कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है। आमतौर पर कोई भी पार्टी सभी वोटर्स को लुभाने के लिए अपना घोषणापत्र जारी करती है लेकिन लगता है कांग्रेस ने इसे सिर्फ एक समुदाय-विशेष को ध्यान में रखकर बनाया है। दरअसल, अपने घोषणापत्र के जरिये कांग्रेस ने अल्पसंख्यक कार्ड खेलने की पूरी कोशिश की है। एक तरफ जहां कांग्रेस ने विवादित अनुच्छेद 370 को बरकरार रखने की बात कही है तो वहीं उसने यह भी आश्वासन दिया है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को भी नहीं हटाया जाएगा। इन घोषणाओं के साथ बेशक कांग्रेस कुछ लोगों का दिल जीतने में कामयाब हो गई हो लेकिन देशहित कि सोच रखने वाले लोगों को कांग्रेस का यह घोषणापत्र बिल्कुल भी रास नहीं आया है।
कांग्रेस ने यह साफ किया है कि वह अनुच्छेद 370 को नहीं हटाएगी। अनुच्छेद 370 वही अनुच्छेद है जिसके तहत विवादित अनुच्छेद 35 ए को लागू किया गया है। इसी की आड़ में कश्मीर के लोगों को देश के अन्य राज्यों के लोगों से दूर करने का काम किया जाता रहा है। देश के बाकी लोग कश्मीर में ना तो अपना घर खरीद सकते हैं और ना कोई जमीन, जिसके कारण कोई भी निवेशक कश्मीर में निवेश करने के लिए तैयार नहीं होता । निवेश ना आने की वजह से एक तरफ जहां राज्य को वित्तीय घाटा होता है तो वहीं रोजगार मिलने के अवसर भी समाप्त हो जाते हैं। जाहिर है कि यदि हमें राज्य का चौतरफा विकास करना है तो इस अनुच्छेद को हटाना ही होगा। लेकिन जिन लोगों कि मंशा कश्मीर का विकास करना ही नहीं हो, तो भला वे लोग इसे हटाने की बात कर भी कैसे सकते हैं।
इसके अलावा कांग्रेस ने यह भी घोषणा की है कि वह सत्ता में आने के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी जैसी युनिवर्सिटीज़ के अल्पसंख्यक दर्जे को भी नहीं हटाएगी। यह घोषणा अपने आप में ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना है। दरअसल, वर्ष 1968 के [अज़ीज़ बाशा बनाम भारत सरकार ] एक केस में सर्वोच्च न्यायालय ने यह साफ किया था कि ऐसी कोई भी संस्था जिसे संसद अधिनियम के तहत स्थापित किया गया हो, वह अल्पसंख्यक संस्था का दर्जा हासिल नहीं कर सकती। जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को वर्ष 1988 में एक संसद अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था और वर्ष 2011 में यूपीए की सरकार के दौरान इसे अल्पसंख्यक दर्जा दे दिया गया था। इसको लेकर अगस्त 2011 में सरकार की ओर से वकील कपिल सिब्बल द्वारा कोर्ट में एक हलफनामा भी दायर किया गया था जिसमें जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे का सम्मान करने की बात कही गई थी । हालांकि वर्ष 2018 में भाजपा की सरकार द्वारा एक अन्य हलफनामा दायर कर यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को वापस लेने की बात कही थी।
वहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा भी विवादों के घेरे में रहा है। दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 30(1) में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि अगर अल्पसंख्यकों द्वारा कोई भी यूनिवर्सिटी, स्कूल, कॉलेज या अन्य कोई शैक्षणिक संस्थान बनाया जाता है तो उसे अल्पसंख्यक संस्था का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को मुस्लिमों द्वारा नहीं अपितु वर्ष 1875 में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया गया था। हालांकि, कांग्रेस ने वर्ष 1981 में एक बार फिर अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए संसद में एक बिल पास कराया जिसमें इस बात को स्वीकार किया गया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी मुसलमानों के लिए ही बनी है। लेकिन वर्ष 2005 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के इस कदम को ‘संविधान बाह्य’ यानि ‘अल्ट्रा-वायरस’ बताया और इस कानून को अवैध घोषित कर दिया। हालांकि बाद में जब यूनिवर्सिटी द्वारा सूप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी गई तो सुप्रीम कोर्ट ने यूनिवर्सिटी की अर्जी को खारिज कर दिया, लेकिन साथ में इलाहाबाद कोर्ट के फैसले पर भी रोक लगा दी, जिसके बाद आज तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा अब तक जारी है।
जाहिर है कि कांग्रेस ने कई मौको पर अल्पसंख्यक समुदाय को लुभाने के लिए कई बार संविधान एवं कोर्ट के फैसलों धज्जियां उड़ाई है। इसका अन्य उदाहरण हम वर्ष 1985 के [मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम] केस में भी देख चुके हैं जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने वर्ष 1988 में संसद में बिल पास कर यह सुनिश्चित किया था कि मुस्लिम पुरुषों को तलाक के बाद सिर्फ इद्दत के समय तक ही औरतों को सामान्य खर्चों के लिए भरपाई की जाएगी। वह वर्ष 1988 था और आज वर्ष 2019 है । साल तो बदल गया लेकिन कांग्रेस की सोच में कोई बदलाव नहीं आया। आज भी वह कुछ वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। उसके लिए चाहे उसे देश के संविधान को ही क्यों न बदलना पड़े, वह उससे भी नहीं घबराएगी। इस घोषणापत्र को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि अगर कांग्रेस दोबारा केंद्र में आती है तो लोकतंत्र का खतरे में आना तय है।