अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व वाली अमेरिकी सरकार बार-बार कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप चाहती है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अमेरिकी बयानों को कोई खास अहमियत नहीं दे रही है। हाल ही में पाक प्रधानमंत्री इमरान खान के दौरे पर मध्यस्थता को लेकर अमेरीकी राष्ट्रपति ने विवादित बयान दिया था, इसके 10 दिन बाद फिर से ट्रंप ने कश्मीर मुद्दे पर ताजा बयान दिया है। ट्रम्प ने कश्मीर को लेकर गुरूवार को कहा था कि मध्यस्थता का फैसला भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ में है। अगर भारत-पाक चाहेंगे तो मैं इस मुद्दे पर जरूर हस्तक्षेप करना चाहूंगा।
हालांकि, इस मुद्दे पर एक बार फिर से विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका की बोलती अपने जवाब से बंद कर दी है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से स्पष्ट कर दिया है कि भारत और पाकिस्तान के सभी मुद्दे द्विपक्षीय वार्ता से ही बात बनेगी। भारत को किसी तीसरे पक्ष की आवश्यकता नहीं है। बैंकॉक में आयोजित आसियान समिट के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से मुलाकात की और उनसे कहा है कि ‘भारत-पाकिस्तान के सभी मुद्दे द्विपक्षीय वार्ता से सुलझाए जायेंगे। हमें किसी तीसरे पक्ष की आवश्यकता नहीं है।’
दरअसल, गुरुवार को एक प्रेस ब्रीफ़ के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत द्वारा अमेरिका के मध्यस्थता के प्रस्ताव को ठुकराए जाने के एक सवाल पर कहा, ‘यह (मध्यस्थता पर निर्णय) पूरी तरह से पीएम मोदी पर निर्भर करता है, मैं पीएम इमरान खान से भी मिला। मुझे लगता है दोनों देशों के प्रधानमंत्री बहुत अच्छे इंसान हैं। अगर पीएम मोदी यह चाहते हैं की कश्मीर मुद्दे पर कोई मध्यस्थता करे तो हम तैयार हैं।
इधर अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान के तुरंत बाद ही भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर फिर से स्पष्ट कर दिया है कि भारत और पाकिस्तान के मामले में किसी तीसरे देश के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं।
दरअसल, बैंकॉक में आयोजित दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में आज विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के बीच मुलाकात हुई। मुलाकात के दौरान विदेश मंत्री ने आज सुबह ट्वीट कर बताया कि वो अमेरिकी समकक्ष विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ को स्पष्ट शब्दों में कह चुके हैं कि अगर कश्मीर पर कोई भी चर्चा होगी तो वह केवल द्विपक्षीय होगी और पाकिस्तान के साथ ही होगी।
Wide ranging discussions with @SecPompeo on regional issues. pic.twitter.com/SOLxBDe3Q0
— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) August 2, 2019
बता दें कि इससे पहले डोनाल्ड ट्रम्प ने 22 जुलाई को इमरान खान के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि मोदी दो हफ्ते पहले उनके साथ थे और उन्होंने कश्मीर मामले पर मध्यस्थता की पेशकश की थी। इस बयान पर इमरान ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि ‘अगर आप ऐसा करा सकें, तो अरबों लोग आपको दुआ देंगे।’
भारतीय विदेश मंत्रालय ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के करीब एक घंटे बाद ही ट्रम्प के दावे को नकार दिया। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि मोदी और ट्रम्प से इस मुद्दे पर ऐसी कोई बात ही नहीं हुई है। भारत अपने निर्णय पर कायम है। पाकिस्तान के साथ सारे मसले द्विपक्षीय बातचीत के जरिए ही हल किए जाएंगे।
इससे पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राज्यसभा में भी स्पष्ट करते हुए कहा था, ‘भारत की स्थिति हमेशा से साफ रही है कि पाकिस्तान के साथ कोई भी मुद्दा द्विपक्षीय तरीके से ही सुलझाया जाएगा। पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए सीमा पार से आतंकवाद बंद होना जरूरी है।’ आगे उन्होंने कहा, ‘शिमला समझौता और लाहौर घोषणा पत्र, भारत और पाकिस्तान के बीच सभी द्विपक्षीय मुद्दों को हल करने का आधार प्रदान करता है।’
आपको यह बता दें कि भारत और पाकिस्तान के बीच 3 जुलाई 1972 को शिमला समझौता हुआ था। जिस पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। वर्ष 1971 में हुए युद्ध के बाद के हालातों में हुआ ये समझौता एक शांति समझौते से कहीं ज्यादा था। इसमें दोनों देशों ने आपसी प्रतिबद्धता से ये तय किया था कि हर विवाद का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से द्विपक्षीय बातचीत के जरिए हल किया जाएगा।
वहीं लाहौर घोषणापत्र भला कौन भुल सकता है जब वर्ष 1999 में सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी दो दिवसीय (19-20 फरवरी) दौरे पर पाकिस्तान गए थे। तब भारत-पाकिस्तान के संबंध मजबूत करने के लिए उन्होंने दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करते हुए खुद बस में लाहौर तक यात्रा की थी। 21 फरवरी 1999 को उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया था। जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता स्थापित करने के अलावा वहां रहने वाले लोगों की प्रगति और समृद्धि सुनिश्चित करना था।
यह पाकिस्तान की करतूतों का फल है कि अभी तक यह मामला नहीं सुलझ पाया है। पाकिस्तान लगातार कश्मीर में आतंकवादी हमलों और अलगाववादियों को फंडिंग कर भारत को अस्थिर करने का प्रयास करता रहा, अगर पाक पहले ही शिमला समझौते को मान लेता तो यह नौबत ही नहीं आती। आज भी पाकिस्तान के पास यह विकल्प मौजूद है कि वह अपने आतंकी गतिविधियों को बंद कर दे तब भारत उससे वार्ता के लिए तैयार हो जाएगा क्योंकि इन दोनों ही देशों के पास शिमला समझौता और लाहौर घोषणापत्र जैसे मजबूत विकल्प मौजूद हैं और किसी भी तीसरे देश चाहे वो विश्व की महाशक्ति भी क्यों न हो उसकी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।