यूके का एक काला अतीत है, जिसमें ब्रिटिश साम्राज्य ने विश्व भर में अनगिनत अत्याचार किए हैं। ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में अभी भी एक भावना है कि वे दुनिया के शासक हैं, और वे इस तथ्य से पूरी तरह से बेखबर हैं कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ छोड़ने के अपने प्रयासों में लगभग असफल हो चुका है। ब्रिटेन अभी भी कुछ क्षेत्रों पर अपना कब्जा जारी रखना चाहता है जो कभी उनके अधीन हुआ करते थे और ऐसा ही एक क्षेत्र चागोस द्वीप समूह है, जिसे ब्रिटेन ने मॉरिशस की स्वतंत्रता के बदले में हासिल किया था।
इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने मॉरीशस के पक्ष में भारी मतदान किया और ब्रिटेन को मॉरीशस के द्वीपों पर नियंत्रण वापस लेने का निर्देश दिया। परंतु यूके ने नियंत्रण छोड़ने का कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है।
ऐसे समय में, बीबीसी ने यूके सरकार की आलोचना करने से इन्कार कर दिया है। अब यहां ये ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि कश्मीर से अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के भारत के कदम पर फेक न्यूज़ फैलाने वाला बीबीसी अब ब्रिटेन की आलोचना करने से कतरा रहा है।
ब्रिटेन ने मॉरीशस की संप्रभुता के दावे को मान्यता देने से इंकार कर दिया, जबकि मॉरीशस का दावा है कि उसे स्वतंत्रता के लिए 1965 में हिंद महासागर में छोटे द्वीपसमूह का व्यापार करने के लिए मजबूर किया गया था। इसके साथ ही चागोस द्वीप समूह के 1500 लोगों को जबरन किसी और जगह पर बसाने को लेकर यह समझौता हुआ था।
अमेरिका ने यहां अपना मिलिट्री बेस बना लिया था। वर्तमान में ब्रिटिश सरकार कहती है कि चागोस द्वीप समूह हिंद महासागर में स्थिति ब्रिटेन की प्रादेशिक भूमि है। पिछले वर्ष मॉरीशस ने बताया कि विवश होकर उन्होंने अपनी प्रादेशिक भूमि यानी चागोस द्वीप समूह छोड़ा। इस बात ने यूएन के 1514वें संकल्प का उल्लंघन किया है। इस संकल्प के अनुसार स्वतंत्र होने के पहले अपनिवेश टूटने पर पाबंदी है।
अब इस पर आईसीजे ने भी अपना फैसला सुना दिया हैै। आइसीजे ने अपने फैसले में कहा है कि द्वीप समूह को कानूनी तरीके से मॉरिशस से अलग नहीं किया गया था। बल्कि मॉरिशस से उसे अलग करने की कार्रवाई गैर-कानूनी थी। ब्रिटेन के शासन वाले इस द्वीप समूह पर अमेरिका का डिएगो ग्रैसिया सैन्य अड्डा है।
ब्रिटेन इस द्वीप को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहता है। ब्रिटेन की विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय (एफसीओ) ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनके पास द्वीपों पर आधिपत्य का हरसंभव अधिकार है- जिनमें से एक द्वीप डिएगो गार्सिया, अमेरिकी सैन्य एयरबेस भी है। इसको लेकर विश्व के अधिकतर देशों ने मॉरीशस का ही समर्थन किया है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इसे लेकर वोटिंग हुई जिसमें भारत समेत 116 देशों ने मॉरीशस का समर्थन किया जबकि अमेरिका, इज़रायल, ऑस्ट्रेलिया और मालदीव ने यूके का समर्थन किया। जबकि फ्रांस और जर्मनी समेत 55 देश इस वोटिंग में अनुपस्थित रहे। ब्रिटेन को सलाह दी गई कि वह “जितनी जल्दी हो सके” द्वीपों को छोड़ दे।
ब्रिटेन ने अमेरिका के लिए एक सैन्य अड्डा बनाने के लिए 1968 और 1974 के बीच मॉरीशस और सेशेल्स पर कब्जा किया और जबरन हजारों चैगोसियंस को हटा दिया। 1966 में, एक विदेशी कार्यालय ज्ञापन ने द्वीप के निवासियों को वर्णित किया, जिन्हें चैगोसियन के रूप में जाना जाता है, “कुछ कुछ टार्ज़न और मैन फ्राइडे, जिनके मूल अस्पष्ट हैं”। अफगानिस्तान और इराक पर बमबारी के लिए अमेरिकी विमानों को इसी एयरबेस से भेजा जाता है।
आतंकवादियों से पूछताछ करने के लिए सीआईए द्वारा कथित तौर पर “ब्लैक साइट” के रूप में भी इस सुविधा का उपयोग किया गया था। 2016 में, आधार के लिए पट्टे को 2036 तक बढ़ाया गया था। यूके को पट्टे का विस्तार करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि इसे द्वीपों को छोड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्देशित किया गया है।
अब बीबीसी का कहना है कि समय सीमा “बाध्यकारी नहीं है, इसलिए कोई प्रतिबंध या तत्काल सजा का पालन नहीं होगा – लेकिन यह बदल सकता है”।
परंतु यही बीबीसी कश्मीर मुद्दे पर मगरमच्छ वाले आंसू बहा रहा था क्योंकि यह सीधे पाकिस्तान का अनुमोदन करता था। लेकिन इसने आईसीजे के फैसले को खारिज करने के लिए अपनी ही सरकार को फटकार लगाने से इनकार कर दिया। यह यूके के ‘औपनिवेशिक वर्चस्व’ को बढ़ावा देता है और यहां तक कि जब भी बीबीसी की सक्रियता की यहां सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वे हमेशा उस मोर्चे पर असफल ही सिद्ध हुआ है।