महाराष्ट्र में पिछले 20 दिनों से जारी कुर्सी के खेल का तो आपको पता ही होगा, इसी खेल की क्रिकेट के खेल से तुलना करते हुए इसी महीने 14 नवंबर को केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि ‘क्रिकेट और राजनीति में कुछ भी संभव है’। कभी आपको लगता है कि आप मैच हार रहे हैं, लेकिन परिणाम एकदम विपरीत हो जाता है’। उनके कहने के दस दिन बाद ही भाजपा ने इसे साबित भी कर दिया। एक तरफ जहां महाराष्ट्र में शिवसेना, NCP और कांग्रेस सरकार बनाने के बेहद नजदीक दिखाई दे रही थी, तो उसी दौरान शनिवार तड़के खबर आई कि महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री की शपथ ले चुके हैं और अजीत पवार राज्य के उप-मुख्यमंत्री बन चुके हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में इस बड़े उलटफेर का हम सब को बेशक आज सुबह पता चला हो, लेकिन इस बात में कोई शक नहीं है कि इस सब में आधुनिक राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की बड़ी भूमिका जरूर रही होगी। महाराष्ट्र की राजनीति में चल रहे संग्राम पर अमित शाह ने ना तो खुलकर कभी बयान दिया और ना ही कभी सीना ठोक कर कोई दावा किया।
हालांकि, आज यह साबित हो गया कि असल में पूरे गेम को शुरू से ही अमित शाह कंट्रोल कर रहे थे, और संजय राउत और उद्धव ठाकरे बिलकुल उसी तरह बर्ताव कर रहे थे, जैसा अमित शाह चाहते थे।
अमित शाह ने यहां सबसे बड़ी चाल यह चली कि उन्होंने अजीत पवार को लेकर अपना सबसे बड़ा दांव खेला। एक तरफ जहां और उनके चाचा यानि शरद पवार कांग्रेस और शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने का जुगाड़ कर रहे थे, तो अमित शाह ने चुपके से अजीत पवार को डिप्टी सीएम के पद का ऑफर देकर NCP के एक बड़े धड़े को अपने साथ कर लिया। यह बात अजीत पवार को भी पता है कि उनका फायदा उसी एनसीपी का नेतृत्व करने में होगा, जहां वे बड़ी भूमिका में होंगे। अमित शाह ने उनको यह अवसर दिया और उन्हें उनकी अपनी पार्टी में बड़ी भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया। अजीत पवार ने भी बिना समय गवाएँ भाजपा का समर्थन करना इसलिए मुनासिब समझा क्योंकि अगर शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर एनसीपी सरकार बनाती, तो अजीत पवार को वह बड़ी भूमिका मिल ही नहीं पाती। अब ना सिर्फ वे सरकार में बड़ी भूमिका में हैं बल्कि अपनी पार्टी एनसीपी में भी उनका कद रातों-रात बढ़ गया है।
हालांकि, अमित शाह की इस चाल से NCP पार्टी दो हिस्सों में बंट चुकी है। शरद पवार ने इस फैसले को उनके बेटे का निजी फैसला करार देते हुए इस पूरे प्रकरण से दूरी बना ली है। आज सुबह उन्होंने इसको लेकर ट्वीट भी किया।
Ajit Pawar's decision to support the BJP to form the Maharashtra Government is his personal decision and not that of the Nationalist Congress Party (NCP).
We place on record that we do not support or endorse this decision of his.— Sharad Pawar (@PawarSpeaks) November 23, 2019
जिससे यह स्पष्ट होता है कि शरद पवार को अमित शाह की इस चाल के बारे में कुछ पता ही नहीं था। हालांकि, इससे पहले अमित शाह और पीएम मोदी ने मिलकर ऐसी रणनीति जरूर बनाई जिससे किसी को इस बात का शक न हो कि अजीत पवार को भाजपा आपस में संपर्क में हैं। दरअसल, 20 नवंबर को शरद पवार ने संसद में पीएम मोदी से 50 मिनट के लिए मुलाक़ात की थी और तब यह अटकले लगाई जाने लगी थी कि कहीं शरद पवार सरकार बनाने के लिए भाजपा का साथ देने की योजना तो नहीं बना रहे हैं? लेकिन इस बात का शायद ही किसी को पता था कि भाजपा के निशाने पर शरद पवार नहीं बल्कि अजीत पवार थे। ऐसा लगता है कि शरद पवार के साथ मुलाक़ात करना तो पीएम मोदी और अमित शाह का बड़ा प्लान था ताकि सबका ध्यान भटकाया जा सके। इस पूरी रणनीति को अब शरद पवार भी समझ चुके होंगे, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है।
हालांकि, भाजपा की इस बड़ी चाल से किसी को कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे पहले भाजपा ऐसे ही चुनावी समीकरणों के बीच कर्नाटका और बिहार में सरकार बना चुकी है। पिछले वर्ष मई में 222 सीटों वाली कर्नाटका विधानसभा के नतीजों में बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई थी। दूसरे नंबर पर 78 सीटों के साथ कांग्रेस रही थी, जबकि जेडीएस 37 सीटें जीतने में सफल हुई थी। उस वक्त कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए JDS को अपना समर्थन दे दिया था। हालांकि, इस सरकार को झटका तब लगा था जब दो सप्ताह के अंदर-अंदर 18 विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सदन से भी इस्तीफा दे दिया था। 18 विधायकों के कम हो जाने से कर्नाटका विधानसभा का जादुई आंकड़ा कम हो गया था और निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर भाजपा ने अपनी सरकार बना ली थी। इसी तरह वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार में महागठबंधन (आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस) की सरकार बनी थी, जिसके मुखिया नीतीश कुमार थे और बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में वे सत्ता की कुर्सी संभाल रहे थे, लेकिन महज़ 20 महीने बाद ये गठबंधन टूट गया और नीतीश कुमार ने बीजेपी के समर्थन से फिर से बिहार में सरकार बना ली थी। अब हमें महाराष्ट्र में यही देखने को मिला है, जहां के राजनीतिक परिदृश्य का इस बार कोई भी सही आंकलन नहीं कर सका था। परन्तु अमित शाह ने अपनी रणनीतियों से महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा उल्टफेर कर दिया है और अजित पवार के साथ मिलकर राज्य में सरकार का गठन कर लिया है। ऐसा करके उन्होंने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि आखिर क्यों उन्हें भारतीय राजनीति का चाणक्य कहा जाता है।