लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के एक हफ्ते बाद आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। देश और दुनिया के कई नामचीन हस्ती एवं राजनेताओं सहित करीब 6000-7000 मेहमानों के समक्ष प्रधानमंत्री मोदी और उनके नए कैबिनेट को वर्तमान राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द उक्त पदों की शपथ दिलाएंगे।
जहां एक तरफ बिम्स्टेक समूह के सभी देशों के राजनेता एवं मॉरीशस के प्रधानमंत्री इस ऐतिहासिक समारोह का हिस्सा होंगे, तो वहीं देश के कुछ राजनेता अपनी संकीर्ण सोच का परिचय देते हुये इस समारोह से दूरी बनाए रखेंगे। आइये देखें वो कौन हस्तियां/नेता है, जो पीएम मोदी के शपथ ग्रहण का हिस्सा नहीं बनेंगे –
सबसे पहले बात करते हैं पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की। पश्चिम बंगाल में अपनी तानाशाही रवैये के लिए बदनाम ममता ने पिछली बार भी मोदी के शपथ ग्रहण में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। हालांकि, इस बार उन्होंने पश्चिम बंगाल में चुनाव के अप्रत्याशित नतीजों को ध्यान में रखते हुए हामी भरते हुए शपथग्रहण में आने का निर्णय लिया।
पर जैसे ही भाजपा ने राज्य में चुनावी हिंसा के दौरान मारे गए 51 पार्टी कार्यकर्ताओं के परिवारजनों को पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में निमंत्रण देने का निर्णय लिया, वैसे ही ममता बनर्जी ने अपने सुर बदलते हुए समारोह में हिस्सा लेने से मना कर दिया। न केवल उन्होंने भाजपा पर समारोह का राजनीतिकरण का आरोप लगाया, बल्कि टीएमसी कार्यकर्ताओं पर हो रहे कथित अत्याचार के विरोध में धरने पर बैठने का भी ऐलान कर दिया।
ममता बनर्जी के अलावा विभाजित आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी इस शपथ ग्रहण में हिस्सा नहीं लेंगे। अपने अवसरवादी रवैये की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहने वाले चंद्रबाबू नायडू ने पिछले वर्ष एनडीए गठबंधन से नाता तोड़ते हुए अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं को पंख देते हुए पहले संसद में अविश्वास प्रस्ताव को आगे बढ़ाया, और फिर अन्य विपक्षी नेताओं के साथ मिलकर महागठबंधन की नींव रखी।
कांग्रेस के महागठबंधन से हाथ खींचने के बावजूद चंद्रबाबू नायडू चुनाव के परिणाम घोषित होने तक अपने हित साधने में व्यस्त थे। पर चुनाव परिणाम से न सिर्फ देश ने, बल्कि खुद आंध्र प्रदेश की जनता ने उन्हें सिरे से नकारते हुए उनके प्रबल विरोधी एवं वाइएसआर कांग्रेस के मुखिया जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना।
इनके अलावा वामपंथियों ने भी पीएम मोदी के शपथग्रहण समारोह को बहिष्कृत करने की अपनी मंशा खुलकर ज़ाहिर की है। देश के इकलौते वामपंथी सीएम, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने जहां इस समारोह में हिस्सा लेने से मना कर दिया है, वहीं अभी अभी तमिलनाडू में महत्वपूर्ण जीत दर्ज़ करने वाले डीएमके प्रमुख एम के स्टालिन ने भी इस समारोह में हिस्सा लेने से मना कर दिया है। हालांकि, स्टालिन अपने कुछ सांसदों को इस समारोह में भाग लेने की अनुमति दे सकते हैं।
पर यदि किसी का इस शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा न लेना सबसे ज़्यादा चर्चा का विषय बन सकता है, तो वो है कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों का अघोषित बहिष्कार। एक तरफ कांग्रेस के आलाकमान यानि सोनिया गांधी और राहुल गांधी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ इस समारोह में शिरकत करेंगे। वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों ने पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह का अघोषित बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। जहां भूपेश बघेल ने निस्संकोच पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आने से मना कर दिया, वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ एवं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी बिना कहे इस समारोह में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद का कहना है कि, ‘कांग्रेस निश्चित ही मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेगी। चुनाव दो विचारधाराओं, दो पार्टियों के बीच का मामला है लेकिन शपथ ग्रहण समारोह देश के प्रधानमंत्री का है। पीएम पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं। हम उनसे उम्मीद करते हैं कि वह देश के लोगों से समानता का व्यवहार करेंगे।”
अब एक तरफ तो कांग्रेस विचारधारा से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में फैसले लेने की बात करती है, और दूसरी तरफ उसके खुद के नेता पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हो रहे। ऐसे में ये कांग्रेस का दोहरा रुख है या नहीं आप खुद ही तय करिए।
जहां एक तरफ पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में कई अहम हस्तियों से आगमन से पीएम मोदी की साख में और इजाफा होने का अंदेशा है, तो वहीं कुछ राजनेता अपनी संकीर्ण मानसिकता का शिकार होकर न सिर्फ अपनी बल्कि पार्टी की भी इज्जत पर एक गहरा बट्टा लगाने को तैयार हैं।