पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में अधिवक्ताओं और दिल्ली पुलिस की बीच तनातनी के कारण भूचाल सा आया हुआ है। दोनों के बीच 2 नवम्बर को तीस हजारी कोर्ट परिसर में हिंसक झड़प हुई थी। पुलिस अफसरों के अनुसार इस झड़प में 20 पुलिस वाले घायल हुए, जबकि कई अन्य अधिवक्ता घायल हो गए। कई गाड़ियों के साथ तोड़फोड़ की गयी और उन्हें आग के हवाले कर दिया गया। ये झड़प दोनों पक्षों में पार्किंग के मामूली मुद्दे को लेकर हुई थी।
ये काफी निराशाजनक है कि एक मामूली घटना के कारण हिंसा ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया। इस घटना के बारे में पुलिस और अधिवक्ताओं के अलग-अलग बयान सामने आए हैं। अधिवक्ताओं ने दावा किया है कि उनके कई साथी इस हिंसक झड़प में घायल हुए हैं, क्योंकि पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। हालांकि, पुलिस ने कहा है कि उन्होंने केवल हवा में फायरिंग की थी।
अधिवक्ताओं के अनुसार एक अधिवक्ता की गाड़ी ने एक जेल वैन को कथित रूप से टक्कर मार दी थी। तीस हजारी बार एसोसिएशन के सेक्रेटरी जयवीर सिंह चौहान ने बताया, ‘उस अधिवक्ता को लॉकअप में ले जाया गया और खूब पीटा गया। एसएचओ आया पर उसे अंदर नहीं जाने दिया गया। केन्द्रीय और पश्चिमी जिले के जिला जज छह अन्य जजों के साथ आए, पर वे भी उस अधिवक्ता को नहीं छुड़ा पाये’।
वहीं पुलिस ने बताया कि एक कांस्टेबल ने केवल अधिवक्ता से एक निश्चित क्षेत्र में पार्किंग करने का आग्रह किया था, क्योंकि वह कैदियों को ले जाने वाले वाहन की आवाजाही में बाधा बन रही थी। दिल्ली पुलिस के एडिशनल पीआरओ अनिल मित्तल ने बताया, ‘इस घटना का विरोध करने हेतु तीस हजारी कोर्ट के कई अधिवक्ता लॉकअप के सामने आए। सीसीटीवी फुटेज के अनुसार हमें पता चला है कि अधिवक्ताओं ने ज़बरदस्ती लॉकअप में प्रवेश किया एवं पुलिस अफसरों के साथ बदतमीजी और हाथापाई करने लगे’।
परंतु स्थिति तब बिगड़ गयी, जब दिल्ली के अधिवक्ताओं और पुलिस वालों के बीच एक झड़प का वीडियो सामने आया। तीस हजारी की झड़प के कुछ दिनों बाद आए इस वीडियो में अधिवक्ताओं के एक गुट द्वारा एक बाइक चला रहे पुलिस कर्मचारी को पीटते हुए देखा गया। यह घटना साकेत में स्थित न्यायालय के बाहर हुई। ऐसी ही एक झड़प सोमवार को कड़कड़डूमा में स्थित जिला न्यायालय के पास भी देखने को मिली, जो तीस हजारी कोर्ट वाली घटना के ठीक दो दिन बाद हुआ।
इन घटनाओं के कारण अब दिल्ली पुलिस एवं अधिवक्ताओं में एक अघोषित युद्ध छिड़ गया है। दिल्ली पुलिस के हजारों कर्मचारियों एवं उनके परिवारजनों ने पुलिस मुख्यालय के सामने 11 घंटों तक विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने तब अपना प्रदर्शन रोका जब वरिष्ठ अफसरों ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनकी समस्याओं का निवारण किया जाएगा। सुरक्षा की दृष्टि से बुधवार को सीआरपीएफ़ की एक कंपनी फोर्स को नियुक्त किया गया।
वहीं दूसरी ओर तीस हज़ारी के झड़प के विरोध में अधिवक्ताओं की हड़ताल बुधवार को भी जारी रही। साकेत कोर्ट में अधिवक्ता ने न्यायालय के मुख्य गेट को अवरुद्ध कर दिया, जिसके कारण कई याचिककर्ताओं को बिना मामले की सुनवाई के ही वापस लौटना पड़ा। वहीं रोहिणी कोर्ट में एक अधिवक्ता ने कथित रूप से आत्मदाह की कोशिश की, और एक अन्य अधिवक्ता ने तो अदालत की इमारत की 14 वीं मंजिल से कूदने की कोशिश भी की।
सच तो यह है कि अधिवक्ता और पुलिस एक ही गाड़ी के दो अहम पहिये, जिनके बिना न्यायिक प्रणाली की गाड़ी एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकती। ऐसे में वर्तमान स्थिति न केवल गंभीर है, अपितु चिंताजनक भी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस विषय पर बेहद सटीक विश्लेषण करते हुए बताया, “हमारे लोकतांत्रिक प्रणाली में, बार काउंसिल और पुलिस प्रतिष्ठान कानून व्यवस्था के अध्यक्ष, संरक्षक और रक्षक के रूप में प्रतिनिधित्व एवं गठन करते हैं।” यही नहीं, कोर्ट ने ये भी कहा कि “वे न्याय के सिक्के के दो पहलू हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस के प्रतिनिधियों से भी आग्रह किया है कि वे उनके मतभेदों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए एक संयुक्त बैठक आयोजित करने की वकालत करें’।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह रुख काफी सराहनीय है। कोर्ट ने सही कहा है कि पुलिस एवं न्यायालय कानून व्यवस्था के दो अहम पहलू है। यदि इनमें से एक भी असफल रहता है, तो समूचे आपराधिक न्याय प्रणाली को नुकसान पहुंचता है, जिसका नुकसान केवल इन दोनों पक्षों को नहीं, आम जनता को भी होता है।
दिल्ली पुलिस ने अपने विरोध प्रदर्शन पर रोक तो लगाई है, परंतु ये स्थिति काफी चिंताजनक है, क्योंकि यदि पुलिस वाले ही हड़ताल पर चले गए तो यह शहर की कानून और व्यवस्था की स्थिति को पैरालाइज़ कर सकता है। इसी तरह, अगर न्याय की मांग करते हुए अधिवक्ता हड़ताल पर चले जाते हैं, तो आम नागरिकों को कैसे न्याय मिलेगा? यह एक अजीब और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जहां सामान्य नागरिकों के लिए न्याय पाने की इच्छा रखने वाले लोग खुद न्याय मांगने के लिए हड़ताल पर हैं। ऐसे में दिल्ली पुलिस के शीर्ष अधिकारियों और बार एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्यों को एक साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने की रणनीति तैयार करनी चाहिए कि भविष्य में इस तरह की झड़प दोबारा न हो।