मोदी सरकार के राज में पिछले 5 सालों में देश की आतंरिक सुरक्षा के साथ-साथ देश की बाहरी सुरक्षा भी मजबूत हुई है। इसी का नतीजा निकला है कि पिछले 5 वर्षों में देश में कोई भी बड़ी सांप्रदायिक हिंसा नहीं घटी है। इसके अलावा दिन-रात देश पर हमला करने की फिराक में रहने वाले आतंकियों से निपटने में भी भारत सरकार ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। हालांकि, देश की मीडिया के एक वर्ग को मोदी सरकार की ये उपलब्धियां बिल्कुल नहीं पचती। मीडिया का यह खास वर्ग अक्सर किसी एक घटना को आधार बनाकर उसका बड़े पैमाने पर कुछ इस तरह प्रचार करता है जिससे कि यह साबित हो सके कि देश में पिछले कुछ वर्षों में असहिष्णुता बढ़ी है।
मोदी सरकार आने के बाद देश में लोकतन्त्र की हालत को बड़े ‘गौर’ से परखने वाले क्रांतिकारी लेखक अजय गुड़ावर्दी ने ‘द वायर’ में लिखे अपने नवीनतम लेख में यह दावा किया कि देश में मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली कथित सांप्रदायिक हिंसक घटनाओं के पीछे भारतीय समाज में उपजता ‘इस्लामोफोबिया’ है। इस लेख में अजय गुड़ावर्दी ने बड़े चालाकी से यह दिखाने की कोशिश की, कि कुछ ‘ऐतिहासिक’ कारणों की वजह से देश में मुस्लिमों को ‘बाहरी’ के तौर पर देखा जाने लगा है। वे लिखते है ‘देश की आम जनता के दिमाग में इस बात को बैठा दिया गया है कि पूर्व में मुस्लिम शासकों ने हिंदुओं के खिलाफ जमकर ज़ुल्म ढाया, जिसके बाद अब एक राजनीतिक प्रक्रिया के तहत उनको समाज से अलग करने का काम किया जा रहा है’।
देश में अगर किसी एक समुदाय विशेष के खिलाफ कोई हिंसक घटना होती है, तो जाहिर है कि वह कानून की अवहेलना से जुड़ा मामला बनता है, और उसके बाद कानून और न्याय तंत्र अपना काम करता है। हालांकि, इन घटनाओं को चुन-चुन कर प्रकाशित करना और उसमें हिन्दू-मुस्लिम का तड़का लगाकर वामपंथी गैंग से वाहावाही बटोरना, इस वामपंथी मीडिया की एजेंडावादी मानसिकता को दिखाता है। यह मीडिया का वर्ग बड़ी होशियारी से उन्हीं खबरों का प्रचार करता है जिससे कि वामपंथी गुट को अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में आसानी हो सके।
‘द वायर’ का यह लेख भी इसी का एक उदाहरण है। जेएनयू प्रोफेसर अजय गुड़ावर्दी अपने इस लेख में राजनीतिक विश्लेषक पॉल ब्रास की एक किताब का हवाला देते हुए कहते हैं कि देश में मुस्लिमों के खिलाफ होंने वाली घटनाओं को एक सुनियोजित तरीके से प्लान किया जाता है। अपने इस दावे को सही साबित करने के लिए इस लेख में गौ-तस्करों के खिलाफ होने वाली घटनाओं को अंकित किया गया है। यानि कुल मिलाकर इस लेख में लेखक अजय ने इस बात को साबित करने की कोशिश की है कि पूरा प्रशासनिक और राजनीतिक ढांचा इन तथाकथित मुस्लिम विरोधी तत्वों का भरपूर साथ देता है, हालांकि लेखक महोदय ने अपने इस पूरे लेख में गौ-रक्षकों को लेकर दिए पीएम मोदी के बयान को कहीं जगह नहीं दी। पीएम मोदी सार्वजनिक मंच पर यह स्वीकार कर चुके हैं कि गौ-रक्षकों की आड़ में कुछ तत्व हिंसा फैलाते हैं और राज्य सरकारों को उनके खिलाफ कड़ा एक्शन लेना चाहिए। यानि भाजपा और भाजपा सरकार, दोनों गौ-रक्षा की आड़ में चल रहे गैर-कानूनी गतिविधियों को लेकर गंभीर हैं, हालांकि भाजपा के इस विचार का ‘द वायर’ ने कहीं कोई ज़िक्र नहीं किया।
मीडिया का यह वर्ग तथ्यों की परवाह किए बिना अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में विश्वास रखता है। उनकी इसी एजेंडावादी मानसिकता के फलस्वरूप ‘द वायर’ ने ‘अवैध घुसपैठियों को लेकर दिये अमित शाह के एक बयान को भी हिन्दू-मुस्लिम के चश्में से देखना शुरू कर दिया। लेख में लिखा है ‘आजकल मुस्लिमों को गरीबी और घटिया जीवन स्तर से जोड़कर देखा जाने लगा है, खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपने भाषण में ‘दीमक’ का इस्तेमाल किया था’। आपको बता दें कि भाजपा का पहले से ही यह कहना है कि देश में अवैध घुसपैठियों को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, जोकि तर्कसंगत भी है क्योंकि देश के संसाधनों पर पहला हक भारतीय लोगों का है। हालांकि इसको लेकर भी यह लिबरल मीडिया हिन्दू-मुस्लिम का अपना राग अलापना शुरू कर देते है।
देश का यह लिबरल गैंग अपने तरीके से खबरों का चुनाव कर, अपनी हिन्दू-विरोधी मानसिकता को बढ़ावा देता रहता है। कई मीडिया संगठन तो अपनी खबरों में ‘हिन्दू आतंकवादी’ शब्द का प्रयोग करने से भी नही डरते। हालांकि जब देश में एक समुदाय विशेष के खिलाफ कोई मामूली सी घटना भी घटित होती है, तो यह गैंग तुरंत उसमें सांप्रदायिक एंगल खोजकर ‘इस्लामोफोबिया’ जैसे शब्दों का प्रचार करना शुरू कर देता है। पिछले कुछ वर्षों में देश में मीडिया का जो स्तर गिरा है, उसमें इस लिबरल गैंग का सबसे बड़ा योगदान है।