लंबे समय से राज्यसभा में अटका ट्रिपल तलाक बिल मंगलवार को सर्वसम्मति से पास हो गया। उपस्थित सदस्यों में से 99 मत इस बिल के पक्ष में पड़े, जबकि लगभग 84 मत इस बिल के विरोध में डाले गए। इस निर्णय का स्पष्ट संदेश है कि तीन तलाक की रूढ़िवादी प्रथा अब इतिहास बन चुका है। इस बिल के दोनों सदनों से पारित होने का अर्थ है कि अब तीन तलाक देना अपराध माना जायेगा।
जहां एक ओर कई मुस्लिम महिलाएं इस ऐतिहासिक निर्णय से काफी खुश हैं, तो वहीं कुछ छद्म बुद्धिजीवियों ने इस निर्णय पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। वे इस बिल के पास होने से उतने दुखी नहीं दिख रहे, जितना दुख उन्हें इस बात से है कि यह बिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पारित किया गया है।
इस कुंठा का प्रत्यक्ष प्रमाण ‘द वायर’ की विवादित पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी के ट्विटर थ्रेड में देखने को मिला, जब उन्होंने इस संशोधन के विरोध में अपने विचार अपने ट्विटर टाइमलाइन पर प्रकट किए –
Let there be no doubt #TripleTalaqBill is an extension of Modi govt’s anti-Muslim politics.
It is not only against Muslim men but against Muslim women as well.
It satisfies only one agenda of this govt-
Demonise Muslim men,Patronise Muslims women.
And appease the Hindu vote bank.— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) July 30, 2019
इन ट्वीट्स के अनुसार आरफ़ा ने वर्तमान ट्रिपल तलाक बिल को अल्पसंख्यक विरोधी बताया है। द वायर’ की विवादित पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी के अनुसार ये निर्णय केवल हिन्दू वोट बैंक को खुश करने के लिए लिया गया है। इतना ही नहीं, आरफ़ा ने ये भी कहा कि ट्रिपल तलाक को एक अपराध की संज्ञा देकर मोदी ने केवल इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया है।
इन ट्वीट्स से साफ पता चलता है कि आरफ़ा जैसे लेफ्ट लिबरल मोदी विरोध में नैतिकता और न्याय के सिद्धांतों का मज़ाक उड़ाने से भी बाज़ नहीं आएंगे। ट्रिपल तलाक को अपराध घोषित करने के पीछे एनडीए सरकार की केवल एक मंशा थी और वो ये थी कि मुस्लिम महिलाओं को भी इस देश में उनके उचित अधिकार मिलने चाहिए। यदि एक रूढ़िवादी प्रथा से महिलाओं को मुक्त कराना है, तो यह एक प्रगतिशील निर्णय हुआ। साफ शब्दों में कहे तो ट्रिपल तलाक के विरोध में लाया गया बिल नारी सशक्तिकरण की ओर बढ़ाया गया एक सार्थक कदम है।
तो भला आरफ़ा को इस निर्णय से क्यों आपत्ति होनी चाहिए? दरअसल, आरफ़ा लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवियों के उस विशेष वर्ग का हिस्सा हैं, जो देश के अल्पसंख्यकों में प्रधानमंत्री मोदी की एक नकारात्मक छवि बनाए रखना चाहते हैं। ऐसे में यदि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ऐसे निर्णय ले जो अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए वास्तव में हितकारी हो, तो भला एजेंडा प्रेमी इन बुद्धिजीवियों को यह कैसे अच्छा लगेगा? ऐसे में आरफ़ा द्वारा पोस्ट किए इन अशोभनीय ट्वीट्स पर सोशल मीडिया यूजर्स ने उन्हें जमकर लताड़ लगाई –
https://twitter.com/FrankDRoose07/status/1156227937198194688
Agar poori debate me
Poore bill me
Poori bato ko samajhne ke baad tumko yahi samjh aaya ki ye bill anti muslim politics hai
To
Tum Bimaar ho, bahut BimaarAur aise logo ko ek hi javaab
Ukhaad lo🚩🚩😂😂
— RiseOfBurnol🇮🇳 (@RiseofBurnol) July 30, 2019
https://twitter.com/IndiafirstRajni/status/1156270429247397888
Thanks. So hopefully Pakistan will also soon appease Hindus as such a law will soon be passed by Pakistan also.
— NK Sood (@rawnksood) July 30, 2019
https://twitter.com/TIP_Pradhanjii/status/1156268844949757952
https://twitter.com/ThePlacardGuy/status/1156264578163961856
आरफा की तरह पत्रकार ज़ैनब सिकंदर ने भी इस बिल का विरोध करते हुए एक बड़ा ही बेतुका पोस्ट अपने ट्विटर टाइमलाइन पर डाला। इस पोस्ट के अनुसार ‘ये बिल केवल अल्पसंख्यकों को ही निशाने पर ले रहा है, और बाकी समुदायों के पतियों को अपने पत्नियों को छोडने की पूरी आज़ादी है।’
All men in India can abandon their wives merrily, without any fear of punishment, EXCEPT Muslims.
Shouldn't this be an incentive for women of all religions to marry Muslim men? Greater chance of not being abandoned?#TripleTalaq
— Zainab Sikander (@zainabsikander) July 30, 2019
हालांकि यह पहला ऐसा अवसर नहीं है जब मोदी विरोध में आरफ़ा ने अपनी सभी सीमाएं लांघ दी हो। हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान के साथ साक्षात्कार में आरफ़ा ज़बरदस्ती आरिफ़ के मुंह से मोदी विरोधी और हिन्दू विरोधी बयान निकलवाना चाहती थी, जिसकी आरिफ़ ने जमकर आलोचना भी की। इससे पहले भी आरफ़ा ने सोशल मीडिया पर तब विवाद खड़ा कर दिया, जब वंदे मातरम नारे को उन्होंने ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ करार दिया, और अप्रत्यक्ष रूप से इसी विषय पर अशफाकुल्लाह खान जैसे वीर क्रांतिकारी पर तंज़ भी कसा।
इतना ही नहीं, पिछले वर्ष मोदी सरकार के विरुद्ध लाये गए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जब ऑस्ट्रेलिया के जानेमाने इमाम मोहम्मद ताहिदी ने राहुल गांधी के स्वभाव पर चुटकी ली थी जो आरफा को बिलकुल रास नहीं आया, इससे आक्रोशित होकर आरफा ने ये पोस्ट किया था –
सच पूछें तो तीन तलाक के विरोध में लाये गए बिल का दोनों सदनों से पारित होना इन एजेंडावादी पत्रकारों एवं बुद्धिजीवियों पर एक करारा तमाचा है। एक व्यक्ति के विरोध के नाम पर यदि कोई नैतिकता एवं सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का मज़ाक उड़ाए, तो यह किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। आरफ़ा के इन ट्वीट्स में ये बात साफ दिखाई देती है, और इसके लिए आरफा की जितनी निंदा की जाये, कम है।