लोकसभा चुनाव 2019 में प्रचंड बहुमत हासिल करने के बाद भाजपा ने सरकार गठन से पहले ही 20 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के जरिए दूसरे कार्यकाल में सरकार की प्राथमिकताओं को बता दिया था। रामनाथ कोविंद ने कहा था, ‘‘मेरी सरकार ने घुसपैठ प्रभावित इलाकों में प्राथमिकता के आधार पर राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण की प्रक्रिया को लागू करने का फैसला किया है।’’
सरकार अपने इस फैसले को धरातल पर उतारने की कवायद अब शुरू कर चुकी है। मोदी सरकार ने असम में एनआरसी की तर्ज पर सितंबर 2020 तक पूरे देश के सभी नागरिकों के ब्यौरे वाला राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तैयार करने का फैसला किया है। इसमें हर नागरिक का डेमोग्राफिक और बायोमेट्रिक डाटा शामिल किया जाएगा। इसे एक बार पूरी तरह से देश में लागू करने के बाद यह एनपीआर असम एनआरसी के देशव्यापी संस्करण ‘नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटिजंस’ (NRIC) तैयार करने का आधार बनेगा।
एनपीआर लागू करने का उद्देश्य देश के हर निवासी का ब्यौरा तैयार करना है। इसके अंतर्गत हर उस व्यक्ति को शामिल किया जाएगा जो पिछले छह महीने से भारत के किसी इलाके में रह रहा हो या जो भारत में अगले छह महीने या उससे अधिक समय के लिए रहना चाहता हो।
रजिस्ट्रार जनरल एवं सेन्सस कमिश्नर विवेक जोशी ने कहा, ‘नागरिकता (नागरिकों के पंजीयन एवं राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने संबंधी) नियमावली, 2003 के नियम तीन के उपनियम (चार) के तहत केंद्र सरकार ने जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने और उसे अपडेट करने का फैसला किया है।‘ साथ ही इसमें कहा गया है कि एक अप्रैल, 2020 से असम को छोड़कर देशभर में घर-घर जाकर गणना करने और सभी लोगों की जानकारियां इकट्ठा करने के लिए शुरू किया जाएगा। उन्होंने बताया कि यह काम स्थानीय रजिस्ट्रार की देखरेख में 30 सितंबर 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य है। भारत में बसे हर व्यक्ति के लिए एनपीआर में अपना नाम दर्ज कराना जरूरी होगा। एनपीआर को स्थानीय (ग्राम/कस्बा), अनुमंडल, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाएगा।
मोदी सरकार द्वारा अपना वादा पूरा करना स्वागत योग्य है। भारत सरकार द्वारा भारत के नागरिकों को घुसपैठियों से अलग करने की दिशा में यह पहला कदम होगा। भारत के पूर्वी राज्यों में करोड़ो घुसपैठिए आ चुके हैं और उन्हें भारतीय नागरिकों से अलग करना बेहद आवश्यक है। भारत में दूसरे देशों से घुसपैठ के कारण न केवल स्थानीय लोगों की आजीविका पर बुरा असर पड़ा है बल्कि संस्कृति और भाषाई पहचान भी प्रभावित हुई है।
भारत के पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में सबसे ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठिये कब्जा जमा चुके हैं। दरअसल, एनपीआर के बनने के बाद इसी के आधार पर पूरे भारत में एनआरसी लागू किया जाएगा, जो एक सकारात्मक कदम है। भारत की आजादी के बाद ही वैध निवासियों का रजिस्टर बन जाना चाहिए था, इससे आज भारत में घुसपैठियों को पहचानना बेहद आसान हो जाता।
आज देश में पता लगाना मुश्किल है कि कौन इस देश का नागरिक है और कौन घुसपैठिया। देश का दुर्भाग्य यह है कि इन रोहिंग्याओं को अपना वोट बैंक समझने वाले कुछ राजनितिक दल भी सरकार द्वारा इनके खिलाफ किसी एक्शन का पुरजोर विरोध करते हैं, और इन्हें देश में बसाने की वकालत करते हैं.
ये रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिये ना सिर्फ देश के संसाधनों पर कब्ज़ा ज़माते हैं, बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा खतरा सिद्ध होते हैं. हम पहले ही देख चुके हैं कि कैसे कश्मीर में रह रहे रोहिंग्या मुसलमान पाकिस्तानी आतंकियों के संपर्क में रहते हैं और भारतीय सुरक्षा को चुनौती देते हैं. इसलिए सरकार का यह कदम देशहित में है और आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए रामबाण साबित होने वाला है। लोगों को यह समझना होगा कि भारत कोई डम्पिंग ग्राउंड नहीं है कि किसी भी देश से कोई भी व्यक्ति यहां जबरन रहे, देश के संसाधनो का उपयोग करे और हमारे ही नागरिक को उनके अधिकारों से वंचित करे।