उत्तर पूर्वी भारत के सबसे लोकप्रिय पर्यटन क्षेत्रों में से एक है मेघालय। इस क्षेत्र की सुंदरता के कारण कई लोग आकर्षित होकर असम एवं भारत के अन्य क्षेत्रों से ग्रीष्म ऋतु में यहाँ घूमने के लिए आते हैं। पिछले महीने हमने अपने लेख के जरिए इनर लाइन पर्मिट की अप्रासंगिकता पर प्रकाश डाला था। परंतु एक महीने से भी कम समय में ऐसा लगता है कि मेघालय सरकार ने इसी परिपाटी पर दोबारा चलने का निर्णय लिया है।
2019 के मेघालय निवासी सुरक्षा एक्ट के अनुसार, राज्य में प्रवेश कर रहे जो भी पर्यटक वहाँ चौबीस घंटों से ज़्यादा रुकना चाहते हैं, उन्हें सरकारी नियमों के अनुसार पंजीकरण कराना होगा। ये एक्ट 2016 से राज्य में लागू था, जिसके अनुसार किराए पर रह रहे सभी निवासियों को दोर्बर श्नोंग यानि क्षेत्र के प्रमुख से पंजीकरण करना अनिवार्य होगा। यूं तो अभी मेघालय की विधानसभा सक्रिय नहीं है, परंतु सरकार ने एक अध्यादेश के सहारे इस विवादास्पद एक्ट को और शक्तिशाली बनाने का निर्णय लिया है। चौबीस घंटे से ज़्यादा टिकने वाले पर्यटकों का पंजीकरण ऑनलाइन करने के साथ-साथ बॉर्डर रोड पर स्थापित किए जाने कई विभिन्न बूथों पर कराया जाएगा।
राज्य में कई गुट इस प्रकार की आईएलपी को लागू कराने के लिए हुड़दंग मचाए हुए हैं। पिछले महीने हमने बताया था कि आईएलपी जैसे प्रणाली के लिए केंद्र सरकार से सहमति लेनी होती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी सरकार इन मांगों के सामने झुकने वालो में से नहीं है। अब देखना यह होगा कि केंद्र सरकार मेघालय सरकार द्वारा घुसपैठ को रोकने के इस ‘नायाब प्रयास’ के प्रति क्या प्रतिक्रिया देती है। यदि कुछ भी प्रतिकूल हुआ, तो उससे न केवल पर्यटन प्रभावित होगा, बल्कि पीएम मोदी की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को भी नुकसान होगा।
यहाँ बता दें कि राज्य में घुसपैठ की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है। जहां बांग्लादेशियों के घुसपैठ पर राज्य कोई ध्यान नहीं दे रहा, तो वहीं उनके घुसपैठ की परिभाषा में घुसपैठियों के बजाए भारतीयों पर ही निशाना साधा गया है। सरकार का वर्तमान निर्णय इस राज्य में आने वाले भारतीयों के हितों के विरुद्ध जाती दिखाई दे रही है।
कोई व्यक्ति यदि भारत के किसी कोने से आया है, तो वो निश्चित रूप से राज्य में चौबीस घंटे से ज़्यादा बिताएगा। अब इसके लिए उन्हें पंजीकरण कराना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि लोगों के आवागमन पर प्रतिबंध लगाने से क्षेत्र के पर्यटन अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यूं तो कॉनराड संगमा की अगुवाई वाली सरकार राज्य में पर्यटन के विकास की बातें करती है, लेकिन इस तरह का कदम फिर किसलिए लाया गया है, यह हर किसी के समझ से परे है। राज्य में गुटबाज़ों की कमी नहीं है। ऐसे में सरकार लोगों को कैसे विश्वास दिलाएगी कि उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा और सड़कों पर किसी को भी दस्तावेज दिखाने के लिए बाध्य किया जाएगा? विशेष रूप से, भाजपा भी यहां सरकार में भागेदारी रखती है। क्या मेघालय कैबिनेट द्वारा इस अध्यादेश को पारित कराये जाने के लिए उनकी अंतरात्मा और विचारधारा घास चरने चली गयी थी?
इस निर्णय के कारण अनौपचारिक वर्किंग क्लास निस्संदेह निराश हुए होंगे। उदाहरण के लिए, निरंतर यात्रा करने वाले मजदूरों को मेघालय में प्रवेश करने के लिए हर बार अपना पंजीकरण कराना होगा। मजे की बात तो यह है कि यहाँ के लोग बिहार और यूपी के मजदूरों द्वारा बनाए गए अपने महलनुमा घर बनवाते है। ऐसे में निर्माण क्षेत्र को भी यहाँ नुकसान होगा क्योंकि मजदूर अब काम करने के लिए वैकल्पिक स्थानों की तलाश करेंगे।
जैसा पहले बताया गया है, यह निर्णय राज्य में गैर-मेघालयी लोगों के आवागमन को रोकने के लिए लिया गया है। लेकिन सरकार ने दावा किया है कि यह राज्य के दोनों प्रकार निवासियों की सुरक्षा के लिए है। लेकिन अब यह सोचने वाली ही बात है कि मेघालय में ऐसा क्या खास है कि आगंतुकों को सरकार द्वारा अपनी सुरक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी? अगर कुछ और नहीं, तो सरकार को एक बेहतर बहाने के साथ सामने आना चाहिए, क्योंकि इनके वर्तमान निर्णय को समर्थन तो बहुत कम ही प्राप्त होगा।