रक्षा मंत्रालय ने “प्रोजेक्ट -75 इंडिया (P-75I)” के तहत 6 अत्याधुनिक पनडुब्बियों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की है। यह भारतीय नौसेना के इतिहास में सबसे बड़े सौदों में से एक है। इसकी लागत लगभग 50,000 करोड़ रुपये होगी, जो राफेल सौदे के लगभग बराबर है, जिसकी लागत लगभग 60,000 करोड़ रुपये थी।
रक्षा मंत्रालय ने भारतीय शिपयार्ड को ‘एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट’ जारी कर दिया है। छह पनडुब्बियों को विदेशी कंपनियों के साथ “रणनीतिक साझेदारी (एसपी)” मॉडल के तहत एक भारतीय शिपयार्ड द्वारा बनाया जाएगा। यह निर्माण रक्षा क्षेत्र में मोदी सरकार की ‘ मेक इन इंडिया’ नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
परियोजना को पहली बार नवंबर 2007 में मंजूरी दी गई थी लेकिन यूपीए सरकार में नौकरशाही राजनीति के कारण ये आगे नहीं बढ़ पायी थी। अन्य महत्वपूर्ण रक्षा खरीद को प्राथमिकता देने के कारण मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका। निजी और सार्वजनिक भारतीय शिपयार्ड जैसे मझगांव डॉक लिमिटेड (Mazagon Dock Limited), मुंबई, कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड, गोवा शिपयार्ड लिमिटेड, और कई अन्य कंपनियों के बीच इस अरबों डॉलर के सौदे का मुकाबला होने की उम्मीद है।
डीसीएनएस (फ्रांस), थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम (जर्मनी), रोजोबोरोन एक्सपोर्ट रुबिन डिजाइन ब्यूरो (रूस) और साब कोकम (स्वीडन) जहाज निर्माता कंपनियों ने भारतीय नौसेना द्वारा जारी कि गई ‘सूचना के अनुरोध’ (आरएफआई) का जवाब दिया था। अब भारत इस बार इन्हीं कंपनियों में से किसी एक को यह टेंडर दे सकता है।
भारत ने इस पनडुब्बी कार्यक्रम को प्रोजेक्ट-75 (इंडिया) दिया है जिसे लेकर रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, “प्रोजेक्ट 75 (I) के तहत छह पनडुब्बियों का निर्माण से मौजूदा पनडुब्बी डिजाइन और विनिर्माण पर्यावरण-प्रणाली को प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण से बढ़ावा मिलेगा।”
हिंद महासागर में आधिपत्य स्थापित करने के लक्ष्य से भारतीय नौसेना अपनी क्षमता वृद्धि और आधुनिकीकरण के कार्यक्रम से गुजर रही है। और चीन की गतिविधियों में वृद्धि को देखते हुए, अपनी समुद्री क्षमताओं को बढ़ाना के लिए ही भारत इस रणनीतिक पर काम कर रही है।
हाल ही में, भारतीय नौसेना के अरिहंत-वर्ग के हमले वाली पनडुब्बियों में प्रमुख, INS अरिहंत ने समुद्र में अपनी पहली गश्त लगा कर भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया था। भारत तीनों मोर्चों से परमाणु हमला करने की क्षमता हासिल करने के बाद अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश है। भारत अब आधिकारिक रूप से न्यूक्लियर ट्रायड में सक्षम देश बन गया है, जिसका मतलब है कि जमीन, हवा और समुद्र से परमाणु हथियार दागने की क्षमता अब हमारे पास भी है।
इससे पहले, मिसाइल सिस्टम, पनडुब्बियों आदि के हिस्से भारत में बनाए जाते थे, लेकिन अधिकांश उपकरण पश्चिमी देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, फ्रांस और इंग्लैंड से आते थे। रक्षा सेवाओं में शीर्ष के अधिकारियों ने पूर्व में भारत में बने सामानों पर विदेशी हथियारों और गोला-बारूद को प्राथमिकता दी। लेकिन अब भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों सेवा के प्रमुख स्वदेशी विनिर्माण में रुचि दिखा रहे हैं और अत्याधुनिक तकनीक के साथ विश्व स्तरीय उपकरण विकसित करने के लिए डीआरडीओ, रिलायंस डिफेंस जैसी घरेलू कंपनियों और अनुसंधान संगठनों को समय और संसाधन देने पर सहमति व्यक्त की है।