हम वैदिककाल से ही पर्यावरण प्रेमी रहे हैं, पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों का संरक्षण हमारी सभ्यता, हमारे धर्म में सदियों से रहा है लेकिन आज हम जिस आधुनिक युग में भाग रहे हैं वहां कहीं न कहीं पर्यावरण नाम का पहलू पीछे छूट गया है यानि पर्यावरण को हम मौजूदा समय में नजरअंदाज कर रहे हैं। इसी से जुड़ा हुआ मामला राजस्थान का है, जहां बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत हो रही है लेकिन किसी का भी ध्यान वहां नहीं जा रहा है। सभी महाराष्ट्र में सरकार, संजय राऊत की शायरी, JNU में छात्रों का उन्माद और BHU में धर्म विज्ञान संकाय में मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति पर ही ध्यान लगाए बैठे हैं।
दरअसल, राजस्थान की सांभर झील में करीब 20 हजार की संख्या में आए प्रवासी पक्षियों की मौत हो गई है। राज्य के तमाम विभाग एड़ी-चोटी का जोर लगाकर हालात काबू करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन परिंदों की मौत का सिलसिला अभी थमा नहीं है। इसे देश की सबसे बड़ी पक्षी त्रासदी भी कही जा सकती है। आंकड़ों के मुताबिक कुल 20 हजार विदेशी पक्षियों की मौत हो चुकी है। लेकिन, पक्षियों की मौत का कारण अभी तक किसी को नहीं पता चला है।
पक्षियों की बड़ी संख्या में मौत के बाद सरकार की एक और लापरवाही सामने आई कि यहां ना तो उच्च स्तर के पक्षी विशेषज्ञ हैं और ना ही लैब। पक्षियों के नमूनों को जांच के लिए चार राज्यों में भेजा गया है। बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत के बाद लिए गए सैंपलों को जांच के लिए कोयंबटूर, भोपाल, बरेली और देहरादून भेजा गया है। वहां से रिपोर्ट आने के बाद ही पक्षियों की मौत के कारणों का खुलासा हो सकेगा। अधिकारियों ने पक्षियों की मौत बर्ड फ्लू के कारण होने से इनकार किया है।
बता दें कि नमक के लिए मशहूर सांभर की यह झील खारे पानी की देश की सबसे बड़ी झील है। यहां नमक का उत्पादन होता है। राजस्थान की सांभर झील दुनियाभर में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर है। 90 स्क्वायर किलोमीटर में फैली इस विशाल झील में हर वक्त 30 हजार से ज्यादा पक्षियों की चहक गूंजती रहती है। जयपुर जिला कलेक्टर जगरूप सिंह यादव ने बताया कि पक्षियों की मौत शायद बोटुलिज्म के कारण हुई है। बोटुलिज्म का अर्थ है, मृत पक्षियों के जीवाणुओं से पक्षियों में पनपी अपंगता। मुख्य वन्यजीव संरक्षक अरिंदम तोमर ने सोमवार को बताया कि मृत पक्षियों की संख्या में वृद्धि हुई है और 10 नवंबर से यह संख्या लगभग 17,000 तक पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि मृत पक्षियों के कंकालों को नष्ट कर दिया गया है। जयपुर में अबतक 8500 पक्षियों की मौत हो चुकी है। सांभर झील में प्रतिवर्ष 85 प्रजातियों के पक्षी आते हैं। इस बार भी ये आए, लेकिन 32 प्रजातियों के पक्षियों की इनमें से मौत हो गई।
जिन प्रजातियों के पक्षियों की मौत हुई उनमें टमनिक, नोबिल डक, बुड सैंड पाइपर, लेसर सैंड प्लूवर, नॉर्दन शॉवलर, कॉमन टील, नॉर्दन पिटेल, मलाई, ब्लेक ब्राउन हैडेड गल, पलास गल, ग्रू प्लूवर, क्रीस्टेड लार्क, डेमोसियन क्रेन, इंडियन ईगल, फ्लोमिंग, लिटिल रिंग फ्लूवर, गल बिर्ल टर्न, केंटीस फ्लूवर, रूडी सेलडक, लेसर विसलिंग, गल बिल टर्न, कॉमन कुट, पायड एवोसेड, क्रीस्टेड लार्क, ब्लेक विंग स्टील्ट, रेड बेटेल्ड लेपविंग और पायड एवोसेड शामिल हैं।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस मुद्दे पर ट्वीट करते हुए लिखा है कि सांभर झील इलाके में पक्षियों की मौत चिंताजनक है। राज्य सरकार ने पक्षियों के मरने के कारणों का पता लगाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए हैं। यही नहीं, वह इस तरह की घटना को रोकने के लिए जरूरी कदम उठा रही है। राजस्थान हाईकोर्ट ने भी पक्षियों की मौत पर राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है और केंद्र सरकार ने विशेषज्ञों की टीम सांभर झील भेजी है।
Thousands of #migratory birds of about ten species were found dead mysteriously in #Rajasthan’s Sambhar Lake. Officials said they suspect water contamination as one of the reasons for the deaths but were awaiting viscera test reports. pic.twitter.com/YEaYq6iFVO
— East Godavari Zilla Praja Parishad (EGZPP) (@EGZPP) November 12, 2019
इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद मुख्यधारा की मीडिया की इस तरह से चुप्पी और TRP की होड़ देखकर यही कहा जा सकता है कि इसका सबसे अधिक नुकसान अगर किसी को होगा तो वह मानव जीवन को ही होगा। लेकिन संवेदनाओं को शून्य कर आज की मीडिया को सिर्फ अपने टीआरपी पर ध्यान देना आता है, बात अगर आरे कॉलोनी की होती तो यही मीडिया दहाड़ मारती दिख जाती क्योंकि वहां से उन्हें टीआरपी मिलता है, वहीं पर्यावरण एक्टिविस्टों का गैंग भी गायब है जो समय समय पर अपनी सुविधा के अनुसार विरोध करने के लिए प्रकट हो जाते हैं, लेकिन यह मानसिकता बदलने की जरूरत है तभी पर्यावरण, देश और पृथ्वी बच सकेगा।