ओडिशा की नवीन पटनायक की सरकार ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का अधिकतम लक्ष्य हासिल करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेताओं विजेता- अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो के संगठन के साथ साझेदारी की है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पांच ‘टी’ पहल के तहत यह कदम उठाया गया है। यह 5 त कुछ इसप्रकार है: पहला टीमवर्क-दलगत भावना, दूसरा टेक्नोलॉजी-प्रौद्योगिकी, तीसरा ट्रांसपेरेंसी- पारदर्शिता, चौथा टाईम-समय और फिर पांचवा ट्रांसफॉरमेशन- बदलाव। राज्य सरकार ने नीति निर्माण के प्रति रणनीतिक साक्ष्य आधारित पहल के लिए बृहस्पतिवार को अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब (जे-पीएएल) के साथ करार किया।
लेकिन इसकी क्या जरूरत थी? नवीन पटनायक स्वयं अपनी नीतियों से राज्य में गरीबी कम करने में सफल रहे है। अभिजीत बनर्जी को उनकी वामपंथी नीतियों के लिए जाना जाता है जो ज्यादा कमाई वाले लोगों से ज्यादा टैक्स लेने और इसे गरीबों में वितरित करने का समर्थन करते हैं ताकि ऐसा करके वो असमानता को दूर कर सकें।
अगर हम नवीन पटनायक के मुख्यमंत्री पद का कार्यकाल देखे तो रिकॉर्ड काफी अच्छा रहा है। वर्ष 1999 में उनके आने से पहले ओडिशा देश का सबसे गरीब राज्य था जहां खाने के लाले पड़े थे। अंग्रेजों ने जितनी लूट ओडिशा में मचाई थी उसकी झलक आज भी गरीबी में दिखती है। आजादी के बाद देश की समाजवादी आर्थिक नीतियों ने अगर सबसे ज्यादा किसी को नुकसान पहुंचाया तो वह ओडिशा ही था। राज्य के खनिज भंडार होने के बावजूद भी ये राज्य गरीबी का पर्याय बन चुका था। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1986 में राज्य की 55 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे थी। फिर भारत सरकार ने जब अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया तब ओडिशा सबसे अधिक फायदे में रहने वाला राज्य था। उस समय गरीबी में तुरंत ही गिरावट आई और वर्ष 1993 तक यह गिरावट 7 प्रतिशत की रही। इसके बाद जब नवीन पटनायक ने 1999 में मुख्यमंत्री पद संभाला तो एक तरफ जहां देश की 26 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे थी तो ओडिशा की लगभग 47 प्रतिशत जनसंख्या अभी भी गरीबी रेखा के नीचे थी यानि आधा राज्य ही गरीबी रेखा के नीचे था। हालांकि, शुरुआत में वर्ष 2005 तक यह बढ़ कर 57 प्रतिशत हो गया, लेकिन उसके बाद नवीन पटनायक द्वारा किए गए सुधारों का असर दिखने लगा और वर्ष 2011-12 तक यह 32 प्रतिशत तक आ गया। यानि राज्य की जनसंख्या का कुल 24 प्रतिशत गरीबी रेखा से ऊपर उठ चुका था। उस समय देश की कुल 21 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे थी।
शहरी क्षेत्रों की बात हो या ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में ओडिशा का प्रदर्शन देश के प्रदर्शन से बेहतर रहा है।
एक तरफ जहां शहरी क्षेत्रों में 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह गिरावट 24 प्रतिशत तक रही। वहीं, प्रति व्यक्ति आय में भी इस दौरान भारी बढ़ोतरी देखने को मिली थी। ओडिशा में वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रति व्यक्ति आय सालाना 75,796 रूपये है। पिछले सात वर्षों में उच्च आर्थिक विकास और नियंत्रित जनसंख्या में वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में 6.6% की वृद्धि हुई, जबकि राष्ट्रीय वृद्धि दर 6.1% का है।
इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि नवीन पटनायक ने ओडिशा के लिए अच्छा काम किया है। वर्ष 2012-13 के बाद से, ओडिशा की जीडीपी औसतन 8.10 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, और यह पिछले सात वर्षों में राष्ट्रीय जीडीपी दर की तुलना में अधिक तेज गति से बढ़ रहा है। इसके बावजूद अब नवीन पटनायक ने वामपंथी अर्थशास्त्री के हाथ मिलाया है। यह ओडिशा का फिर से समाजवादी आर्थिक नीतियों पर लौटने का पहला कदम नजर आ रहा है, जिसका अंजाम घातक हो सकता है। इसके साथ ही यह राज्य सबसे कम गति से विकास करने वाला राज्य बन सकता है।
कैसे घातक होगा यह कदम इसके लिए दो उदाहरण:
पहला 1990 के पहले का भारत
और दूसरा पश्चिम बंगाल
भारत ने 1991 में ही पूंजीवाद को अपनाकर समाजवादी अर्थशास्त्र को छोड़ दिया था। उससे पहले नेहरू और इंदिरा गांधी ने अपनी समाजवादी सोच को देश की आर्थिक नीतियों पर हावी रखा जिसके कारण देश का कभी भी विकास दर 3 प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ पाया। लेकिन फिर भी अभिजीत बनर्जी और अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्रियों से वामपंथी विचारधारा को ही मजबूती मिलती रही है तथा उनकी नीतियों की स्वीकार्यता भी बढ़ी है। इसी का नतीजा है कि भारत आज भी इन अर्थशास्त्रियों की नीतियों के कारण गरीब देशों में गिना जाता है।
अब बात करते है बंगाल कि जो आज भी इसी वामपंथी सोच से ग्रसित है। एक समय में व्यापार और सत्ता का केंद्र होने के बावजूद आज पश्चिम बंगाल पिछड़े राज्यों में आता है। इसका कारण वामपंथी राज्य सरकारें और अमर्त्य सेन जैसे वामपंथी अर्थशास्त्री हैं। अर्थव्यवस्थाओं के इतिहास को देखें, तो गरीबी और साम्यवाद का साथ चोली-दामन जैसा है। वामपंथ जब किसी देश या क्षेत्र में आता है, तो उसके बाद गरीबी, सत्तावाद, बोलने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और फिर तानाशाही का दौर निश्चित आता है। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों के शासन के दौरान, व्यापारी और उद्योगपतियों की उत्पीड़न आम घटना थी। कम्युनिस्ट नेताओं ने उद्योगपति को ‘बुर्जुआ’ के रूप में बदनाम किया और उन्हें किनारे कर दिया।
आज कुल औद्योगिक उत्पादन में पश्चिम बंगाल की हिस्सेदारी 1980-81 में 9.8 प्रतिशत से घटकर आज केवल 5 प्रतिशत रह गई है। जीडीपी में विनिर्माण का हिस्सा 1981-81 में 21 प्रतिशत से घटकर 13 प्रतिशत हो गया है। राज्य का बैंक डिपॉजिट 11.4 प्रतिशत से घटकर 7 प्रतिशत हो गया। बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर पश्चिम बंगाल का सूचकांक 1980 में 110.6 था, जिसका अर्थ है कि देश के बाकी हिस्सों की तुलना में 10.6 प्रतिशत बेहतर था और यह आज यह 90.8 अंक तक गिर गया। वहीं दूसरी ओर, ओडिशा ने 81.5 से 98.9 अंक तक का सुधार किया। वामपंथियों ने पश्चिम बंगाल को एक शहर आश्रित-राज्य में बदल दिया और बिना ढांचागत विकास के कोलकाता का भौगोलिक विस्तार करना चाहा।
सूचना प्रौद्योगिकी, ऑटोमोबाइल, बैंकिंग और वित्त कंपनियों जैसे आधुनिक सेवा उद्योगों को पश्चिम बंगाल में पूंजी के प्रति वाम मोर्चा सरकार की उदासीनता के कारण स्थापित होने का मौका नहीं मिल पाया जिससे वह अन्य राज्यों में पलायन कर गए और वहीं के होकर रह गए।
अगर नवीन पटनायक अभिजीत बनर्जी की मदद किसी भी क्षेत्र में लेते हैं, चाहे वह गरीबी हटाने की हो या विकास कार्य की हो तो उन्हें भी उक्त परिणामों के लिए तैयार रहना होगा। बता दें कि अभिजीत बनर्जी उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के मैनिफेस्टो में शामिल बहुचर्चित ‘NYAY’ योजना की रुपरेखा तैयार की थी। उन्होंने टाइम्स नाउ के साथ एक इंटरव्यू में स्पष्ट कहा था कि बिना tax बढ़ाए ‘NYAY’ स्कीम नहीं लाया जा सकता है। जब बनर्जी से पूछा गया कि tax में क्या वृद्धि होनी चाहिए और कौन से नए tax लगाए जा सकते हैं, तो उन्होंने कहा, “इनकम tax को बढ़ाने की गुंजाइश है और GST बढ़ाने की गुंजाइश है।” इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ओडिशा का भी गरीबी उन्मूलन अब अमीरों पर अत्याचार कर किया जाएगा जिससे पश्चिम बंगाल की तरह ही इस राज्य से भी सभी व्यापारी भाग खड़े होंगे।