मध्य प्रदेश में नई सरकार के आते ही आम जनता के साथ-साथ व्यापारियों और उद्योगपतियों के भी ‘बुरे दिन’ आ गए हैं। दरअसल, एक तरफ जहां गर्मी के मौसम में राज्य के ग्रामीण इलाकों में लगातार बिजली कटौती से लोगों में भारी गुस्सा है, तो वहीं लोड बढ़ने की वजह से उद्योगों तक पहुंच रही बिजली का प्रवाह बेहद कमजोर हो गया है जिससे कि उद्योगपतियों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। अघोषित बिजली कटौती को लेकर लोगों के बढ़ते गुस्से का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि राज्य के छह जिलों के लोग एक बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में हैं, जिनमें जबलपुर, बालाघाट, सिवनी, रतलाम, मुरैना और धार जैसे जिले शामिल हैं, जहां इन पावर कट्स का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है। इतनी भारी बिजली कटौती को देखकर लोगों को कांग्रेस की पिछली दिग्विजय सरकार की याद आ गई है जब बिजली ना होना राज्य में एक आम बात हुआ करती थी।
Madhya Pradesh farmers did not get loan waiver they were promised.
Promise of 10,000 per month to unemployed youth for 3 YEARS was reduced to just 4000 per month for 3 MONTHS.
But 10 hour power cuts were brought back after 15 years! pic.twitter.com/fl2puNrElj
— Abhishek (@AbhishBanerj) April 14, 2019
लगातार पावर कट्स का सबसे बुरा असर ग्रामीणों पर पड़ा है, जिन्हें हर दिन 8 से 10 घंटे तक बिजली के बिना अपना गुजारा करना पड़ता है। ग्रामीण इलाकों की बात करें तो जबलपुर और श्योपुर जैसे इलाकों में प्रत्येक दिन 8-10 घंटे की बिजली कटौती देखने को मिल रही है। दूसरी तरफ उद्योगपति वर्ग भी कमलनाथ सरकार के बिजली प्रबंधन से बिल्कुल खुश नहीं दिखाई देता। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक उद्योगपतियों का कहना है कि ओवरलोडेड ट्रांसफॉर्मर और तारों की वजह से बिजली में प्रवाह में मुश्किलें आती है जिसकी वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है। अघोषित बिजली कटौती को लेकर भी उद्योगपतियों ने अपना विरोध जाहिर किया है।
आपको बता दें कि पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य में कांग्रेस अपनी सरकार बनाने में सफल हो पाई थी, लेकिन परफॉर्मेंस के मामले में अब तक उसका रिकॉर्ड कुछ खास नहीं रहा है। अपने चुनावी वायदों में कांग्रेस ने राज्य के सभी किसानों के कर्जमाफ़ी का ऐलान किया था। लेकिन सरकार बनने के बाद यह खबरें सामने आई थी कि किसानों को कर्जमाफ़ी के नाम पर ठगा जा रहा है और यहां तक कि उनके 13 रुपये तक का कर्ज़ माफ कर कांग्रेस सरकार द्वारा अपना पल्ला झाड़ा जा रहा है। विधानसभा चुनावों के मद्देनजर जारी अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने यह भी वादा किया था कि उनकी सरकार बनने के बाद उनकी सरकार बेरोजगारों को हर महीने 10 हज़ार का भत्ता देने का काम करेगी लेकिन सरकार बनने के बाद सिर्फ 4 हज़ार बेरोजगारी भत्ते को देने का ऐलान किया गया, जिसने सभी युवाओं को निराश करने के काम किया था।
एमपी की कांग्रेस सरकार का रिपोर्ट कार्ड अब तक कुछ खास नहीं रहा है। अपने चुनावी वादों को पूरा करने की बात हो, या फिर पुरानी सरकार के समय से चली आ रही व्यवस्थाओं को जारी रखने की बात हो, एमपी सरकार हर मोर्चे पर विफल नज़र आई है। देश में लोकसभा चुनाव अभी जारी हैं, और इसके पूरे अवसर हैं कि अबकी बार लोग कांग्रेस को सबक जरूर सिखाएँगे।