मोदी सरकार का देश में मौजूद अवैध प्रवासियों पर कडा प्रहार जारी है। बीते शनिवार को भारत ने 20 बांग्लादेशी नागरिकों को वापस बांग्लादेश को सौंप दिया। सौंपे गए 20 बांग्लादेशियों में 1 महिला भी थी। सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए इन 20 लोगों को करीमगंज जिले के सुतारकंडी अंतर्राष्ट्रीय बार्डर पर उनके देश भेज दिया गया। इन सभी को पासपोर्ट एक्ट या फ़ोरनर्स एक्ट के उल्लंघन का दोषी पाते हुए सिल्चर और कोकराझार डिटेन्शन कैम्प में रखा गया था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये सभी बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से असम और मेघालय के बार्डर से भारत में घुस आए थे और ना ही इनके पास कानूनी दस्तावेज़ थे। पुलिस अधिकारी उत्पल शर्मा ने इसके संबंध में कहा, ‘इन बांग्लादेशी नागरिकों ने यह मान लिया है कि ये अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए और नौकरी की तलाश में भारत आए थे’। इस पूरी प्रक्रिया की कानूनी विश्वसनीयता पर जवाब देते हुए उत्पल शर्मा ने कहा ‘इन 20 नागरिकों को असम स्थित सुतारकंडी-शिओला बार्डर पर बांग्लादेश को सौंप दिया गया। इस दौरान वहां ‘बार्डर सुरक्षा बल’ और ‘बार्डर गार्ड बांग्लादेश’ के जवान और अधिकारी मौजूद थे। इनके अलावा मौके पर असम सरकार, असम पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारी भी मौजूद थे।
हालांकि, निर्वासित किए गए इन 20 अवैध आप्रवासियों में हिन्दू और मुस्लिम, दोनों धर्मों के लोग थे। पिछले कुछ समय से भारत सरकार अवैध अप्रावासियों के निर्वासन को लेकर काफी सक्रिय दिखी है। इससे पहले इसी वर्ष 19 जनवरी को 21 बांग्लादेशी नागरिकों को उनके देश डिपोर्ट किया गया था। असम और भारत के बीच लगभग 263 किमी लंबा बार्डर है, जहां से बांग्लादेशी नागरिक अक्सर बेहतर जीवन स्तर की तलाश में अवैध तरीके से भारतीय सीमा में दाखिल हो जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों में जब साल 2013 में नेशनल रजिस्ट्रार ऑफ सिटिज़न (एनआरसी) को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू की गई, उसके बाद से केंद्र सरकार ने बांग्लादेशियों को निर्वासित करने में तत्परता दिखाई है। वर्ष 2014 में 989 बांग्लादेशियों को, वर्ष 2015 और 2016 में क्रमश: 474 और 308 बांग्लादेशियों को वापस उनके देश भेजा गया। इसके अलावा इसी वर्ष भारत ने 5 रोहिंग्या मुसलमानों को भी म्यांमार में निर्वासित किया था।
भारत का यह शुरू से ही मानना है कि ये अवैध बांग्लादेशी भारत की आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ बाहरी सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं। इसके अलावा भारत में रहकर ये ना सिर्फ भारत के संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं, बल्कि भारत के नागरिकों के लिए रोजगार के अवसरों पर भी संकट पैदा करते हैं। जिससे ना सिर्फ देश में गरीबी बढ़ती है, बल्कि देश पर जनसंख्या का अतिरिक्त बोझ भी पड़ता है। भारतीय समाज किसी भी सूरत में इन बांग्लादेशी नागरिकों द्वारा भारत की संस्कृति को विकृत होते नहीं देख सकता। इन अवैध अप्रवासियों को जल्द से जल्द भारत से बाहर का रास्ता दिखाने की आवश्यकता है। हालांकि, कई क्षेत्रिय पार्टियां इन लोगों के तुष्टिकरण का काम कर इन्हें अपना वोट बैंक बनाने की कोशिश करती रही हैं लेकिन, मोदी सरकार के सख्त रवैये के आगे अब वे सब पस्त दिखाई दे रहे हैं।