भारत के असम राज्य से घुसपैठियों को भारत के असल नागरिकों से अलग करने वाली प्रक्रिया के तहत शनिवार सुबह एनआरसी यानि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की आखिरी सूची जारी कर दी गई है। आखिरी लिस्ट में लगभग 3 करोड़ 11 लाख लोगों को शामिल किया गया है, वहीं सूची में 19 लाख से ज़्यादा लोगों के नाम को शामिल नहीं किया गया है।
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केंद्र सरकार और असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने असम के लोगों को भरोसा दिलाया है कि लिस्ट में नाम न होने पर किसी भी व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया जाएगा और उसे अपनी नागरिकता साबित करने का हरसंभव मौका दिया जाएगा। जिनका नाम लिस्ट में नहीं होगा वो फ़ॉरेन ट्रिब्यूनल में अपील कर सकेंगे। सरकार ने अपील दायर करने की समय सीमा भी 60 से बढ़ाकर 120 दिन कर दी है, यानि अगर किसी भारतीय नागरिक का नाम लिस्ट में नहीं जोड़ा गया है, तो उसे अपनी नागरिकता साबित करने का पूरा मौका दिया जाएगा।
बता दें कि इससे पहले 30 जुलाई 2018 में सरकार ने एक फ़ाइनल ड्राफ़्ट प्रकाशित किया था जिसमें तकरीबन 41 लाख लोगों के नाम नहीं थे, जो असम में रह रहे हैं। इसमें बंगाली लोग हैं, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं। हालांकि, एनआरसी की अब जो सूची बनकर तैयार हुई है उसमें लगभग 19 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं है, और इनमें बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिम लोग भी शामिल हैं। सरकार के रुख के मुताबिक सरकार इन लोगों से नागरिकता छीन सकती है जिसके बाद भारत के नागरिकों को मिलने वाले सभी फ़ायदों के लिए ये हकदार नहीं होंगे।
इसका सीधा मतलब यह है कि इन लोगों के पास वोटिंग का अधिकार भी नहीं होगा और राजनीतिक दृष्टि से ऐसे लोग पूरी तरह महत्वहीन हो जाएंगे।
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हालांकि, एनआरसी में शामिल नहीं किए गए गैर-मुस्लिमों को सरकार राहत दे सकती है। सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक 2017 के जरिये ऐसे लोगों को भारत की नागरिकता देने की योजना पर काम कर रही है। यह विधेयक लोकसभा से पहले ही पास हो चुका है। इस बिल के प्रावधानों के मुताबिक अनिवार्य रूप से तीन पड़ोसी देशों यानि बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों यानि हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी शरणार्थियों को सात साल तक भारत में रहने के बाद भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है।
यानि इन धर्मों के लोगों को एनआरसी की लिस्ट से बाहर किए जाने के बाद भी भारत की नागरिकता मिलने के अनुमान हैं और गैर-मुस्लिमों को घबराने की ज़रूरत नहीं है।
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इसके बाद कुछ लोग भारत सरकार पर कम्यूनल कार्ड खेलने का आरोप जरूर लगा सकते हैं लेकिन उन्हें यह बात समझ लेनी चाहिए कि भारत के सभी मुस्लिम पड़ोसी देशों यानि बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर जमकर ज़ुल्म ढहाया जाता है और उनको उनके मूल अधिकारों से वंचित रखा जाता है। ऐसे में इन देशों के अल्पसंख्यकों और खासकर हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा करना भारत का कर्तव्य है और नागरिकता संशोधन विधेयक, 2017 इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है जिसका सभी को स्वागत करने की ज़रूरत है। एनआरसी के तहत बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें भारतीय नागरिकों से अलग करना देशहित में है।
हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि इसके जरिये भारत के पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के प्रति भारत सरकार की प्रतिबद्धता बिलकुल भी कम नहीं हुई है।