शरद पवार की पार्टी एनसीपी, ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी, और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को इन लोकसभा चुनावों में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। इसके बाद अब इन पार्टियों के लिए जल्द ही एक और बुरी खबर आ सकती है। दरअसल, चुनावो में खराब प्रदर्शन के बाद इन पार्टियों से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीना जा सकता है। भारतीय चुनाव आयोग इस संबंध में इन पार्टियों को इस हफ्ते कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है। इसके साथ ही चुनाव आयोग इन पार्टियों की राष्ट्रीय पार्टी होने की योग्यता पर भी विचार करेगा और अगर ये पार्टियां राष्ट्रीय पार्टी होने के मापदंड पर खरा नहीं उतरती हैं, तो इनसे जल्द ही राष्ट्रीय पार्टी होने का स्टेटस छीना जा सकता है।
बता दें कि इलेक्शन सिंबल्स ऑर्डर 1968 के मुताबिक कोई भी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी तब मानी जाती है जब वह पार्टी चार या चार से ज़्यादा राज्यों में लोकसभा या विधानसभा के चुनाव लड़े और उस पार्टी का उन चुनावों में कम से कम 6 प्रतिशत वोट शेयर हो। इसके साथ ही लोकसभा चुनावों में उस पार्टी के कम से कम 4 सांसद चुने जाने चाहिए।
अगर कोई पार्टी इन मापदण्डों पर खरा नहीं उतरती है, तो उसके पास राष्ट्रीय पार्टी का स्टेटस हासिल करने का एक और विकल्प मौजूद है। अगर किसी पार्टी को तीन या तीन से ज़्यादा राज्यों में चुनाव लड़ने के बाद कुल लोकसभा सीटों में से कम से कम 2 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल की हो, तो भी वह पार्टी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करने के लिए योग्य होगी। यानि अगर किसी पार्टी को तीन राज्यों से 11 सीटें मिली हों, तो वह पार्टी राष्ट्रीय पार्टी का स्टेटस पाने की हकदार होगी।
इन सब के अलावा अगर किसी पार्टी को कम से कम 4 राज्यों में ‘राज्य पार्टी’ होने का दर्जा मिला हुआ है, तो वह पार्टी भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के योग्य होगी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावो के बाद टीएमसी, सीपीआई, बीएसपी और एनसीपी जैसी पार्टियों पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने का खतरा मंडराना शुरू हो गया था। उन चुनावों के बाद भी चुनाव आयोग ने इन पार्टियों को ‘कारण-बताओ’ नोटिस जारी किया था। हालांकि, वर्ष 2016 में चुनाव आयोग ने अपने नियमों में बदलाव किया था जिसके बाद इन पार्टियों को थोड़ी राहत मिली थी। नये नियमों के मुताबिक, अगर कोई राष्ट्रीय पार्टी चुनावों के बाद ‘राष्ट्रीय पार्टी’ होने के मापदण्डों पर खरा नहीं उतरती हो, तो भी उससे राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा नहीं छीना जाएगा। हालांकि, अगर अगर वह पार्टी उसके बाद के चुनावों में भी मापदण्डों पर खरा नहीं उतरती है, तो उस पार्टी से नेशनल पार्टी होने का स्टेटस छीना जाएगा।
बीएसपी की बात करें, तो इन चुनावों में पार्टी को 10 लोकसभा सीटें मिली हैं, इसके साथ ही पार्टी के पास कुछ विधानसभा सीटें भी हैं। ऐसे में बीएसपी पर तो ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा खोने का खतरा नहीं मंडरा रहा है, लेकिन बाकियों के लिए स्थिति सामान्य नहीं है।
नॉर्थ ईस्ट में बुरे प्रदर्शन के बाद एनसीपी से नेशनल पार्टी का टैग छिन सकता है। दूसरी तरफ, टीएमसी अभी सिर्फ बंगाल राज्य तक ही सीमित है, जिसके कारण वह राष्ट्रीय पार्टी के मापदण्डों पर खरा नहीं उतरती। सीपीआई के पास भी वोट शेयर और राज्यों में उपस्थिती की भारी कमी है।
ध्यान देने वाली बात है कि एक राष्ट्रीय पार्टी को पूरे देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए एक ही ‘इलैक्शन सिंबल’ दिया जाता है। इसके साथ ही राष्ट्रीय पार्टियों को सरकारी टैलीविज़न और रेडियो पर फ्री कैंपेन स्लोट्स दिये जाते हैं, जिसके तहत इन पार्टियों को प्रचार करने में आसानी होती है। राष्ट्रीय पार्टी को नई दिल्ली में अपना ऑफिस खोलने का अधिकार भी प्राप्त होता है।
अभी भारत में कुल 8 राष्ट्रीय पार्टियां हैं, जिनमें टीएमसी, बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, एनसीपी, सीपीआई, सीपीआई(एम) और ‘नेशनल पीपल्स पार्टी ऑफ मेघालय’ पार्टी शामिल हैं। मौजूदा स्थिति के हिसाब से देखा जाए तो टीएमसी, एनसीपी और सीपीआई अपना राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा खो सकते हैं और देश में राष्ट्रीय पार्टियों की संख्या मात्र 5 तक सीमित हो सकती है।