पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल जिले मुर्शिदाबाद में एक ही परिवार के तीन सदस्यों की निर्मम हत्या के बाद देश में रोष का माहौल है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य और एक स्कूल शिक्षक बंधु प्रकाश पाल और उनकी 8 महीने की गर्भवती पत्नी ब्यूटी पाल (28) समेत 6 साल के बेटे आनंदपाल की धारदार हथियार से हत्या ने पश्चिम बंगाल के कानून व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी। पुलिस ने इस मामले में मृतक परिवार के अन्य सदस्यों और आसपास के लोगों से पूछताछ शुरू कर दी है और अब तक 4 लोगों को हिरासत में लिया गया है।
इस निर्मम और हृदय विदारक हत्या के बाद देश के हिंदुओं ने किसी लिबरल या किसी छद्म मानवाधिकार कार्यकर्ता से इस मामले पर आवाज उठाने की अपेक्षा नहीं की थी क्योंकि उन्हें तो अपने एजेंडे से फुर्सत ही नहीं है। परन्तु पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में लगातार हो रहे हिंसा पर बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवकसंघ से विरोध प्रदर्शन और आवाज उठाना अपेक्षित था। इस जघन्य हत्या जिसमें एक 6 वर्ष के बच्चे को भी नहीं बख्शा गया था, इस पर अभी तक देशव्यापी आंदोलन खड़ा हो जाना चाहिए था। यह विडम्बना ही है कि पश्चिम बंगाल के 42 में से 18 सीटें जीत कर भी भाजपा कुछ नहीं कर पा रही है और न ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कोई ठोस कदम उठा रही है। केंद्र में जरूर भाजपा की सरकार है, लेकिन भारत के संघिय शासन व्यवस्था के कारण राज्य में कानून की ज़िम्मेदारी राज्य की पुलिस पर होती है जिसका नियंत्रण राज्य में शासन कर रही राजनीतिक पार्टी के पास होता है। अब अगर पश्चिम बंगाल की बात करें तो पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है और इस पार्टी द्वारा की गयी राजनीतिक हिंसा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकताओं पर हमले किसी से छुपे नहीं है। बीजेपी के ही आंकड़ों के अनुसार मुर्शिदाबाद में हुई यह हत्या कार्यकर्ताओं की 81वीं हत्या थी। इतनी हत्याओं के बाद भी इस मामले को न तो बीजेपी ने देशव्यापी मुद्दा बनाया न ही आरएसएस ने। अगर किसी समुदाए विशेष से किसी व्यक्ति की हत्या होती तो यह मुद्दा सीरिया के एलन कुर्दी की तरह विश्वव्यापी बन जाता।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा बिना वर्दी वाली स्वैच्छिक संगठन है और पूरे देश में संगठनात्मक रूप से सबसे मजबूत होने का दावा करता है। फिर भी पता नहीं कौनसी मज़बूरी आरएसएस जैसे संगठन को रानीतिक हिंसा में मारे जा रहे अपने कार्यकर्ताओं के मुद्दे को देशव्यापी आंदोलन बनाने से रोक रहा है। संघ 60 लाख स्वैच्छिक कार्यकर्ता और 59,266 शाखाओं के माध्यम से किसी भी मुद्दे को देशव्यापी बनाने में पूरी तरह से सक्षम है। जब एक साथ इतनी बड़ी संख्या में कार्यकर्ता अपनी आवाज उठाएंगे और इन हत्याओं के दोषियों के खिलाफ उठ खड़े होंगे तो न केवल अपराधियों के मन में डर घर करेगा बल्कि ममता बनर्जी जैसी नेताओं की सरकार भी अपराधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने को मजबूर हो जाएगी। शायद इसके बाद ही इन हत्याओं को रोका जा सकेगा।
डर किसी भी क्षेत्र में शक्ति संतुलन का काम करता है। कानून व्यवस्था भी सजा देकर दोषियों में डर पैदा करने की कोशिश करता है ताकि कोई और अपराध न करे।
इसी तरह जब निर्मम हत्या करने वालों के खिलाफ पूरा देश उठ खड़ा होगा तभी इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकेगा। राजनीतिक हिंसा के खिलाफ इस आंदोलन को देशव्यापी आंदोलन बनाने के लिए आरएसएस को अपने देश भर के कार्यकर्ताओं का आह्वान करना होगा, देश के सभी शहर, जिले और राज्य स्तर पर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करना होगा, ताकि देश की 130 करोड़ जनता को पता चल सके कि किस तरह से उनके कार्यकर्ताओं की केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में निर्ममता से हत्या की जा रही है। आज की मीडिया ने जिस तरह से संवेदनशील मुद्दों पर भी खुद को एकतरफा कर लिया है उससे आम जनता को आधा सच ही पता चल पाता है। अब लोगों को अपने कार्यकर्ताओं की हो रही राजनीतिक हत्या के बारे में बताने की ज़िम्मेदारी, स्वयं संघ को लेनी चाहिए। जिस तरह से कार्यकर्ता देश के किसी भी आपदा में निस्वार्थ भाव से अपनी सेवा देने से नहीं घबराते हैं, उन सेवा कर्ताओं के लिए देश जरूर उठ खड़ा होगा। जब तक देश की 130 करोड़ जनता अंदर से नहीं जाग जाती और सड़क पर नहीं उतर जाती तब तक प्रदर्शन करना होगा जिससे ऐसे जघन्य अपराध करने वालों को संघ और हिंदुओं की ताकत का अहसास हो सके। तब जाकर इन हत्याओं पर लगाम लगने में कामयाबी मिल सकेगी।
अभी तक इन मामलों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उतना प्रखर नहीं रहा है जितनी उससे अपेक्षा की जाती है। फिर भी लिबरल ब्रिगेड इस संगठन के पीछे पड़ा रहता है। लेकिन अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है, यही समय है जब संघ अपने कार्यकर्ताओं और हिंदुओं के लिए देशव्यापी आंदोलन के लिए कदम उठाए। हिंदुओं को अब अपने अंदर के क्षत्रिय को जगाना होगा जिससे कोई हत्या करने के इरादे से अपनी आँख उठाने से भी डरे।