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‘ठीके तो हैं नीतीशे कुमार’ जैसा घटिया चुनावी नारा ‘ब्रांड-बीजेपी’ पर धब्बा है, अब नीकू को NDA से बाहर करने की ज़रूरत है

Mahima Pandey द्वारा Mahima Pandey
4 September 2019
in मत
नीतीश कुमार
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वर्ष 2015 में ‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’ के नारे के साथ नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव जीता था। अब इस नारे में थोड़ा बदलाव किया गया है। लगातार बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके नीतीश कुमार की जेडीयू पार्टी वर्ष 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के लिए ‘क्यों करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार’ नारे के साथ प्रचार कर रही है। पटना में पार्टी दफ्तर के बाहर लगे नए होर्डिंग पर ‘ठीके तो है नीतीश कुमार’ को पढ़कर किसी के मन में भी यही विचार आएगा कि बिहार की सत्ता में बैठी पार्टी के अध्यक्ष नीतीश कुमार खुद को ‘कामचलाऊ’ मानते हैं।

इस नारे का मतलब साफ है कि फिलहाल बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार बहुत अच्छे तो नहीं लेकिन ठीक ठाक कामचलाऊ हैं। जहां एक तरफ भाजपा एक बड़ी पार्टी है और देश के अन्य राज्यों की तरह ही इस राज्य में भी नरेंद्र मोदी ‘प्रमुख ब्रांड’ हैं। दूसरी तरफ, भाजपा के सहयोगी दल जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार खुद को कामचलाऊ मानते हैं जो राज्य में भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं क्योंकि ये ‘कामचलाऊ’ टैग भाजपा की छवि पर भी नकारात्मक असर डाल रहा है। ऐसे में भाजपा अब खुद चुनावी मैदान में कामचलाऊ पार्टी को दरकिनार कर उतरे तो बेहतर है।

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श्राप से वरदान तक: बिहार-झारखंड की वह अनोखी भाई दूज, जहां बहनें पहले भाई को मरने का श्राप देती हैं, फिर जीभ में कांटा चुभाकर मांगती हैं भाई की लंबी उम्र

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कल तक जेडीयू ये दावा करती थी कि नीतीश कुमार से बेहतर मुख्यमंत्री बिहार राज्य को नहीं मिला और न ही कोई उनसे अच्छा कुशल प्रशासक है, परन्तु अब इस छवि में बदलाव आ चुका है। लोकसभा चुनाव के दौरान ‘सच्चा है अच्छा है नीतीश के साथ चले’ नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरने वाली नीतीश कुमार की पार्टी का नारा ‘ठीक हैं नीतीश कुमार’ स्पष्ट करता है कि वो अब कुशल प्रशासक नहीं रहे बल्कि बस ‘कामचलाऊ’ बनकर रह गये हैं।

ऐसा लगता है नीतीशकुमार और उनकी पार्टी को अब समझ आ गया है कि वो किस तरह के नेता हैं तभी तो उनकी पार्टी ऐसे स्लोगन का इस्तेमाल कर रही है। मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण बड़ी संख्या में बच्चों की मौत ने नीतीश कुमार के कुशासन की पोल खुल गयी थी। बिहार में यह बीमारी काफी पहले से है लेकिन नीतीश कुमार ने अपने 13 साल के शासनकाल में कोई सख्त कदम नहीं उठाया। कुछ दावों के अनुसार, इस बीमारी ने 2012 में मुजफ्फरपुर में कहर बरपाया, जिसमें 424 बच्चों की जान चली गई। इस बीमारी से पहले भी मासूमों की मौत हो चुकी हैं। इतनी मौतों के बाद भी नीतीश सरकार ने इस मामले को गंभीरता से कभी नहीं लिया। हमेशा उन्होंने इस स्थिति को नज़रअंदाज़ किया और सब कुछ ठीक होने का ढोंग किया। यही नहीं हर बार की तरह उन्होंने बस मृतकों के परिवार को मुआवजा देने की घोषणा कर अपनी ज़िम्मेदारी से पलड़ा झाड़ लेना उनकी राजनीति का हिस्सा रहा है। जब बिहार बाढ़ से प्रभावित था तब भी नीतीश सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह सही तरीके से नहीं किया था और तो और इसके लिए भी वो केंद्र सरकार की और देख रहे थे। नीतीश कुमार ने केंद्र से मदद की दरकार की लेकिन अपने स्तर पर कोई उचित कदम नहीं उठाये। हर बार नीतीश कुमार स्थिति का आंकलन करने की बजाय और उचित कदम उठाने की बजाय पल्ला झड़ने की भरपूर कोशिश करते हैं।

यही नहीं जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का जहां पूरा देश समर्थन कर रहा था जेडीयू ने इसका विरोध किया था। राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पर लाए गए बिल पर चर्चा के दौरान जेडीयू के सदस्‍य वॉकआउट किया था। बाद में आलोचनाओं के बाद जेडीयू ने यू-टर्न लिया था लेकिन तब तक इस पार्टी को काफी नुकसान पहुंच चुका था। अपनी पार्टी के हित के लिए नीतीश कुमार अपने सहयोगी का विरोध करने से भी नहीं झिझकते।

बिहार में 13 साल के शासन में नीतीश कुमार ने केवल अपना स्वार्थ देखा है और अब जनता भी उनके इस रूप को भलीभांति समझ चुकी है। लगातार 13 साल तक बिहार पर राज करने के बाद भी नीतीश देशभर में बिहार की छवि को सुधारने में सफल नहीं हुए और बिहार की गिनती देश के सबसे खराब राज्यों में ही होती रही।  नीतीश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड है भी कुछ ऐसा ही वो सिर्फ अपना हित देखते हैं और इसके लिए निम्न स्तर की राजनीति करते आये हैं और ये बात वो और उनकी पार्टी अच्छी तरह से समझती है। ऐसे में ‘कामचलाऊ’ का टैग उनके लिए अच्छा ही है। परन्तु भाजपा को अब समझने की जरूरत है कि नीतीश के कुशासन वाली छवि उसके लिए अच्छी नहीं है और उसे ये सुनिश्चित करना होगा कि नीतीश कुमार की वजह से राज्य में उसे नुकसान न झेलना पड़े।

अब भाजपा को ऐसी पार्टी के साथ अपने गठबंधन को आगे बढ़ाने की बजाय बिहार की जनता के भले के लिए एक बेहतर नेता को मैदान में उतारने की जरूरत है। भाजपा पूरे देश में अपने वादों को पूरा करने के लिए जानी जाती है और पीएम मोदी भी आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय है। 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के आने के बाद यह साफ भी हो गया कि पीएम मोदी के आगे जनता ने किसी को भी ध्यान में नहीं रखा। बिहार से सभी क्षेत्रीय पार्टियों का सफाया हो गया था और जनता ने पूरे प्रदेश में भगवा लहराने का काम किया। प्रधानमंत्री मोदी एक ‘ब्रांड’ है, ये बात किसी से छुपी नहीं है ऐसे में एक काम चलाऊ पार्टी की बजाय भाजपा को बिहार के विकास के लिए खुद को बिहार के विधानसभा चुनाव में मजबूती के साथ उतारने की जरूरत है। भाजपा के मुख्यमंत्रियों का ट्रैक रिकॉर्ड नीतीश कुमार से काफी बेहतर रहा है, चाहे वो मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हो या छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह हों। ऐसे में बिहार की जनता के लिए यही उचित होगा भाजपा ‘कामचलाऊ’ पार्टी नहीं बल्कि एक बेहतर मुख्यमंत्री का विकल्प दे।

Tags: नितीश कुमारबिहारभाजपा
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राजनीतिक इस्लाम बनाम सनातन चेतना: योगी आदित्यनाथ का वैचारिक शंखनाद और संघ का शताब्दी संकल्प
इतिहास

राजनीतिक इस्लाम बनाम सनातन चेतना: योगी आदित्यनाथ का वैचारिक शंखनाद और संघ का शताब्दी संकल्प

22 October 2025

गोरखपुर के पावन मंच से जब योगी आदित्यनाथ ने यह कहा कि राजनीतिक इस्लाम ने सनातन धर्म को सबसे बड़ा झटका दिया है, तो यह...

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