इतिहास का भविष्य पर गहरा असर पड़ता है, इसलिए यह भावी पीढ़ी के लिए दोषपूर्ण इतिहास पढ़ना आवश्यक हो जाता है। पहले अंग्रेजों और फिर अंग्रेजों के चाटुकार इतिहासकारों की वजह से आज भी देश का वास्तविक इतिहास भावी पीढ़ी को तोड़-मरोड़ कर पढ़ाया जाता या फिर पढ़ाया ही नहीं जाता। अक्सर यही देखा गया है कि भारत के पाठ्यक्रमों में हमले करने वालों का अधिक ही गुणगान किया जाता है, देश की मिट्टी से जुड़े योद्धाओं को नकार दिया गया और उन्हें किताबों में भी कोई स्थान नहीं दिया गया। ऐसे ही एक पात्र है टीपू सुल्तान।
टीपू सुल्तान को उसके किए गए अत्याचारों और हत्याओं के बाद भी देश में, खास तौर पर कर्नाटका की पाठ्यपुस्तकों में एक हीरो की तरह पेश किया जाता है। इसी के मद्देनज़र भारतीय जनता पार्टी विधायक मदकेरी अपाचू रंजन ने स्कूल सिलेबस से टीपू सुल्तान के चैप्टर को हटाने की मांग की थी। इसके लिए एम अपाचू रंजन ने बेसिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार को एक पत्र लिखा था। इसके बाद अब मंत्री सुरेश कुमार ने इसी मुद्दे पर टेक्स्ट बुक सोसायटी और इतिहासकारों की एक मीटिंग बुलाई है और उनसे इस मुद्दे पर तीन दिन में रिपोर्ट मांगी है। टेक्स्टबुक सोसायटी के प्रबंध निदेशक को संबोधित करते हुए सुरेश कुमार ने लिखा कि विधायक अपाचू रंजन को आमंत्रित कर इस मुद्दे पर उनसे बात करें और तीन दिन में रिपोर्ट दें। अपने पत्र में उन्होंने लिखा था कि 18वीं सदी में मैसूर पर राज करने वाले शासक टीपू सुल्तान कन्नड़ विरोधी था। उन्होंने लिखा, इतिहास की किताबों में टीपू सुल्तान का महिमामंडन किया गया है। हमने किताबों में जो इतिहास पढ़ा है, वह पूरा नहीं है। ये पूरी तरह सत्य भी नहीं है। अब तक टीपू सुल्तान का जो महिमामंडन किया गया है सबसे पहले उसे रोकना होगा। टीपू सुल्तान कभी भी स्वतंत्रता के लिए नहीं लड़ा। इसलिए स्कूल सिलेबस से टीपू सुल्तान के चैप्टर को हटा दिया जाना चाहिए।
लेकिन टीपू सुल्तान को पाठ्यक्रम से हटाना कहीं से भी सही फैसला नहीं है। स्कूलों में टीपू सुल्तान के बारे में जरूर पढ़ाया जाना चाहिए और भावी पीढ़ी को यह बताया जाना चाहिए कि टीपू ने किस प्रकार से हिंदुओं पर अत्याचार किया।
स्वतंत्रा प्राप्ति के बाद कतिपय भारतीय इतिहासकारों ने साम्प्रदायिक सद्भाव एवं धर्मनिरपेक्षता स्थापित करने के जोश में हैदर अली तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान को राष्ट्रीय महानायक बनाकर प्रस्तुत किया तथा अंग्रेजों के विरुद्ध टीपू की सफलताओं को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की तरह चित्रांकित किया। जबकि हैदर अली तथा टीपू सुल्तान दोनों का जीवन चरित्र देखने से सहज ही ज्ञात हो जाता है कि उनमें धार्मिक कट्टरता एवं क्रूरता कूट-कूट कर भरी हुई थी। जहां हैदर अली ने अपने हिन्दू स्वामियों को समाप्त करके उनके राज्य को हड़प लिया वहीं, टीपू सुल्तान काफिरों अर्थात् हिन्दुओं, पुर्तगालियों, अंग्रेजों एवं भारतीय ईसाइयों के प्रति जीवन भर हिंसक कार्रवाईयां की और कई हजार लोगों की धार्मिक आधार पर हत्या की।
1565 में तालीकोट युद्ध के बाद विजयनगर राज्य का विघटन हुआ तथा मैसूर का राज्य अस्तित्त्व में आया। वर्ष 1776 में टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली सत्ता पर काबिज हो गया लेकिन वह मैसूर के द्वितीय युद्ध जो कि 1780 से 1784 तक लड़ा गया था, उसमें मारा गया, जिसके बाद टीपू सुल्तान मैसूर का शासक बना।
इसके बाद तो टीपू का कहर बढ़ता गया। हिन्दू, ईसाई या फिर कोई अन्य धर्म, टीपू ने किसी को भी नहीं छोड़ा। टीपू ने नैयर एवं कोडवा नामक हिन्दू समुदायों पर भी भयानक अत्याचार किए। उन्हें भी इस्लाम स्वीकार करने पर विवश किया गया तथा जिन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया, उन्हें मार दिया गया। टीपू ने 50 हजार नैयर स्त्री-पुरुष एवं बच्चों को पकड़कर एक किले में बंद कर दिया। इस कारण नैयर समुदाय अंग्रेजों के साथ हो गया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने नैयरों के सहयोग से ही टीपू सुल्तान को तृतीय एंग्लो-मैसूर युद्ध में पराजित किया था।
वर्ष 1783 में कुरुल के नवाब रुस्तम खान ने कुर्ग के कोडवा हिन्दुओं पर हमला करके लगभग 60 हज़ार कोडवा लोगों को मार डाला तथा कई हजार स्त्री-पुरुषों को पकड़कर बंदी बना लिया। इस आक्रमण से भयभीत होकर 40 हजार कोडवा हिन्दू जंगलों एवं पहाड़ों में भाग गए। बंदी बनाए गए लगभग 40 हजार स्त्री-पुरुष एवं बच्चों को जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया। ब्रिटिश प्रशासक मार्क विल्क्स ने पीड़ित कोडवा लोगों की संख्या 70 हजार दी है। अंग्रेज इतिहासकार लेविस राइस तथा मीर किरमानी ने लिखा है कि कुर्ग अभियान में बंदी पीड़ित स्त्री, पुरुष एवं बच्चों की संख्या 80 हजार थी। टीपू ने रुस्तम को लिखे एक पत्र में भी मुसलमान बनाकर सम्मानित किए गए कोडवा हिन्दुओं की संख्या 80 हजार दी है।
वर्ष 1788 में टीपू ने कालीकट के गवर्नर शेरखान को आदेश दिया कि वहां भी हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का काम आरम्भ किया जाए। जुलाई 1788 में कालीकट में 200 ब्राह्मणों को गौ-मांस खिलाकर मुसलमान बनाया गया। 9 जनवरी 1790 को टीपू ने बेकल के गवर्नर को पत्र लिखकर निर्देश दिए कि- ‘क्या तुम्हें पता नहीं है कि मैंने हाल ही में मलाबार पर विजय प्राप्त की है तथा 4 लाख हिन्दुओं को मुसलमान बनाया हैं। मैं त्रावणकोर के राजा रमन नैयर के विरुद्ध भी शीघ्र ही अभियान चलाने का दृढ़ निश्चय रखता हूँ। उसे तथा उसकी प्रजा को मुसलमान बनाने के लिए उत्साही हूँ। इसलिए मैंने श्रीरंगपट्टनम लौट जाने का निश्चय त्याग दिया हैं।‘
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि टीपू सुलतान ने किस प्रकार का नरसंहार किया है। यही नहीं श्रीरंगपट्टण में स्थित टीपू के महल से मिली तलवार पर एक लेख लिखा है जिसमें अल्लाह से काफिरों के सर्वनाश की प्रार्थना की गई है। वह लिखावट कुछ इस प्रकार है।
‘मेरे मालिक मेरी सहायता कर कि, मैं संसार से काफिरों(गैर मुसलमान) को समाप्त कर दूँ”
उपरोक्त अनुवाद, जैसा कि इतिहासकार सी. हयवदना राव द्वारा लिखित मैसूर गजेटियर वॉल्यूम II से लिया गया है, इस्लाम पैगंबर मुहम्मद की प्रशंसा करता है और काफिरों के विनाश के लिए टीपू सुल्तान के विचारों को बताता है।
ऐसे ही सिक्कों और कई स्थानों पर भी गैर-मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार के सबूत मिलते हैं। टीपू के शब्दों में ” यदि सारी दुनिया भी मुझे मिल जाए,तब भी में हिंदू मंदिरों को नष्ट करने से नही रुकुंगा।” फ्रीडम स्ट्रगल इन केरल नाम की किताब में यह कथन मिलता है। वहीं ” दी मैसूर गजेटियर” में लिखा है, “टीपू ने लगभग 1000 मंदिरों को ध्वस्त किया था। यह सब स्कूल के पाठ्यक्रम में पढ़ाया ही नहीं जाता।
इसलिए टीपू सुल्तान से जुड़े पाठ्यक्रम को हटाने की बजाय उसकी करतूतों को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी को यह पता चल सके कि टीपू सूलतान गैर-मुसलमानों से कितनी नफरत करता था।