पिछले कुछ दिनों से मुर्शिदाबाद का नाम सभी के जेहन में घर कर गया है। कारण है 10 अक्टूबर को एक ही परिवार के तीन लोगों का हृदय विदारक हत्या। यह वारदात इतना दिल दहला देने वाला था कि इसमें एक 6 वर्षीय मासूम बच्चे और 8 महीने की गर्भवती महिला को भी नहीं छोड़ा। पूरे हत्याकांड को समझने के लिए यह दिल दहला देने वाला फोटो ही काफी है। लेकिन फिर से इस मामले पर मीडिया अपने एजेंडे वाले रंग में आ गई है।
मीडिया दोनों तरफ को ही हवा दे रही है। कैसे किसी मुद्दे की संवेदनशीलता को दरकिनार करते हुये मीडिया राजनीतिकरण करती है उसे समझने के लिए यह मामला एक उदाहरण है। मीडिया ने ममता और उनकी सरकार पर दबाव बनाने के बजाय इस मुद्दे को आरएसएस/भाजपा बनाम ममता सरकार बना दिया है।
दरअसल, इस हत्याकांड के तुरंत बाद यह खबर आई थी कि मृत अध्यापक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) से जुड़े थे। RSS के भी कई कार्यकर्ताओं ने यह बात स्वीकार की थी कि वे संघ के शाखाओं में आते थे। लेकिन अब यह बात सामने आ रही है कि वे संघ से नहीं जुड़े थे और यह दावा करने वाली कोई और नहीं उनकी मां हैं।
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यह बात समझ में नहीं आ रही है कि किसी व्यक्ति को उसके मासूम बच्चे व गर्भवती पत्नी के साथ मार दिया जाता है और मीडिया प्रशासन और ममता सरकार पर सवाल उठाने के बजाय इस घटना को राजनीतिक रंग देने में लगी है।
जिस मीडिया ने बंधु प्रकाश की माँ से जाकर यह सवाल किया कि क्या वह आरएसएस के सदस्य थे या नहीं? उससे यह पूछना चाहूँगा कि आखिर वे इतने अमानवीय कैसे हो सकते हैं? एक माँ जिसने चार दिन पहले अपने लड़के, अपनी बहू, बहू के गर्भ में पल रहे 8 महीने का शिशु और एक 6 वर्ष का मासूम पोता खोया है क्या वह इस बात को कभी भी स्वीकार करेगी कि उसका लड़का किसी भी वैचारिक संगठन से जुड़ा था? जिस तरह के माहौल पश्चिम बंगाल में हैं और जिस तरह से RSS के कार्यकर्ताओं की लगातार जानें जा रही हैं, उससे तो कोई भी अपने-आप को इस संगठन से जुड़ा हुआ बताना नहीं चाहेगा।
यह भी देखना दिलचस्प है कि जैसे ही बंधु प्रकाश की माँ का बयान सामने आया ऐसा लगा कि मीडिया को जैसे एक और मौका मिल गया और उसने राहत की सांस ली। सभी ने तुरंत रिपोर्ट किया और कुछ पत्रकारों ने धड़ाधड़ ट्वीट भी की। मीडिया ने यह भी नहीं सोचा कि बंधु प्रकाश की माँ का इस तरह से पहचान लीक करना उनकी सुरक्षा के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है।
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जिस मीडिया से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे जघन्य वारदातों के लिए कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा करें और राज्य के मुख्यमंत्री ममता से पूछें कि क्यों पश्चिम बंगाल असुरक्षित है? मीडिया इस बात को भुला देना चाहती है कि पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में किस तरह से राजनीतिक हिंसा हुई थीं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा उपलब्ध कराए गए स्टैटिक्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल महिलाओं पर अत्याचार सहित सबसे खराब अपराध के रिकॉर्ड वाला राज्य है। इस (NCRB) रिपोर्ट के अनुसार “2017 से लगभग ऐसी घटनाओं की संख्या दोगुनी हो गई और अब तक हिंसा की 58 घटनाएं दर्ज की गईं, जिसमें नौ लोगों की जान चली गई और 230 घायल हुए। बच्चों के खिलाफ अपराधों में पश्चिम बंगाल देश में पांचवां स्थान रखता है।
वहीं NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में राज्य में कुल 3,597 मामले दर्ज किए गए, जिनमें अधिकांश पीड़ित महिलाएं (595 पुरुष और 3569 महिलाएं) थीं। हालांकि, हजारों मामलों के बाद भी, केवल 18.8% की सजा दर के साथ 1,186 मामलों में चार्जशीट दायर की गई थी। मानव तस्करी के सबसे अधिक 3,579 मामले (कुल का करीब 44 प्रतिशत) पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए। वर्ष 2015 में असम पहले और पश्चिम बंगाल 1,255 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर था। मीडिया इन मुद्दों पर ममता बनर्जी से सवाल नहीं पूछ रही है क्योंकि सवाल पूछेगी तो ममता दीदी के कारनामों का काला चिट्ठा खुल जाएगा।
बंगाल के इतने तनावपूर्ण समय में भी मीडिया का पक्षपाती कवरेज देख वास्तव में हर किसी का मन विचलित हो जाता है। मीडिया हत्याकांड की क्रूरता पर ध्यान न देकर इसे राजनीतिकरण करने में लगी हुई है। इससे साफ पता चलता है कि मीडिया एक नाकाम सरकार, लचर प्रशासन व्यवस्था की हितैषी है, उससे सवाल नहीं पूछेगी, क्योंकि वहां उसका झुकाव है। वहीं पूरे मुद्दे से जनता का ध्यान हटाते हुए उस संगठन का विरोध करेगी क्योंकि वह उससे नफरत करती है।