ऐसा लगता है असदुद्दीन ओवैसी के सिर से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए राम मंदिर पर निर्णय का भूत नहीं उतरा है। उनके हालिया बयानों से तो यही लगता है क्योंकि अब उन्होंने निर्णय के खिलाफ विक्टिम कार्ड खेलना शुरू कर दिया है और इस फैसले को पक्षपाती बताया है। उन्होंने ट्विटर पर आउटलुक को दिये गए इंटरव्यू को पोस्ट करते हुए खुलेआम घोषित कर दिया कि उन्हें मस्जिद वापिस चाहिए।
I want my masjid back. https://t.co/S3gOvF7q95
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) November 15, 2019
आउटलुक को दिये गए अपने इंटरव्यू में ओवैसी ने यह कहा कि वे किसी भी ऐसी चीज का विरोध करेंगे जो भारतीय संविधान और विविधता के खिलाफ होगी। अगर उनके शब्दों में कहा जाए तो, ‘मेरे लिए संविधान सर्वपरी है और यह मुझे अधिकार देता है कि मैं सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले से असहमत हो सकता हूं। मैं किसी भी ऐसी चीज़ का विरोध करूंगा जो संविधान के खिलाफ है’।
उन्होंने आगे कहा, “हमारी लड़ाई किसी जमीन के टुकड़े के लिए नहीं है। यह सुनिश्चित करना था कि मेरे कानूनी अधिकारों का हनन न हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि मस्जिद बनाने के लिए किसी भी मंदिर को ध्वस्त नहीं किया गया था। मुझे अपनी मस्जिद वापस चाहिए।”
बता दें कि 9 नवंबर को सुनाए गए एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अयोध्या मामले में न्यास के पक्ष में फैसला सुनाया, और पूरे विवादित स्थल को राम जन्मभूमि परिसर के प्रतिनिधियों को आवंटित कर दिया। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 को लागू करते हुए, सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा प्रतिनिधित्व की गई मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ की एक वैकल्पिक भूमि भी आवंटित की, जिससे उन्हें अयोध्या में कहीं भी मस्जिद बनाने की अनुमति मिल सके।
अब अचानक से असदुद्दीन ओवैसी भारत और भारत के बहुवाद की बात कर रहे हैं। इन्हें बहुवाद के नाम पर मस्जिद चाहिए लेकिन मंदिर से दिक्कत है। यह कैसी विविधता की परिभाषा है? किस तरह का बहुवाद मस्जिद की अनुमति देता है, लेकिन मंदिर को कोई स्थान नहीं देता? विविधता का मतलब सिर्फ इस्लामिकरण होता है? अगर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि वैकल्पिक स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए जमीन दी जाएगी फिर अब कैसा विवाद? जब हमारे देश का संविधान सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार देता है कि वो फैसला ले जिससे न्याय सुनिश्चित हो तो भला वो संविधान के खिलाफ कैसे हो सकता है? 1994 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नमाज कहीं भी की जा सकती है, इसके लिए मस्जिद होना जरूरी नहीं हैं।
यही नहीं उन्होंने ASI द्वारा खोजे गए साक्ष्यों खास कर के.के मुहम्मद द्वारा किए गए दावों का भी मज़ाक उड़ाया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे केवल यात्रियों की यात्रा वृतांत और रिपोर्ट पर भरोसा नहीं कर सकते। उन्होंने यह भी कहा कि ‘मंदिर की कोई संरचना नहीं थी और कोई मंदिर नष्ट नहीं हुआ था। सभी के.के. मुहम्मद और पुरातत्वविद् के दावों का कोई मतलब नहीं है’।
एक बात असदुद्दीन ओवैसी को मान लेनी चाहिए कि के.के मुहम्मद द्वारा बाबरी के नीचे खोजे गए मंदिरों के साक्ष्य, देशी संस्कृति के प्रति एक गहरी अवमानना के अलावा कुछ भी नहीं हैं, जो किसी भी रूप में विविधता नहीं हो सकती। केके मोहम्मद ने पुरातत्वविद बीबी लाल के साथ काम किया है। जिन्होंने उस खुदाई टीम का नेतृत्व किया जिसने पहली बार 1976-77 में बाबरी मस्जिद स्थल पर एक हिंदू मंदिर के अवशेषों का पता लगाने का दावा किया था। पुरातत्व वैज्ञानिक डॉ. केके मोहम्मद ने अपनी किताब में लिखा था ‘जो कुछ मैंने जाना और कहा है, वो ऐतिहासिक सच है। हमें विवादित स्थल से 14 स्तंभ मिले थे। सभी स्तंभों में गुंबद खुदे हुए थे। ये 11वीं और 12वीं शताब्दी के मंदिरों में मिलने वाले गुंबद जैसे थे। गुंबद में ऐसे 9 प्रतीक मिले हैं, जो मंदिर में मिलते हैं’।
निलंबन की धमकियों सहित उनकी आवाज़ को दबाने के लिए अनगिनत प्रयास किए गए, लेकिन केके मुहम्मद ने राष्ट्रीय हितों को सबसे उपर रखते हुए अपने रुख पर कायम रहे।
हालांकि, एक बात तो तय है कि जब असदुद्दीन ओवैसी भारत के ‘संविधान और विविधता’ की बात करते है तो, वह अप्रत्यक्ष रूप से कट्टरपंथी इस्लामवाद का समर्थन करते हैं। हालांकि, यह पहला मामला नहीं है, जहां उन्होंने ऐसा कहा है, न ही यह उनका आखिरी इंटरव्यू है। यह आज जो भारत के संविधान ’के लिए लड़ने का दावा कर रहे है, वह बेशर्मी से कुछ महीने पहले ट्रिपल तालक जैसी प्रथा का समर्थन कर रहे थे। सिर्फ यही नहीं उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले का भी विरोध किया था। यह सभी को पता है कि अनुच्छेद 370 के कारण कश्मीरी महिलाओं को असमानता का सामना करना पड़ता था और इसी अनुच्छेद का इस्तेमाल कर पाकिस्तान अलगाववाद को बढ़ावा देता था। वे वही व्यक्ति हैं जिन्होंने पिछले साल हैदराबाद में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते समय खुलेआम धमकी दी थी कि ‘हम आपको इस्लाम में शामिल कर जबरन दाढ़ी रखने पर मजबूर करेंगे’। अगर वे ओवैसी इसे बहुलवाद कहते हैं तो यह स्पष्ट रूप से जनता की आँखों में धूल झोंक कर इस देश को अरब देशों जैसा बनाना चाहते है।
सच कहें तो, असदुद्दीन ओवैसी एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति है। आउटलुक के साथ उनका साक्षात्कार स्पष्ट रूप से कट्टरपंथी इस्लाम के लिए उनकी आत्मीयता को दर्शाता है, और यह आश्चर्य की बात नहीं है अगर वो दूसरे कासिम रिज़वी बनने का प्रयास कर रहे हैं। आखिर खयाली पुलाव पकाने में क्या जाता है?