दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकसभा के चुनाव अपने आखिरी चरण की तरफ है। चुनाव के खत्म होने के बाद सभी को अभी से 23 मई का बेसब्री से इंतजार है। लेकिन यहाँ एक दिलचस्प बात जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं वो चुनावों में हार और जीत से जुड़ी है। अगर हम आपसे कहें कि विपक्ष ने लोकसभा चुनाव में हार मिलने की स्थिति में किसपर हार का ठीकरा फोड़ना है इसकी पूरी तैयारी कर ली है तो शायद आपको हैरानी भी नहीं होगी। क्योंकि पिछले पांच सालों में विपक्ष यही करता भी आया है। इस बार अगर एनडीए सरकार फिर से सत्ता में आती है तो विपक्ष सिर्फ ईवीएम ही नहीं बल्कि और कई कारण अपनी हार के लिए गिनवाने वाला है और ये कारण क्या हो सकते हैं चलिए इनपर एक नजर भी डाल लेते हैं:
सबसे पहला कारण ईवीएम मशीन में गड़बड़ी का रोना
जैसा कि पिछले पांच सालों में हमने देखा किस तरह से कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी या अन्य विपक्षी दल सभी साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ईवीएम में गड़बड़ी का राग अलापती रही है। चाहे वो 2017 में हुए उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव हो या कर्नाटक, गुजरात या पिछले साल हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव को ही देख लीजिये। लगभग सभी चुनावों के दौरान बूथ कैप्चरिंग, ईवीएम मशीन में गड़बड़ी का रोना रोती रही है। जब इस पार्टी को जीत मिलती है जैसे कि हिंदी बेल्ट के तीन राज्यों में पार्टी ने जीत दर्ज की थी तब मशीन में कोई गड़बड़ी नहीं होती लेकिन हार मिले तो न ही ये जनता का जनादेश है और न ही मशीन सही है। जब चुनाव आयोग सभी दलों को सार्वजनिक रूप से ई।वी।एम। में कोई भी गलत बात को साबित करने के लिए बुलाता है तब ई।वी।एम। को गलत कहने वाला दल सामने नही आता। अब ऐसे में इस बार अगर भाजपा को बहुमत मिलता है या एनडीए सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो एक बार फिर से सभी विपक्षी दल ईवीएम मशीन में गड़बड़ी का रोना रोने के लिए पहले से तैयारी कर चुके हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रपति से गुहार लगाने की योजना में है विपक्ष
अभी लोकसभ चुनाव के दो चरण बाकी है लेकिन उससे पहले ही देश में सरकार बनाने के लिए एक वैकल्पिक रणनीति तैयार कर ली है। खबरों की मानें तो विपक्ष लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद राष्ट्रपति से मिलने की योजना बना रहा है। साथ ही राष्ट्रपति को इस बात के लिए राजी करने की कोशिश भी की जाएगी कि अगर किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तो उस स्थिति में सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित न करें। इस योजना के तहत एनडीए सरकार का विरोध कर रहीं 21 राजनीतिक पार्टियां एक समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर करेंगी और लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद वैकल्पिक सरकार के गठन के लिए राष्ट्रपति को ये समर्थन पत्र सौंपा जायेगा। इससे एक बात जो स्पष्ट होती है वो ये कि बहुमत किसे मिलने वाला है इसका अंदेश विपक्ष को शायद पहले ही हो गया है तब राष्ट्रपति से मिलने की योजना भी बनाई जा रही है।
चुनाव आयोग पर पक्षपाती होने का आरोप
आजम खान, नवजोत सिंह सिद्धू या मायावती जैसे नेताओं ने आचार संहिता का उल्लंघन किया यहां तक कि योगी आदित्यनाथ ने जब आचार संहिता का उल्लंघन किया तो चुनाव आयोग ने उनके चुनाव प्रचार पर कुछ घंटों के लिए बैन लगाया। इसके बाद देश के वर्तमान प्रधानमंत्री को चोर कहने वाली कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग से पीएम मोदी पर आचार संहिता का उल्लंघन करने को लेकर एक-दो नहीं बल्कि कई शिकायतें की लेकिन लगभग सभी मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव आयोग से क्लीन चिट मिल गयी। ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग पर पक्षपाती होने का आरोप लगाने के लिए विपक्ष तैयार है।
वोट कटवा
लोकसभा चुनाव में अगर कांग्रेस को हार मिलती है तो शायद वो ये कहने में बिलकुल नहीं झिझकेगी कि वो चुनावी मैदान में सिर्फ वोट काटने का काम कर रही थी। वास्तव में वो इस लड़ाई में थी ही नहीं। खुद कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने अपने एक बयान में कहा भी था, ‘कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में कुछ जगह ऐसे उम्मीदवार चुनाव के मैदान में उतारे हैं, जो बीजेपी का वोट काट सकें, ना की चुनाव में जीत हासिल कर सकें।‘
वैसे भी कांग्रेस के जीतने की संभावनाएं कम हैं लेकिन प्रियंका गांधी के इस बयान से स्पष्ट है कि ये पार्टी तो वास्तव में एक ‘वोट कटवा’ पार्टी बनाकर ही मैदान में उतरी थी। उसने मजबूत प्रत्याशी को उतारने की बजाय सिर्फ वोट काटने पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित किया जिससे भाजपा को चुनावों में नुकसान हो सके। ये पार्टी कहेगी कि हमेशा जीतने के लिए राजनीति नहीं की जाती। खैर, ये कारण भी थोड़ा बेतुका सा लगता है लेकिन अब वो इस बहाने का सहारा हारने पर लेगी या नहीं ये तो चुनाव के नतीजों के बाद ही सामने आ सकेगा।
पॉजिटिव काम्पैग्निंग
हां, इस बार भी विपक्ष यही कहेगा वो चुनाव प्रचार बिलकुल सही तरीके से और नियमों के अनुसार कर रहा था। न उसने तुष्टिकरण की राजनीति की न जातिगत राजनीति कि न विशेष समुदाय को लुभाने की कोशिश की। बहुत ही ईमानदारी से चुनाव प्रचार किया। भाजपा की तरह न ही कोई लोकलुभावन वादे किये और न ही कोई गलत तरीका अपनाया।
हालांकि, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का ‘नर्म हिंदुत्व’ का ढोंग, बसपा सुप्रीमों मायावती का मुस्लिमों से वोट की अपील करना, आजम खान का जया प्रदा पर अभद्र टिप्पणी करना, सुप्रीम कोर्ट का नाम लेकर ‘चौकीदार चोर’ का राग अलापना ये सब तो बस यूं ही था इसपर उन्हें शायद कुछ नहीं कहना होगा। यहां भी भाजपा की चाल है वो आम जनता को गुमराह कर रही है।
ये कुछ ऐसे कारण है जो शायद लोकसभा चुनावों के बाद हमें विपक्ष के मुंह से सुनने को मिल सकते हैं। यानि कि अगर विपक्ष को हार मिलती है तो इसकी पूरी तैयारी है कि कैसे खुद का बेतुके कारणों से बचाया जाए।
विपक्ष की मानें तो 2014 से पहले सब कुछ सही चल रहा था। देश में एकदम राम राज्य था सभी धर्म मिल जुलकर रहते थे ना कोई धर्म खतरे में था न देश का लोकतंत्र। इमरजेंसी तो ऐसे ही मजाक में लगा दी थी लेकिन इतनी छोटी सी बात पर थोड़े ही लोकतंत्र को खतरा हो सकता है। खतरा तो तब होता है जब देश के गद्दारों को, आतंकियों को, घोटालेबाजों को सरकार जेल भेजने लगे और विकास पर ध्यान दे, जनता से विकास पर वोट मांगे, देश विरोधी ताकतों को कमजोर करें और राष्ट्रवाद की भावना जन-जन में मजबूत होने लगे, विश्व भर में देश की साख बढ़ने लगे तब असली मायनों में लोकतंत्र खतरे में आता है। विपक्ष आम जनता को यही समझाने की कोशिश कर भी रहा है कि अगर लोकतंत्र को बचाना है।। तो अब जनता की जिम्मेदारी है कि वे अपने मताधिकार से लोकतंत्र को खतरे से बाहर निकाले।फिर भी अगर नरेंद्र मोदी की सरकार बन गयी तो मतलब ‘जनता भी मिली हुई है जी’ और अगले 5 साल तक लोकतंत्र फिर खतरे में ही रहेगा।