसल, ये चीन का डर और उसकी मजबूरी है जिस कारण वो बार-बार अतंकियों के सामने झुकने पर मजबूर हो रहा है। इसके पीछे चीन के ऐसे कई हित हैं जिन्हें यह देश मसूद अजहर का बचाव करके साधे जा रहे हैं।
सीपीईसी कॉरिडोर और ओबीओर को आतंकियों से बचाना चाहता है पाक
चीन पूरी दुनिया से झगड़ा मोल लेकर मसूद अजहर जैसे आतंकी को बार बार इसलिए बचा रहा है क्योंकि आतंकी मसूद अजहर को बचाना चीन की कमज़ोरी बन गया है और यह मजबूरी है चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, यानी सीपीईसी। भारतीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार, CPEC प्रोजेक्ट पाकिस्तान के पीओके, खैबर पख्तूनख्वाह और बलूचिस्तान जैसे कई संवेदनशील इलाकों से गुजरता है, सीपीईसी का यहां विरोध होता हैं लेकिन मसूद अजहर की चीन से करीबी होने के कारण कोई आतंकी संगठन CPEC के निर्माण में रोड़ा नहीं अटकाता। चीन अपने CPEC कॉरिडोर को आतंकी हमलों से बचाना चाहता है।
वहीं मसूद अज़हर की चीन के इस्लामिक संगठनों पर भी गहरी पैठ है। यदि चीन मसूद के खिलाफ जाता है तो चीन को अपने यहां आतंकियों का गुस्सा झेलना पड़ेगा। ये आतंकी चीन के सीपीईसी और ओबीओआर प्रोजेक्ट को निशाना बना सकते हैं।
डूब जाएगा चीन का निवेश
यदि मसूद अजहर का नाम UNSC की ग्लोबल आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा तो पाकिस्तान के FATF की ब्लैक लिस्ट में शामिल होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। पहले से ही पाकिस्तान FATF की ग्रे लिस्ट में शामिल है। पाकिस्तान के FATF की ब्लैकलिस्ट में शामिल होते ही पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लग जाते, इससे चीन द्वारा पाकिस्तान में किया गया अरबों डॉलर का निवेश डूब सकता है।
मसूद का विरोध मतलब पाकिस्तान का विरोध
चीन द्वारा मसूद अजहर पर बैन का समर्थन करने से जैश-ए-मुहम्मद जैसे गुट उसके और पाकिस्तान सरकार के खिलाफ हो सकते हैं। साल 2002 में जब पाकिस्तान सरकार ने जैश को बैन किया था तो उसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर कई हमले हुए थे और देश के आंतरिक हालात गड़बड़ा गए थे। ऐसे में अगर चीन मसूद अजहर के खिलाफ होने वाली अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई में सहयोग करता है तो चीन के लिए पाकिस्तान का उपयोग करना काफी मुश्किल हो जाता।
भारत को उलझाकर रखना चाहता है चीन
चीन कभी भी यह नहीं चाहता कि भारत उससे मुकाबला करे या उसकी बराबरी में आकर खड़ा हो। चीन को भारत-अमेरिका की दोस्ती कतई बर्दाश्त नहीं है इस कारण वह मसूद अजहर जैसे मामलों में ही भारत को उलझाकर रखना चाहता है। भारत ने चीन के OBOR प्रोजेक्ट का भी बड़े स्पष्ट तरीके से विरोध किया है। इसी का बदला चीन मसूद अज़हर को हथियार बनाकर निकाल रहा है।
कोई कूटनीतिक जोखिम नहीं लेना चाहता चीन
विशेषज्ञों का मानना हैं कि, कोई भी देश बिना अपने राष्ट्रीय हितों के किसी दूसरे के सहयोग में खड़ा नहीं होता। चीन तो बिना किसी बड़े कारण के ऐसा कभी नहीं कर सकता। वह कभी भी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक संबंधों के मामले में कोई जोखिम नहीं लेता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा बैन लगते ही पाकिस्तान को मजबूर होकर मसूद अज़हर के सभी फंड, संपत्ति और आय के स्रोत फ्रीज़ करने पड़ते और साथ ही उसके विदेश में आने-जाने पर भी रोक लगानी होती। इसके बाद कोई भी देश मसूद अज़हर या उससे जुड़े संगठनों को हथियार सप्लाई नहीं कर सकता था। चीन जानता है कि, इमरान खान जैसी सरकारों की औकात पाकिस्तान में सिर्फ कठपुतली जितनी ही है। चीन पाकिस्तान में अरबों रुपये का निवेश कर चुका है, वो यह जानता है कि पाकिस्तान में सरकार किसी की भी हो राज सिर्फ आतंकियों का ही रहता है। यही कारण है कि, वह मसूद अजहर को बचाने में लगा है।
पाकिस्तान के आतंकवाद प्रायोजित देश घोषित होने से चीन को है नुकसान
हाफिज सईद के बाद अगर भारत मसूद अजहर को भी संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में शामिल करवा देता है तो इससे पाकिस्तान के आतंकवाद प्रायोजित राष्ट्र घोषित होने की स्थिति पैदा हो जाएगी। ऐसी स्थिति में अमेरिका समेत पश्चिमी देश पाकिस्तान पर बहुत से प्रतिबंध लगा देंगे। इससे पाकिस्तान के लिए तमाम तरह की राजनीतिक और आर्थिक मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। पाकिस्तान में चीनी निवेश होने के कारण इससे चीन पर भी खासा असर पड़ेगा। चीन चार साल में चीन-पाक आर्थिक गलियारे पर 50 अरब डॉलर का निवेश कर चुका है। चीन को डर है कि अगर उसने मसूद का समर्थन नहीं किया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की पैरवी नहीं की तो उसका इतना बड़ा निवेश डूब जाएगा।
खतरनाक मंसूबे पाले है चीन
पहले के उपनिवेशवादियों और आधुनिक चीनी नीतियों के बीच में बहुत कम अंतर नजर आता है। चीन कभी अपने सहयोगी के मुनाफे से मतलब नहीं रखता और न ही उसे कभी अपनी गलती का पछतावा होता है। चीनी कंपनियों ने और उसके सुरक्षा बलों ने अपनी परियोजनाओं के सुचारु संचालन के लिए पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों पर नियंत्रण कर रखा है। भूमि पर अपने नियंत्रण के साथ चीन ने अपने इरादों (पहले पहुंच बनाओ, फिर हावी हो जाओ और फिर शासन करों) को दिखाना शुरू कर दिया है। चीन ये मंसूबा पाले बैठा है कि वो पूरे पाकिस्तान का इस्तेमाल अपने व्यापारिक कामकाज के लिए करेगा। उसके लिये न पाकिस्तान ज़रूरी है और न ही मसूद अज़हर। चीन की नज़र ग्वादर पोर्ट पर है। विशेषज्ञों के अनुसार, 2022 तक चीन ग्वादर पोर्ट और वहां तक पहुंचने वाले रास्ते को पूरी तरह से अपने कब्ज़े में ले लेगा।
यदि मसूद अजहर वैश्विक आतंकी घोषित हो जाता तो मसूद अजहर पर यह 6 प्रतिबंध लग जाते-
- मसूद अजहर की विदेश यात्राओं पर बैन लग जाता।
- मसूद अजहर किसी भी देश में आर्थिक गतिविधियां नहीं चला पाता।
- संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को जैश सरगना के बैंक अकाउंट्स और उसकी संपत्ति को फ्रीज करना पड़ता।
- मसूद अजहर से संबंधित व्यक्तियों या उसकी संस्थाओं को कोई मदद नहीं मिल पाती।
- पाकिस्तान को जैश सरगना के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाने पड़ते।
- प्रतिबंध के बाद पाकिस्तान को मसूद अजहर के आतंकी कैंपों और उसके मदरसों को भी बंद करना पड़ता।
चीन अगर मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के मामले में अडंगा नहीं लगाता तो आज जैश-ए-मोहम्मद की कमर टूट चुकी होती लेकिन चीन अपनी मजबूरी के कारण इस आतंकी का मोहताज बना हुआ है।