अर्थव्यवस्था को लेकर सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक जहां कुछ लोग सरकार पर सवालों की बौछार कर रहे हैं तो वहीं पिछले दिनों देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा दिये गए एक बयान पर भी सोशल मीडिया पर खूब मज़ाक बनाया गया। ऑटो सेक्टर में मंदी पर बोलते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा था ‘ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर BS-6 और लोगों की सोच में आए बदलाव का असर पड़ रहा है। लोग अब गाड़ी खरीदने की बजाय ओला या उबर को तरजीह दे रहे हैं, ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी का कारण हमारे मिलेनियल यानि युवा पीढ़ी की सोच में आया बदलाव भी है। अब लोग खुद का वाहन खरीदकर मासिक किश्त देने के बजाए ओला और उबर जैसी ऑनलाइन टैक्सी सर्विस प्रोवाइडर्स के जरिए वाहनों की बुकिंग को महत्व दे रहे हैं’। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया के कुछ इकोनोमिक चैंपियन्स और इस क्षेत्र के तथाकथित विशेषज्ञों ने वित्त मंत्री पर लगातार हमला बोलना शुरू कर दिया था।
हालांकि, अगर इन तथाकथित विशेषज्ञों की बातों को कुछ समय के लिए भुला दिया जाए तो हमें यह ज्ञात होगा कि इस क्षेत्र के विशेषज्ञ लोगों ने असल में उनके इस बयान का समर्थन किया है, या वे इससे पहले इस लॉजिक पर अपनी सहमति जता चुके हैं। उदाहरण के तौर पर आज से ठीक चार वर्ष पहले प्रख्यात उद्योगपति और महिंद्रा ग्रुप के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने कहा था, ‘जिस तरह उबर और ओला जैसे एप्प लोगों को सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं, वो आगे चल कर ऑटो इंडस्ट्री के लिए काफी हानिकारक सिद्ध हो सकती है। ऐसे कई युवा लोग हैं जो वाहन ले सकते हैं, परंतु उनका मकसद एक वाहन खरीदना नहीं है, उन्हें बस परिवहन की सुविधा चाहिए!’ बता दें कि महिंद्रा भारत की एक अग्रणी ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है ऐसे में उनके अध्यक्ष की बात की गंभीरता को आप समझ सकते हैं।
आनंद महिंद्रा के बाद देश की एक और बड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी मारुति के चेयरमेन ने आरसी भार्गव ने भी वित्त मंत्री के बयान को सही ठहराया। भार्गव ने एक इंटरव्यू में कहा ‘युवा लेटेस्ट स्मार्टफोन खरीदना चाहते हैं। वे दोस्तों से साथ रेस्टोरेंट जाना पसंद करते हैं। कार खरीदने की वजह से इन कामों के लिए पैसे बचाना मुश्किल होता है। देश के युवाओं का वेतन बहुत ज्यादा नहीं। इसलिए वे कार खरीदने की बजाय अच्छा वक्त बिताने को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि उनके पास कैब का सस्ता विकल्प है’। भार्गव ने यह भी कहा कि कारों की कीमतें बढ़ने के अनुपात में लोगों की खरीद क्षमता नहीं बढ़ी। नए नियमों की वजह से वाहन महंगे हुए। इसलिए, कई लोगों ने कार खरीदने की योजना टाल दी। भार्गव का कहना है कि सुरक्षा और प्रदूषण संबंधी सख्त नियमों से देश में वाहन उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार होगा’। बता दें कि ये वही आरसी भार्गव हैं जिनका भारतीय ऑटो सेक्टर में क्रांति लाने के लिए सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। उनके नेतृत्व में मारुति को सफलता का नया आयाम मिला और मारुति का मार्केट शेयर 50 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
आटोमोबाइल क्षेत्र के सभी दिग्गज आज ओला और उबर जैसे ऑनलाइन टैक्सी सर्विस प्रोवाइडर्स द्वारा खड़ी की जा रही चुनौतियों से वाकिफ हैं। इसलिए वे खुद इन स्टार्टप्स में निवेश कर रहे हैं। बता दें कि दक्षिण कोरिया की कार कंपनियां ह्युंडई मोटर और किया मोटर्स राइड शेयरिंग कंपनी ओला में 30 करोड़ डॉलर यानि लगभग 2055 करोड़ रुपए का निवेश करने का ऐलान कर चुकी हैं। यह दोनों कंपनियों का अब तक का सबसे बड़ा संयुक्त निवेश होगा। इनके मुताबिक इस पार्टनरशिप के जरिए ओला के ड्राइवरों को लीज और किश्तों के भुगतान जैसी वित्तीय सेवाएं मुहैया करवाई जाएंगी। साथ ही वाहनों के मेंटेनेंस और रिपेयरिंग जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध होंगी।
स्पष्ट है कि देश के बड़े-बड़े उद्योगपति और इस क्षेत्र के सभी दिग्गज निर्मला सीतारमण की बातों का समर्थन करते नज़र आ रहे हैं और उनके पास इसके लिए एक उपयुक्त वजह भी है जिसको झुठलाया नहीं जा सकता। हालांकि, सोशल मीडिया पर मौजूद ट्रोल्स के लिए अर्थव्यवस्था की इन बारीकियों को समझना शायद इतना आसान नहीं होता इसलिए वे अपनी आँखों के सामने सही और गलत होने के बावजूद उनकी पहचान नहीं कर पाते और एक खास मानसिकता वाले लोगों का एजेंडा आगे बढ़ाने में लग जाते हैं। इन सोशल मीडिया चैंपियन्स को अर्थव्यवस्था की ना तो कोई जानकारी होती है और ना ही उन्हें इससे कोई मतलब होता है, ऐसे में हमें ऐसे लोगों के बयानों को तरजीह देने की आवश्यकता है जिनका वाकई इस पर बोलने का अधिकार बनता है और जो खुद इस उद्योग का हिस्सा हैं। इन लोगों की बातों को सुनकर इस बात को कहने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि निर्मला सीतारमण का बयान बिल्कुल भी बेतुका नहीं था और ओला व उबर जैसी कंपनियों का ऑटो सेक्टर पर वाकई एक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।