प्रसिद्ध बंगाली लेखक एवं ऑस्कर पुरुस्कार से सम्मानित फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे ने एक बार लिखा था – अपने मातहतों को दरवाजा बंद करने के लिए एक अंग्रेज़ अफसर कहता था ‘देयर वाज़ अ ब्राउन क्रो‘, क्योंकि उन्हे ‘दरवाजा बंद करो’ बोलने में दिक्कत होती थी।
तो जिन यूरोपियन विद्वानों के हिन्दी और संस्कृत शब्दों के उच्चारण-भर में पसीने छूट जाते थे, उन्होंने मनुस्मृति जैसे गूढ शास्त्रों का इतनी आसानी से अनुवाद कैसे कर लिया? ये तो मात्र एक उदाहरण भर है, इन ‘विद्वानों’ ने सनातन धर्म को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। उदाहरण के लिए आप जगरनौट शब्द को ही देख लीजिये। जो प्रभु जगन्नाथ तीनों लोकों के स्वामी है, जिनके प्रभुत्व और उनके प्रति भक्तों की अटूट, निश्छल आस्था पर कोई संदेह नहीं कर सकता, उन्हें पश्चिमी इतिहासकारों एवं विद्वानों ने ‘जगरनौट’ शब्द के जरिये एक निकृष्ट, नरभक्षी राक्षस की पदवी दी है।
बंगाल के रास्ते ओडिषा आए ईसाई मिशनरियों के लिए प्रभु जगन्नाथ ‘मूर्तिपूजा के केंद्र’ थे। क्लौडियस बुकानन नामक एक मिशनरी के नेतृत्व में उन्होंने प्रभु जगन्नाथ के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। अपनी विवादित पुस्तक में क्लौडियस ने जगन्नाथ को जगरनौट की पदवी दी है, और हिन्दू धर्म को ‘रक्तपिपासु, हिंसक, अंधविश्वासी एवं पिछड़ा पंथ’ बताया है। बुकानन के अनुसार सनातन धर्म को क्रिश्चियन गोस्पेल के जरिये मिटाना अवश्यंभावी है। उन्होने जगरनौट शब्द के विवरण के लिए बाइबल के एक चरित्र मोलोक़ का उदाहरण दिया – जो एक कैनानाइट विभूति था, जिसे बच्चों की बलि दी जाती थी।
मोलोक़ इतना कुख्यात है की प्रसिद्ध विडियो गेम फ्रैंचाइज़ ‘मोर्टल कॉम्बैट‘ में एक राक्षसी कैरक्टर मोलोक़ को जोड़ा गया है – एक मांसभक्षी, जो युगों युगों तक लोगों पर अत्याचार करता है।
अपनी रचना में बुकानन ने यहां तक कहा कि प्रभु जगन्नाथ का धाम गोलगोथा के समान है – यानि वो जगह जहां ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। उन्होंने दावा किया की ‘जगरनौट’ की परंपरा का अर्थ है निरंतर रक्तपात, जिसमें बच्चों की इसलिए बलि चढ़ाई जाती थी जिससे काल्पनिक देवता प्रसन्न रहे। पर शायद अपने ही झूठ को उजागर करते हुये उन्होंने यह कहा की वे प्रभु जगन्नाथ के लिए लिखे भजन इसलिए नहीं पढ़ सकते क्योंकि उनके छंद काफी ‘आपत्तिजनक’ थे। उन्होंने जगन्नाथ की मूर्तिकला को ‘अभद्र प्रतीकों’ की संज्ञा दी।
इतना ही नहीं, बुकानन ने तो यहाँ तक कहा की प्रभु जगन्नाथ को समर्पित वार्षिक रथ यात्रा एक रक्तपूर्ण रीति थी, जिसमें, ‘प्रभु का रथ’ जब सड़कों पर निकलता था, तो असंख्य भक्त अपने आप को उसके सामने लिटा देते थे, जिसके कारण रथ के पहिये उन्हें कुचलकर निकल जाते थे और काफी रक्तपात होता था। माइकल जे औल्टमैन की पुस्तक ‘हीथेन, हिन्दू, हिन्द : अमेरीकन रीप्रेजेंटेशन्स ऑफ इंडिया’ के अनुसार –
‘बुकानन ने दावा किया कि, यह देवता तब मुसकुराते थे जब उन्हें रक्त का प्रसाद अर्पित किया जाता था’। जब उन्होंने भगवान जगन्नाथ की छवि देखि, तो बुकानन ने कुछ इस प्रकार विवरण किया – एक भयानक चेहरा, जो स्याह रंग में लिपटा हुआ था और जिसके मुख से रक्त बहता प्रतीत होता है।’
आज इसी क्लौडियस बुकानन के कारण जगरनौट का शाब्दिक अर्थ है – एक ऐसी शक्ति जो निर्दयी है, विध्वंसक है और अजेय है। पर ये कुछ भी नहीं है, आजकल कई भारतीय है जो इस शब्द का प्रयोग एक अजेय शक्ति के उत्थान को बताने के लिए करते हैं। हर स्वाभिमानी सनातनी को इस शब्द का उपयोग करने से बचना चाहिए और सभी को इस शब्द के हिन्दू विरोधी मूल से अवगत होना चाहिए।
जय जगन्नाथ।