नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ने सायरस मिस्त्री को दोबारा टाटा सन्स का चेयरमैन बनाने का फैसला सुनाया है। ट्रिब्यूनल ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि टाटा सन्स के चेयरमैन पद से मिस्त्री को हटाना गैरकानूनी था। बता दें कि नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल कंपनियों से संबन्धित विवादों को हल करने के लिए स्थापित किया गया है, जिसने अब यह फैसला सुनाया है कि चेयरमैन पर पर एन चंद्रशेखरन की नियुक्ति गैर-कानूनी थी।
बता दें कि मिस्त्री को अक्टूबर 2016 में, उनकी नियुक्ति के लगभग चार सालों बाद, उनके ‘बुरे प्रदर्शन’ की वजह से निकाल दिया गया था। अब कोर्ट ने कहा है कि उनको इस तरह हटाना पूरी तरह गैर-कानूनी था और चार हफ्तों के अंदर-अंदर उन्हें वापस उनका पद मिल जाना चाहिए। मिस्त्री की ओर से इस बाबत बयान में कहा गया है कि “आज का निर्णय मेरी निजी जीत नहीं है। यह अच्छे शासन और माइनॉरिटी शेयरहोल्डर राइट्स से जुड़े सिद्धांतों की विजय है”।
उधर टाटा संस ने इस फैसले के बाद बुधवार को कहा है कि, “यह स्पष्ट नहीं है कि कैसे एनसीएलएटी ने उसके और उसकी सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरधारकों की वैध तरीके से बुलाई गई शेयरधारक बैठक में लिए गए फैसले को पलट दिया”। बता दें कि मिस्त्री और रतन टाटा के बीच कुछ कारणों की वजह से तनाव बढ़ गया था, जिसके बाद मिस्त्री को उनके पद से हटा दिया गया था।
वर्ष 1990 से, जब से रतन टाटा टाटा ग्रुप का नेतृत्व कर रहे हैं, टाटा समूह 2जी स्कैम, एयर एशिया स्कैम, विस्तारा समझौता और जैगुआर समझौते जैसी विवादित डील्स की वजह से खबरों में रह चुका है। अभी कुछ दिनों पहले ही यह खबर भी आई थी कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने टाटा समूह के छह ट्रस्टों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर दिया है। टाटा के इन छह ट्रस्टों में जमशेदजी टाटा ट्रस्ट, आरडी टाटा ट्रस्ट, टाटा एजुकेशन ट्रस्ट, टाटा सोशल वेलफेयर ट्रस्ट, सार्वजनिक सेवा ट्रस्ट और नवाजभाई रतन टाटा ट्रस्ट शामिल थे।
टाटा समूह की वेबसाइट के अनुसार, टाटा SONS का 66 प्रतिशत उन ट्रस्टों के पास है जो भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति और आजीविका की पहल को बढ़ावा देते हैं’। परन्तु नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पाया था कि इसके तहत अनुमोदन देने के लिए न सिर्फ नियमों का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि प्रतिबंधित गतिविधियों में शामिल ट्रस्टों को भी कर छूट का लाभ मिल रहा है। इन संगठनों ने 3139 करोड़ रुपये का निवेश प्रतिबंधित विकल्पों में किया, ताकि मुनाफा कमाया जा सके। इस प्रक्रिया में सरकार को 1066.95 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इन ट्रस्टों ने यह रकम प्रतिबंधित निवेश क्षेत्रों में निवेश की जो कि आयकर अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) के अनुकूल नहीं है। टाटा ट्रस्ट्स को यह पता था कि मुनाफे से निवेश करना प्रतिबंधित है लेकिन फिर भी उन्होंने यह किया।
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार इस बात का खुलासा करने में साइरस मिस्त्री(18%) का भी हाथ बताया गया था,जिनका परिवार टाटा ट्रस्ट(66%) के बाद टाटा SONS में सबसे अधिक हिस्सेदारी रखता है। उन्होंने यह साबित करने के लिए I-T विभाग को दस्तावेज भी उपलब्ध कराये कि टाटा अवैध तरीकों से कर की बचत कर रहे हैं। मिस्त्री 2012 से 2016 तक टाटा समूह के अध्यक्ष थे। उनसे पहले टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा (1991-2012) थे, जिनके साथ मिस्त्री के सार्वजनिक रूप से विवाद के बाद समूह से बाहर कर दिया गया था।
टाटा देश के सबसे भरोसेमंद संस्थानों में से एक है। समूह अक्सर अपने आप को ‘human face of industry’ के रूप में को ब्रांड करता है लेकिन भ्रष्टाचार ,टैक्स चोरी के प्रत्येक्ष सबूत सामने आने, और अब मिस्त्री के खिलाफ यह मामला हारने के बाद रतन टाटा की सार्वजनिक छवि पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की पूरी आशंका है।

































