नमस्कार मैं रवीश कुमार, आप देख रहे हैं एनडीटीवी, मैं आपको अंधेरे में लाया हूँ। यह डायलॉग तो आपने सुना ही होगा। यह लेफ्ट लिबरल्स के चहेते पत्रकार रवीश कुमार का अंदाज है। यह पत्रकार सिर्फ टीवी पर ही नकारात्मक नहीं हैं बल्कि आम जिंदगी में भी काफी नकारात्मक हैं। अंध मोदी विरोध के कारण ये इतने नकारात्मक हो चुके हैं कि अब निजी जिंदगी में भी अपनी तुलना मोदी से करने लगे हैं।
दरअसल, हाल ही में रवीश कुमार को रेमन मैग्सेसे अवार्ड दिया गया है, जिसे फिलीपींस के राष्ट्रपति और CIA द्वारा खास तौर से तैयार किए गए “रेमन मैग्सेसे” के नाम पर दिया जाता है। इसी संबंध में इंडियन एक्सप्रेस के एक पत्रकार, निशांत शेखर ने उनका इंटरव्यू लिया। इस इंटरव्यू में रवीश कुमार से कुछ सवाल किये गये लेकिन उन्होंने हर सवाल का जवाब नकारात्मक तरीके से घुमाकर दिया। पूरे इंटरव्यू के दौरान घूम-फिरकर वो पीएम मोदी पर हमला करते हुए ही दिखे। उनके सभी जवाब नकारात्मकता से भरे हुए थे, पत्रकार निशांत भी उनके नकारात्मक जवाब से काफी असहमत दिखे, ये उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था।
इस इंटरव्यू के दौरान कई ऐसे मौके आए जब निशांत ने अच्छे और सकारात्मक सवाल किए लेकिन रवीश कुमार का वही अंधेरे वाले स्क्रीन जैसा नकारात्मक जवाब मिला। इस इंटरव्यू के पहले ही सवाल में जब निशांत ने उन्हें इस पुरस्कार के लिए बधाई दिया और पूछा कि यह अवार्ड आपके लिए, मीडिया के लिए और एनडीटीवी के लिए कितना महत्व रखता है? इस पर रवीश कुमार अपनी शैली में शुरू हो गए, जिसमें सवाल से कोई मतलब नहीं होता बस मोदी विरोध करना होता है। वह इस सवाल का जवाब देने के स्थान पर सिर्फ मोदी और बीजेपी की बातें करने लगे जिसका प्रश्न से कोई वास्ता ही नहीं था।
निशांत ने सवाल पूछा कि आप बिहार से हैं वहां अधिकतर युवा सिविल की तैयारी करते हैं, आप पत्रकारिता में कैसे आ गए? इस पर रवीश ने घूमा-फिराकर जवाब देते हुए कहा, “मैं कई समस्याओं का सामना करते हुए आगे बढ़ा लेकिन मेरी कहानी चाय बेचने type की कहानी नहीं है।” इस जवाब से रवीश की मानसिकता का स्पष्ट तौर पर पता चलता है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कितनी घृणा करते हैं।
रवीश बाबू आप भी कुछ अच्छे काम कीजिये, लोग आपकी भी बात करेंगे और आपकी भी कहानियां कही जाएंगी। रवीश कुमार अपनी पत्रकारिता में मोदी सरकार के प्रति नफरत जगजाहिर करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते। सकारात्मक पहलू तो इन्हें दिखता ही नहीं लेकिन खामियां इतनी दिखती हैं कि व्यक्तिगत सवाल पर भी इन्हें इस बात की टिस है कि एक चाय वाला इतने बड़े पद पर कैसे है और रवीश उन्हें इतनी अहमियत कैसे दें।
रेमन मैग्सेसे अवार्ड पाने से फुले रवीश खुद को एक अच्छा पत्रकार बताने का कोई मौका नहीं छोड़ते। इस इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि उनके इतने फैन हैं जो बोरी भर कर उनके लिए पत्र लिखते हैं और वो उन्हें पढ़ते हैं। हालांकि सच तो यह है कि उनकी नकारात्मक रिपोर्ट्स के बावजूद आम जनता ने नरेन्द्र मोदी को ही प्रधानमंत्री पद के लिए चुना। लाइवमिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी को ग्रामीण क्षेत्रों में 40 प्रतिशत से अधिक वोट मिले जबकि वर्ष 2014 में यह आंकड़ा 30 प्रतिशत के आसपास था।
इंटरव्यू के दौरान जब निशांत ने मोदी विरोधी पत्रकार से जुड़ा सवाल पूछा तो इस पर उनका जवाब फिर से नकारात्मक ही था और इसी की रवीश कुमार से उम्मीद भी थी। उन्होंने कहा, “वे लोग मोदी का प्रोपेगेंडा फैलाने वाले गोदी मीडिया हैं। मैं वही दिखाता हूं जो सही है लेकिन नरेंद्र मोदी एक भी सवाल के जवाब नहीं हैं। इस दौरान उन्होंने खुद ही स्वीकारा कि आज मीडिया की विश्वसनीयता जीरो है।
सोचने वाली बात है कि जिस मीडिया की विश्वसनीयता को वे जीरो कह रहे हैं, उसी मीडिया की तरह एनडीटीवी भी है जो मेन स्ट्रीम मीडिया से जुड़ी है। यह उनकी हिपोक्रेसी ही दिखती है कि वह खुद को और एनडीटीवी को मेन स्ट्रीम मीडिया से अलग करने की कोशिश करते हैं।
आज जिस मीडिया की विश्वसनीयता पर वह सवाल कर रहे है, उसकी विश्वसनीयता रवीश कुमार जैसे पत्रकार के कारण ही हुआ है। रवीश कुमार ने पिछले दिनों मीडिया को यह भी ‘आदेश’ जारी किया था कि वह पुलवामा और एयर स्ट्राइक से जुड़ी किसी खबर को न चलाएं, क्योंकि इससे भाजपा को फायदा पहुंच सकता है। हालांकि, वे खुद कन्हैया कुमार के तथाकथित इंटरव्यू के माध्यम से उनका भरपूर चुनाव प्रचार करते नज़र आए। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले रवीश कुमार ने बड़ी शिद्दत से एसपी और बीएसपी के महागठबंधन को कामयाब बनाने के लिए पसीना बहाया था। ऐसे में जनता मीडिया पर कैसे विश्वास करेगी।
इससे पहले भी रवीश कई बार फ़ेक न्यूज़ फैला चुके हैं। एक बार तो उन्होंने रक्षा बजट पर भी अपने ब्रम्हाडीय ज्ञान का परिचय देते हुए ट्वीट करके कहा था कि रक्षा बजट 1962 के स्तर से भी कम हो गया है। वहीं डर का माहौल पैदा करने के लिए कई बार वे मॉब लिंचिंग के विषय में फेक न्यूज़ फैला चुके हैं।
वहीं कुछ दिनों पहले रवीश कुमार ने कुछ एंकर्स और न्यूज़ चैनल के मालिकों पर निशाना साधते हुए कहा था कि उन्होंने भाजपा के लिए इतनी शिद्दत से मेहनत की है कि उन्हें मोदी सरकार की कैबिनेट में शामिल कर लेना चाहिए। इस पर आजतक के पत्रकार रोहित सरदाना ने जवाब दिया था कि ‘भाई साहब! ऐसा है वो तो वैसे भी गुस्से में रहते हैं। आज वो कह रहे हैं कि कुछ मीडिया एंकर और न्यूज़ चैनल मालिकों को मंत्री बना देना चाहिए, क्यों? उस दिन तो मीडिया एंकर मंत्री नहीं बने थे जब वे न्यूज़रूम में बैठकर मंत्रीमण्डल डिसाइड करते थे। अगर एक नज़र उनके निजी व्यक्तित्व पर डाली जाए, तो भी वे कोई दूध के धुले नज़र नहीं आते। पिछले दिनों जब एक राहगीर ने उनको गाड़ी चलाते हुए और फोन पर बात करते देखा तो उसने उनकी फोटो खींच ली, हालांकि यह रवीश कुमार को बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने उसके बाद उस राहगीर को जमकर डराने-धमकाने का काम किया। इतना ही नहीं, आरोप के मुताबिक रवीश कुमार की गाड़ी ने उनका 40 मिनट तक पीछा भी किया। रवीश कुमार के दोहरे मापदंड उनके व्यवसायिक जीवन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अपने निजी जीवन में भी उनकी करनी और कथनी में बड़ा फर्क नज़र आता है। यही हिपोक्रेसी जब सभी के सामने आने लगी और वह पूरी तरह से एक्सपोज होने लगे तब उन्होंने ट्विटर ही छोड़ दिया।
यह सभी को पता है कि अब भ्रष्टाचार पर कितना काबू किया जा चुका है। सभी पुराने भ्रष्टाचारियों की पोल भी खुल रही है। चाहे वो पी चिदम्बरम हो या रवीश के एनडीटीवी के मालिक प्रणॉय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय। हालांकि रवीश प्रणॉय पर कभी रिपोर्टिंग करते नहीं दिखे हैं।
रवीश कुमार इस इंटरव्यू के दौरान बार-बार ये कहने का प्रयास कर रहे हैं कि जनता को नौकरी नहीं मिल रही फिर भी मोदी को वोट करते हैं। इन समर्थकों को समझ नहीं आता कि ‘गोदी मीडिया’ उनके साथ नही है। अपनी घुमावदार हिन्दी में उन्होंने देश की जनता जिसने मोदी को 303 सीट देकर प्रचंड बहुमत दिया, उसे बेवकूफ घोषित कर रहे हैं। इस इंटरव्यू के दौरान तो उन्होंने यह भी कह दिया कि यह जनता इतनी बेवकूफ है कि मोदी को पार्लियामेंट से भी ज्यादा सीट दे देगी।
एक बात तो हैरान कर देने वाली थी जब उन्होंने राइट विंग यानि दक्षिण पंथ के पढ़े-लिखे लोगों को खुदरा यानि कौड़ियों से तुलना कर दी। रवीश के इस प्रकार से एक पक्ष के लोगों को नकारात्मक दृष्टि से नकार देना उनके असहिष्णु होने का स्पष्ट प्रमाण देता है। यही रवीश अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते हैं लेकिन खुद दूसरे पक्ष की बात ही नहीं सुनना चाहते और उन्हें निम्न स्तर से देखते हैं। जबकि सच यह है कि उनकी नकारात्मक पत्रकारिता और व्यक्तित्व में किसी को रुचि नहीं है और ना ही शौक है।
रवीश कुमार घुमा फिराकर मोदी पर ही रुक रहे थे। व्यक्तिगत सवालों पर भी सीधा जवाब देने की बजाय मोदी पर आकर रुक जाते हैं, केवल नकारात्मक वो बार बार खुद को अन्य पत्रकार या मीडिया संस्थान से नहीं जोड़ते बल्कि खुद ऐसा लग रहा है कि उनके लिए ‘ रवीश कुमार बनाम मोदी’ है बाकि और कोई है ही नहीं। रवीश कुमार खुद को ही उस विश्व के केंद्र में देखते हैं जहां सभी उन्हें ही जवाब देंगे और वे यही उम्मीद पीएम मोदी से भी करते हैं। वे यह सोचते हैं कि सभी उन्हें ही देख रहे हैं लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है। अपने आप को ही जब व्यक्ति ज्यादा महत्व देने लगता है तो सभी पर शक करने लगता है और वह सभी से डरने लगता है। यही रवीश कुमार के साथ भी होता है।
यह सोचने वाली बात है कि आखिर एक व्यक्ति इतना निगेटिव कैसे हो सकता है। उनकी नकतारात्मकता को देख कर यही लगता है कि यह दशकों से मन में बैठी कुंठा है या मोदी की लोकप्रियता से जलन। पूरे इंटरव्यू को सुनकर आपको ऐसा लगेगा कि वो पैरानॉयड डिसऑर्डर से ग्रसित हैं जो मोदी की एक के बाद एक 5 जीत से लगे झटके से उबर नहीं पाये है। पर जो भी है रवीश कुमार अच्छे पत्रकार है या नहीं यह तो टीवी चैनल की लोकप्रियता से पता चल ही जाता है जिसमें एनडीटीवी फिसड्डी है।