पिछले कुछ दिनों से जम्मू-कश्मीर खबरों के केंद्र में बना हुआ है, और वजह है मोदी सरकार का प्रेसीडेंशियल ऑर्डर से अनुच्छेद 370 के खंड 1 को छोड़कर सभी खंडों को निरस्त कराना और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक को दोनों ही सदनों से पारित कराना। इस विधेयक से केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख क्षेत्र में बांट दिया गया है। मोदी सरकार ने मंगलवार को ये विधेयक लोकसभा में पेश किया और इसे पारित भी करा लिया। लोकसभा में इस विधेयक के पक्ष में 351 मत पड़े और विपक्ष में सिर्फ 72 यानी तीन चौथाई से भी अधिक मत के साथ इसे पारित करा लिया गया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा और जम्मू-कश्मीर राज्य का द्विविभाजन हो जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार इस बात की ओर ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं कि गृहमंत्री अमित शाह ने इस बिल को लोकसभा के बजाए पहले राज्यसभा में क्यों पेश किया जहां वे अल्पमत में हैं। यह कोई संयोग नहीं था बल्कि मोदी सरकार की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था। पहला यह कि मोदी सरकार देश को संदेश देना चाहती थी कि वह इस मामले पर अडिग है। सरकार यह स्पष्ट करना चाहती थी कि यह विधेयक केवल सदन में संख्या के बारे में नहीं था बल्कि यह राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखने के बारे में था। राज्यसभा में बहुमत न होने बावजूद पहले बिल को वहीं पेश कर मोदी सरकार यह बताना चाहती थी कि उसे बहुमत या अल्पमत की चिंता नहीं है क्योंकि यह बिल राष्ट्रहित में है जोकि इतिहास में की गयी गलतियों का सुधार है।
जब बात देशहित की आती है तो अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों से भी यही उम्मीद की जाती है कि वह भी सरकार का साथ दें और ऐसा ही हुआ। बीजेडी, बीएसपी, आप, वाईएसआरसीपी टीडीपी एआईएडीएमके जैसी पार्टियों ने केंद्र सरकार का अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटने के फैसले का समर्थन किया। जिस तरह से सरकार के इस कदम के समर्थन में कई विपक्षी दल आए, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार ने राष्ट्रीय हित में विधेयक और प्रस्ताव पेश किया, जो किसी भी राजनीति से ऊपर है।
दूसरा कारण यह है कि भाजपा ने लोकसभा में पहले विधेयक और प्रस्ताव को पेश करके यह संदेश नहीं देना चाहती थी कि उनकी सरकार अपने बहुमत से किसी भी बड़े बिल को जबरन पारित करा रही है। यहाँ प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने परिपक्व निर्णय लेते हुए संवेदनशील बिल को पहले राज्यसभा में पेश किया।
अगर अमित शाह ने इस बिल को पहले लोकसभा में पेश किया होता, तो इससे विपक्ष राज्यसभा में विधेयक को पारित करने से रोकने का मौका मिल जाता जहां विपक्ष अभी भी बहुमत में है। राज्यसभा में इस विधेयक को पेश करके, शाह ने विपक्षी दलों को आश्चर्यचकित कर दिया जिससे विपक्ष को कोई मौका ही नहीं मिला कि वे देशभर में इस विधेयक के बारे में दुष्प्रचार करें। राष्ट्रहित के इस मामले पर कई दलों ने मौके की नजाकत और इस विधेयक के महत्व को समझते हुए केंद्र सरकार का समर्थन किया। जिससे सरकार ने इस विधेयक को आसानी से पारित करा लिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक और अनुच्छेद 370 हटाने के प्रस्ताव को पेश करने के लिए राज्यसभा को ही क्यों चुना।