हाल ही में जेएनयू के फीस विवाद में शिवसेना ने अपने बयान से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। उन्होंने इस मुद्दे पर न केवल जेएनयू के वामपंथी प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है, अपितु अपने ‘सेक्युलर’ पक्ष को खुलकर जनता के समक्ष उजागर किया है।
JNU students protesting is valid in any democracy, as long as its peaceful . Over fee hike? – fair or unfair is debatable. However, for Delhi police to resort to violent lathi charge to stop the protests is sign of a system that is unable to handle dissent. https://t.co/Yl5kQiy3T2
— Priyanka Chaturvedi🇮🇳 (@priyankac19) November 20, 2019
शिवसेना की वर्तमान प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने हाल ही में ट्वीट किया, ‘जेएनयू छात्रों का विरोध करना किसी भी लोकतंत्र में सही है, जबतक कि ये शांतिपूर्ण तरीके से हो। फीस बढ़ोतरी पर? ये सही है या गलत इसपर बहस हो सकती है।’ प्रियंका ने आगे लिखा, ‘दिल्ली पुलिस के द्वारा छात्रों के प्रदर्शन को रोकने के लिए लाठीचार्ज करना, इस बात का संकेत है कि व्यवस्था किसी तरह के विरोध को संभालने में असमर्थ है।’
स्वयं शिवसेना ने भी खुलकर जेएनयू के वामपंथी प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है। शिवसेना के मुखपत्र सामना में जेएनयू छात्रों पर हुए लाठीचार्ज पर सवाल खड़े किए गये हैं। इसके लिए सीधे तौर पर केन्द्र सरकार और बीजेपी दोनों को निशाने पर लिया गया है। सामना में लिखा है कि केन्द्र के मंत्री को छात्रों से बात करनी चाहिए थी लेकिन उन्होंन नहीं की और छात्रों पर लाठीचार्ज करवाया।
सामना में ये भी लिखा है कि ‘नेहरू’ नाम से वर्तमान सरकार का झगड़ा है, लेकिन फीस के विरोध में सड़कों पर उतरे विद्यार्थियों से सरकार ऐसा खूनी झगड़ा न करे।’ सामना में जेएनयू के छात्रों के विरोध प्रदर्शन को जायज ठहराते हुए, उन पर हुए लाठीचार्ज को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं और सीधे तौर पर बीजेपी और केंद्र पर निशाना साधा गया है।
इतना ही नहीं,’सामना’ में लिखे लेख के माध्यम से शिवसेना ने ये भी कहा है, ‘दिल्ली की सड़कों पर अपनी मांगों के लिए आंदोलन करने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के नेत्रहीन, विकलांग विद्यार्थियों को जिस प्रकार से बंधक बनाया गया वो चिंताजनक है। नेत्रहीनों को मारनेवाली पुलिस जनता की सेवक और कानून की रक्षक हो ही नहीं सकती। विद्यार्थियों को मत कुचलो।’
बयानों की इस श्रंखला ने सिद्ध कर दिया है कि कभी हिन्दुत्व पर छाती ठोंक कर दावा करने वाली शिवसेना किस तरह अब पूर्णतया सेक्युलर हो गयी है। महाराष्ट्र में शिवसेना अपना मुख्यमंत्री चाहती है और इसके लिए वो एनसीपी और कांग्रेस से गठबंधन के लिए तैयार भी थी लेकिन कांग्रेस चाहती थी कि शिवसेना अपनी हिंदुत्व वाली छवि को छोड़ दे। इसी मुद्दे पर महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार पर आखिर मुहर नहीं लग पा रही थी। अब शिवसेना ने जेएनयू के छात्रों के विरोध प्रदर्शन को सही ठहराकर खुद को सेक्युलर साबित करने का एक दांव चला है। पहले राम मंदिर (अयोध्या दौरा रद्द करके), और अब जेएनयू मुद्दे पर सरकार को घेरकर सिद्ध कर दिया है कि पार्टी सेक्युलर बनने के लिए पूरी तैयारी कर रही है।
कांग्रेस की शर्तों को मानते हुए आजकल शिवसेना जोर-शोर से सेक्युलर मुद्दे पर अपने विचार को रख रही है। ऐसा हम यूं ही नहीं कह रहे जरा संजय राउत के बयान पर ही नजर डाल लीजिये। दरअसल, संजय राउत ने अपने हाल के बयान में कहा है कि भारत का आधार ही धर्मनिरपेक्षता है। उनके शब्दों में “देश और उसकी बुनियाद धर्मनिरपेक्ष शब्द पर टिके हैं। आप किसानों, बेरोजगारों या भूखों से उनका धर्म या उनकी जाति नहीं पूछ सकते.. देश में सभी लोग धर्मनिरपेक्ष हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज ने हमेशा हर धर्म एवं जाति के लोगों को साथ रखा और शिवसेना के दिवंगत संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने सबसे पहले कोर्ट के सामने शपथ लेने के लिए धार्मिक ग्रंथों के स्थान पर भारतीय संविधान को रखने का विचार पेश किया था”। अब इस बयान के जरिये इस पार्टी ने दूसरी बार ये साबित करने का प्रयास किया है शिवसेना अब सेक्युलर हो रही है और कोई भी परीक्षा देने के लिए तैयार है। ऐसा करके इस पार्टी ने एनसीपी और कांग्रेस को ग्रीन सिग्नल भी दे दिया है कि वो राज्य में सरकार बनाने के लिए हर शर्त मानने को तैयार हैं।
बता दें कि एनसीपी और कांग्रेस ने “कॉमन मिनिमम प्रोग्राम” के तहत शिवसेना को सेक्युलर रहने की बात की गई थी। शिवसेना ने जिस तरह से सरकार बनाने के लिए इनकी हां में हां मिलाई है, उससे शिवसेना पर से अब हिंदुत्व का मुखौटा उतर गया है। विडम्बना तो देखिये, कभी अफजल के नारे लगाने वालों के खिलाफ बोलने वाली शिवसेना अब उनका समर्थन कर रही है। ये वही शिवसेना है जो कभी जेएनयू में पुलिस कार्रवाई के सुझाव स्वयं देती थी।
इतना ही नहीं, ऐसा भी कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे अब वीर सावरकर को भारत रत्न दिए जाने पर भी नरम पड़ गए हैं। जो पार्टी वीर सावरकर और राम मंदिर के मुद्दों पर भाजपा को नरम पड़ने के लिए दिन रात कोसती थी, अब वही सरकार के लालच में इनपर नरम पड़ती है। इस प्रकरण से पूर्णतया सिद्ध होता है कि शिवसेना अब एक सेक्युलर पार्टी बनकर रह गयी है, जिसका न मराठा गौरव से कोई लेना देना है न हिंदुत्व से, अब उसे सिर्फ कुर्सी से लेना देना है।