बिहार में एक्यूट इन्सेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के प्रकोप ने नीतीश कुमार की मीडिया की मदद से बनाए गए अच्छे प्रशासक के लिबास को पूरी तरह से उजागर कर दिया है। इस बीमारी के कारण अब तक 100 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है।
12 जून को केन्द्रीय सरकार ने बिहार में 48 कथित एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामलों में एक मल्टी-स्पेशलिटी टीम तैनात की थी, लेकिन नितीश कुमार की बिहार सरकार ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया। और देखते ही देखते बिहार का मुजफ्फरपुर बच्चों के लिए कब्रिस्तान बन गया। पिछले सात दिनों में अभी तक लगभग 105 बच्चों की मौत हो चुकी है। यह आज का विषय या कोई नया मामला नहीं है। बिहार में यह बीमारी काफी पहले से है। कुछ दावों के अनुसार, इस बीमारी ने 2012 में मुजफ्फरपुर में कहर बरपाया, जिसमें 424 बच्चों की जान चली गई। वर्ष 2013 में, यह संख्या 222 थी, 2014 में, इस क्षेत्र में 379 इंसेफेलाइटिस से संबंधित मौतें हुईं। 2015, 2016, 2017 और 2018 में, संख्या क्रमशः 90, 103, 54 और 33 थी।
अब सवाल ये है कि 15 साल से सत्ता पर काबिज नितीश कुमार की सरकार ने इस बीमारी के रोकथाम के लिए क्या कदम उठाए? और मुजफ्फरपुर में बड़ी संख्या में बच्चों की मौत के बाद भी इस जानलेवा बीमारी से निपटने के लिए उस क्षेत्र में अच्छी फैसिलिटी वाले अस्पताल क्यों नहीं है? इस सवाल का जवाब तो खुद नीतीश कुमार के पास भी नहीं होगा। उन्होंने स्थिति को नज़रअंदाज़ किया और सब कुछ ठीक होने का ढोंग किया। उन्होंने एक ऐसे मंत्री को मुजफ्फरपुर भेजा जो मरीजों और मृत बच्चों के परिजनों के बारे में जानने की बजाय क्रिकेट मैच के स्कोर को जानने में अधिक रुचि रखते थे। ये समझ से बाहर है कि आखिर भारतीय राजनीति में ऐसे लापरवाह नेता को ‘सुशासन बाबू’ का तमगा किसने दे दिया।
2012 में, सरकार ने मुजफ्फरपुर में एक रिसर्च लैब स्थापित करने का वादा किया था ताकि यह पता चल सके कि बच्चे इस जानलेवा बीमारी से कैसे और क्यों प्रभावित हो रहे हैं। मुजफ्फरपुर और बिहार के अन्य क्षेत्रों में यह बीमारी हर साल मासूमों की जान लेती है। ऐसा माना जाता है कि यह लीची में पाए जाने वाले जहरीले पदार्थ से जुड़ा हुआ है और मुजफ्फरपुर में तो लीची उत्पादन का केंद्र है। एक अनुमान के मुताबिक, मुजफ्फरपुर और पड़ोसी इलाकों में हर साल लगभग 3 लाख मीट्रिक टन लीची उगाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि खाली पेट लीची खाने से शरीर में ग्लूकोज के स्तर में तेजी से गिरावट आती है, जिससे बच्चों का पाचन तन्त्र प्रभावित होता है और फिर तेज बुखार उसे अपनी चपेट में ले लेता है। सात साल में सैकड़ों मौतें लेकिन नीतीश सरकार के पास अभी भी इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है।
हद तो तब हो गयी जब इतने बच्चों की मौत पर कारवाई करने और स्थिति को संभालने की बजाय 15 जून को हुए नीति आयोग की पहली बैठक में नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की। अभी भी वो बिहार में मासूमों के हालात पर केंद्र को ही दोषी ठहराने का प्रयास कर रहे हैं। अब आप खुद ही सोचिये ऐसे में समय में नीतीश की मांग कितनी जायज है जब हर दिन कई परिवार अपने बच्चों की मौत से बिलख रहे हों ? ऐसे समय में मीडिया के सवालों से बचना, स्थिति को संभालने के लिए कोई उचित कदम न उठाना और राजनीति करना नीतीश सरकार के कामों की पोल खोलने का ही काम कर रहा है। बस मृतकों के परिवार को 4 लाख रुपये देने की घोषणा कर अपनी ज़िम्मेदारी से पलड़ा झाड़ लेना कहां तक सही है? वैसे भी नीतीश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड है भी कुछ ऐसा ही वो सिर्फ अपना हित देखते हैं और इसके लिए निम्न स्तर की राजनीति करते हैं.
नीतीश ने अपने राजनीतिक करियर में सभी को धोखा दिया है, किसी जमाने में अपने दोस्त लालू प्रसाद यादव को, गठबंधन के सहयोगियों को और अब तो बच्चों को भी नहीं बख्शा है। हम अपने वैबसाइट पर उनकी अवसरवाद राजनीति पर लेख प्रकाशित कर चुके है। नीतीश कुमार की पहली चूक तो तब भी साफ़ थी जब उन्होंने 2014 में केंद्र द्वारा घोषित एक महत्वाकांक्षी परियोजना को लागू करने में देरी की थी..तब इसी तरह के प्रकोप ने 379 बच्चों को मार दिया था। उस समय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने तब SKMCH का दौरा किया था और 100-बेड की सुपर-स्पेशियलिटी सुविधा की घोषणा की थी जो आज भी नीतीश सरकार द्वारा पूरी नहीं की गयी है। यदि यह सुविधा स्थापित की गई होती, तो कई प्रभावित बच्चे एसकेएमसीएच यानि कि केजरीवाल अस्पताल के लिए भेजे जाने से पहले प्राथमिक उपचार कर सकते थे।
वास्तव में नीतीश कुमार ने सत्ता की अंधी भूख में उन्होंने सभी को पीछे छोड़ दिया है। न ही वो एक अच्छे मित्र बन सके, न एक अच्छे सहयोगी और न ही एक सफल मुख्यमंत्री. इस प्रकोप के संबंध में नीतीश ने जो उदासीनता दिखाई है, वह इस बात का प्रतिबिंब है कि वह किस तरह का व्यक्तित्व रखते हैं।