2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 303 सीटों पर प्रचंड बहुमत के साथ विजय प्राप्त की। यही नहीं, एनडीए गठबंधन के साथ मिलकर भाजपा ने 352 सीट जीतकर एक नया कीर्तिमान रचा है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई गैर कांग्रेसी सरकार अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा कर एक बार फिर सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ वापिस लौटी हो।
इसके साथ ही कई राजनीतिक पार्टियों के राष्ट्रीय महत्व को जहां गहरा धक्का लगा है, वहीं कुछ पार्टियों के प्रदर्शन से राजनीतिक अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे हैं। ये वो पार्टियां हैं, जिन्होंने या तो एक भी सीट नहीं जीती हैं, या फिर इतनी कम सीटें जीती हैं, कि उनके होने या न होने से किसी को कोई फर्क पड़ता है। तो आइये डालें उन 6 पार्टियों पर एक नज़र जिनका 2024 के लोकसभा चुनाव लड़ने पर एक भारी प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है –
सबसे पहले बात करतें हैं आम आदमी पार्टी की। 2011 के जन लोकपाल आंदोलन से बने जनाधार के बल पर राजनीति में कदम रखने वाली आम आदमी पार्टी राजनीति में व्यापक बदलाव का दावा करते हुए आई थी। कई लोगों को उनमें तत्कालीन सरकार का उचित विकल्प भी दिखा था।
2013 में दिल्ली में ज़बरदस्त जनसमर्थन के बावजूद जब आम आदमी पार्टी को केवल 28 सीटें ही मिली, तो उन्होंने सबसे ज़्यादा सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिए उसी कांग्रेस से हाथ मिलाया, जिसे वो रात दिन कोसती थी। यहीं से उनके राजनीतिक पतन की शुरुआत हुई. इसके बाद 2014 में आम आदमी पार्टी ने 432 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 4 सीटों पर जीत मिली थी
5 वर्ष के पश्चात जब आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव में उतरी, तो उनके राजनैतिक कद में ज़मीन आसमान का अंतर था। अधिकांश चुनावों में जमानत ज़ब्त करने के लिए बदनाम आम आदमी पार्टी अब केवल दिल्ली एनसीआर और पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रही थी।
मोदी के अंध विरोध में इस पार्टी ने एक बार फिर कांग्रेस का हाथ थमने का निर्णय लिया, पर पिछली बार से सबक लेते हुए कांग्रेस ने इस बार आम आदमी पार्टी से हाथ मिलाने से ही इंकार कर दिया। नतीजतन आम आदमी पार्टी केवल एक ही सीट पर सिमट कर रह गयी। इस पार्टी के हालिया प्रदर्शन को देखकर लगता है कि 2024 आते आते इनका कोई राजनीतिक महत्व ही नहीं रह जाएगा।
हालांकि, जहां आम आदमी पार्टी कम से कम एक सीट जीतने में सफल रही, वहीं कभी कद्दावर क्षेत्रीय पार्टियों में शुमार रालोद, राजद, डीएमडीके, इनलो और रलोसपा इस बार अपना खाता तक खोलने में नाकाम रही हैं। कभी बिहार में अभेद्य माने जाने वाली राजद को मानो इस लोकसभा चुनावों में ग्रहण लग गया। पिछले चुनावों में 4 सीट जीतने वाली राजद इस बार एक भी सीट नहीं जीत सकी। कई लोग इसके लिए राजद प्रमुख और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के स्वभाव को और लालू यादव के जेल में होने को जिम्मेदार समझते हैं। बाकी पार्टियों के बारे में जितनी कम बात करे, उतना ही बेहतर।
यदि वे इस आघात से उबर भी लेते तो भी इन पार्टियों के लिए 2024 तक बने रहना बिलकुल भी आसान नहीं होगा। यही नहीं इन पार्टियों में कोई बड़ा चेहरा भी नजर नहीं आता जो आम जनता को पार्टी से जोड़ सके. यही कारण है कि इस बार के चुनाव में इन पार्टियों को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया. आने वाले दिनों में भले ही ये पार्टियां अपने जनाधार को मजबूत करने की कोशिश करें और फिर से सक्रिय राजनीति में खुद को साबित करने की कोशिश करें लेकिन ये कोशिश कितनी सफल होगी इसपर भी कुछ नहीं कहा जा सकता. न इनके पास कोई बड़ा मुद्दा है जिसके सहारे ये अपनी नैया पार लगा सकें और लोकसभा चुनाव लड़ सकें बाकि जीत तो दूर की बात है।