एक बार फिर से ‘फतवा’ चर्चा में है और इस बार फतवे के केंद्र में है पहली बार चुन कर आई टीएमसी की सांसद नुसरत जहाँ रुही। चुनाव में जीत हासिल करने के बाद नुसरत तुर्की में विवाह करने चली गयी थी। जब वह विवाह कर देश लौटी और संसद पहुंची तो उन्होंने सबको हैरान कर दिया। वह साड़ी पहने हुई थी, उनके सिर पर सिंन्दूर लगा था और हाथो पर मेहंदी लगी थी तथा कलाई में चूड़िया थी। उनका विवाह 19 जून को बिजनेस मैन निखिल जैन से तुर्की के एक शहर बोद्रुम में हिन्दू रीति रिवाज से हुआ था। इस सांसद ने जब लोक सभा में शपथ ली, तो हिन्दू परंपरा के अनुसार स्पीकर के पांव छूकर उन्हें प्रणाम भी किया। नुसरत का यह आचरण दारुल उल्लूम देवबन्द को पसंद नहीं आया और उनके खिलाफ एक जैन से शादी करने के कारण फतवा जारी कर दिया।
इस पर मुस्लिम धर्मगुरु असद वसमी ने कहा कि, ‘जांच के बाद पता चला कि नुसरत ने जैन धर्म के युवक से शादी की है। इस्लाम कहता है कि मुस्लिम की शादी मुस्लिम से होनी चाहिए। नुसरत एक अभिनेत्री हैं और अभिनेता-अभिनेत्री धर्म की फिक्र नहीं करते। जो उनका मन करता है, वही करते हैं। इसी का प्रदर्शन उन्होंने संसद में किया।’
देवबंद और विवादित फतवों का बड़ा पुराना संबंध रहा है। यह पहला मौका नहीं है जब देवबन्द ने ऐसा फतवा जारी किया हो। इस संस्था ने इससे पहले भी महिला सशक्तिकरण के खिलाफ जाकर मुस्लिम महिलाओं पर बेतुके फतवे निकाले हैं।
मई 2010 में दारुल उल्लूम देवबन्द ने फतवा जारी करते हुए कहा था कि शरिया के अनुसार एक महिला का किसी भी ऑफिस में काम करना हराम है और उन्हे किसी मर्द से बिना पर्दे के बात करना भी मना है। आज के इस प्रगतिशील समाज में जहाँ महिलाएं पुरुष के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है और विकास में बराबर की साझेदार है, इस तरह का फतवा मुस्लिम महिलाओं को पीछे धकेलता है।
वही सितंबर 2013 इस संस्था ने फोटो खींचने पर भी फतवा जारी किया था। ऐसे ही देवबन्द ने महिलाओं द्वारा बाल कटवाने के खिलाफ भी फतवा जारी किया था। इसमें कहा गया था की महिलाएं पति के इजाजत के बिना अपने बाल नहीं कटवा सकती हैं।
दारुल उल्लूम देवबन्द ने महिलाओं को बिना पर्दे के पंचायती चुनाव लड़ने पर भी फतवा के जरिये रोक लगाई थी। साथ ही कहा था कि महिलाओं के स्थान पर उनके चुनाव प्रचार पति करेंगे। इसके अलावा देवबंद के मौलवियों ने महिलाओं के पैंट पहनने पर भी रोक लगाई थी।
इस इस्लामी संस्थान ने परिवार नियोजन पर भी फतवा जारी किया था और इसे हराम बताया था। यही नहीं 2018 में इस इस्लामी शिक्षण संस्थान ने नेल पॉलिश लगाने वाली मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी किया था, और कहा था यह इस्लाम के खिलाफ और अवैध है। इसके बजाए महिलाओं को अपने नाखुनों पर मेहंदी लगानी चाहिए।
यह फतवे मुस्लिम महिलाओं को सिर्फ रोजगार से ही नहीं रोकते बल्कि उन्हें अच्छी शिक्षा से भी रोकता है। भारत में सभी बड़े संस्थानों में लड़के और लड़कियाँ दोनों पढ़ते है। और ऐसे फतवों से वो अपने आप आप चारदीवारी में कैद महसूस करती है। यह उनके स्वतन्त्रता के बिल्कुल खिलाफ है।
देवबंद के कट्टरपंथी मौलवियों द्वारा महिलाओं के खिलाफ ऐसे फतवे निकालना उनके महिला विरोध को दिखाता है। नुसरत संसंद पहुंच कर महिलाओं की आवाज़ को देश के सामने रखेंगी और उनके विकास में योगदान देंगी पर दारुल उल्लूम देवबन्द का उनके खिलाफ फतवा दिखाता है कि वो महिलाओं को आगे ही नहीं बढ्ने देना चाहते है। एक ओर विश्व आज टाइटन (शुक्र ग्रह का चाँद ) पर जीवन तलाश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह संस्था धुर महिला विरोधी फतवा जारी कर रहा है। देवबंद की इस महिला विरोधी मानसिकता की निंदा की जानी चाहिए। नए भारत के निर्माण में महिलाओं की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है।