केंद्र सरकार के जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी सभी प्रावधानों के हटाए जाने व जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने से पड़ोसी देश पाकिस्तान बौखला गया है। पाक में इस मुद्दे को लेकर सियासी चर्चा भी बढ़ गई है। इसके साथ ही वहां आंतरिक विरोध देखने को मिल रहा है। जिससे दबाव में आकर पाकिस्तान भारत को धमकी दे रहा है कि वो कश्मीर का मुद्दा एक बार फिर से यूएन में ले जाएगा। इस मुद्दे को लेकर पाक की सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों ही एकमत है।
इसी संदर्भ में पाक संसद के एक विशेष सत्र को संबोधित करते समय इमरान खान ने कहा, ‘इस मुद्दे [कश्मीर] को लेकर हम हर मोर्चे पर लड़ने के लिए तैयार हैं, चाहे इस मुद्दे को यूएन में ही क्यों न उठाना पड़े!” हालांकि इमरान खान ने बिना सोचे समझे ही एक ऐसा कदम लिया है, जो आगे चलकर पाकिस्तान के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है।
पहले से ही आशंका जताई जा रही थी कि यूएन सुरक्षा परिषद पाक जैसे आतंक परस्त देश का फरेब सुनने के लिए राजी नहीं होगा, और यही हुआ। यूएन ने अनुच्छेद 370 के विरोध में पाकिस्तान की शिकायत पर कोई भी कार्रवाई करने से साफ मना कर दिया। यूएनएससी की अध्यक्ष जोआना रोनक्का ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 में किए गए बदलाव पर अपनी प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया है। यूएन ने साथ ही पाकिस्तान को 1972 शिमला समझौते का रास्ता भी दिखाया है।
बता दें कि यूएन सुरक्षा परिषद के जिस 47वें रिज़ॉल्यूशन हवाला देकर पाकिस्तान ने हमेशा भारत को जम्मू-कश्मीर मामले में दोषी ठहराने का प्रयास करता रहा है और उसे हर बार बिना किसी ठोस सबूत के मुंह की खानी पड़ी है। इस बार भी पाक भारत के अनुच्छेद 370 के विरोध में यूएन का दरवाजा खटखटाया, वो भी बेतुका और आधारहीन मुद्दे पर, क्योंकि अनुच्छेद 370 को हटाना भारत का आंतरिक निर्णय है, जिसका यूएन सुरक्षा परिषद के 47वें रिज़ोल्यूशन में उल्लेख भी नहीं किया गया है।
सच्चाई तो यह है कि उक्त रिज़ॉल्यूशन की धारा यही कहती है कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर राज्य से अपनी समस्त सेना और सेना द्वारा समर्थित आतंकियों को हटाये, जिससे यूएन सुरक्षा परिषद द्वारा इस मसले का शांतिपूर्वक निपटारा किया जा सके।
रिज़ॉल्यूशन के एक अंश के अनुसार,
(1) पाकिस्तान की सरकार को यह निम्नलिखित काम करने चाहिए –
- जम्मू कश्मीर राज्य से उन कबीलों और पाकिस्तानी नागरिकों को हटाने का मार्ग प्रशस्त किया जाये, जो राज्य के निवासी नहीं है, और जिन्होंने इस राज्य पर केवल लड़ने के उद्देश्य से कब्जा किया है, और ऐसे असामाजिक तत्वों के राज्य में दोबारा प्रवेश करने अथवा उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता देने से रोका जाये।“
इस रिज़ोल्यूशन के अनुसार सम्पूर्ण कश्मीर से पाकिस्तान को अपने सैनिक हटाने पड़ेंगे, जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर भी शामिल है। इसके अलावा इस रिज़ॉल्यूशन में कहा गया है कि पाक द्वारा कश्मीर के विसैन्यकरण (सेना की अनुपस्थिति) की स्थिति में ही भारत उक्त क्षेत्र में जनमत संग्रह का आयोजन कराएगा। परंतु हमारे पड़ोसी देश ने जिस तरह घाटी में आतंकवाद को फैलाया है, उससे साफ सिद्ध होता है कि पाकिस्तान ने इस रिज़ॉल्यूशन का कभी पालन ही नहीं किया, और इस बात का फ़ायदा भारत बड़ी अच्छी तरह से उठा सकता है। इस मामले में हस्तक्षेप के लिए आवेदन करते वक्त पाक हमेशा यूएन से इस तथ्य को छुपाता आया है।
पाकिस्तान ने न केवल यूएन की शर्तों का उल्लंघन किया है, बल्कि घाटी में पाक समर्थित आतंकवादियों के घुसपैठ को बढ़ावा भी दिया है। जिसके लिए पाक को कई देशों एवं संगठनों ने लताड़ा भी है, इसलिए भारत पाक के कश्मीर संबंधी यूएनएससी रिज़ॉल्यूशन की धाराओं पर अमल करने में असफल रहने के मुद्दे को उठा सकता है।
यूएन सुरक्षा परिषद के 47वें रिज़ॉल्यूशन को यूएन चार्टर के छठवें अध्याय के अंतर्गत पारित किया गया था, जिसमें ये रिज़ॉल्यूशन केवल सिफ़ारिश मात्र हैं, जो किसी भी विवाद के शांतिपूर्ण समझौते के लिए दिए जाते हैं। इससे साफ स्पष्ट होता है कि ये सिफ़ारिश बाध्यकारी नहीं है और ये केवल उक्त पक्षों के नैतिक दायित्व पर निर्भर करता है, जिसमें भी पाक बुरी तरह असफल रहा है।
इस स्थिति में भारत के लिए एक और वॉकओवर होगा, क्योंकि UNSC के इस रिज़ॉल्यूशन पर पाकिस्तान का कोई कानूनी या नैतिक पक्ष नहीं है। यहाँ पर भारत पाकिस्तान के आतंक समर्थन की ओर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भी आकर्षित कर सकता है, इसके साथ ही बलुचिस्तान में पाक सेना द्वारा हो रहे अत्याचारों पर भी विश्व समुदाय का ध्यान मोड़ा जा सकता है।
वहीं भारत के पास एक और विकल्प है कि यूएन में दायर अपनी याचिका (जम्मू-कश्मीर मामले) वापस ले सकती है, इस बारे में मोदी सरकार को राज्यसभा सांसद डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी सलाह भी दिया है। इससे यूएन के पास इस विषय पर हस्तक्षेप करने का कोई कारण ही नहीं रह जाएगा।
जानकारी के लिए बता दें कि यूएन में जाकर पाक ने खुद भारत के साथ किसी भी मसले का द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम के सुलझाने की नीति का उल्लंघन किया है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और पाक पीएम ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला समझौते के अनुसार इस बात पर हस्ताक्षर किया था कि दोनों देश इस मामले को द्विपक्षीय स्तर पर ही निपटाएंगें।
ठीक इसीतरह फरवरी 1999 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और उनके समकक्ष नवाज़ शरीफ द्वारा हस्ताक्षर किए गए लाहौर डिक्लेरेशन में भी इसी बात का अनुमोदन किया गया है। लेकिन पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को समर्थन देकर हमेशा भारत की संप्रभुता पर हमला किया है। ऐसे में अनुच्छेद 370 के हटने पर यूएन जाकर इमरान खान खुद पीएम मोदी द्वारा बिछाए जाल में फंस चुके हैं। यदि सुब्रह्मण्यम स्वामी के सुझाव पर भारत यूएन से जम्म-कश्मीर वाली याचिका वापस ले लेता है तो यह भारत की सबसे बड़ी जीत होगी और यूएन में पाकिस्तान कभी भी इस मामले को लेकर नहीं जा सकेगा, और न ही यूएन इस मामले में कभी दखलंदाजी करेगा।
अब यह देखना बाकी है कि पाकिस्तान इस मुद्दे को और कहाँ तक ले जाना चाहता है, क्योंकि उसके समर्थन में टर्की को छोडकर कोई भी देश अथवा अंतर्राष्ट्रीय संगठन खुलकर सामने नहीं आया है। कश्मीर मामले पर कई देशों ने भारत के इस निर्णय पर कुछ भी बोलने से मना किया है, तो वहीं यूएसए, श्रीलंका एवं यूएई, मलेशिया जैसे देशों ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताते हुए प्रत्यक्ष रूप से भारत का समर्थन किया है।