भारत और चीन के बीच शुरू से ही बॉर्डर विवाद रहा है। चीन कई दशकों से भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख पर अपना अधिकार जमाता आया है और उन्हें चीन का हिस्सा बताता आया है। इन क्षेत्रों में अगर किसी विदेशी नेता या केंद्रीय नेता का दौरा होता है, और हमें तुरंत चीन की ओर से प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। अब भारत ने चीन की हेकड़ी निकालने का एक नया तरीका खोज निकाला है और वह है इन तथाकथित विवादित क्षेत्रों में विदेशी निवेश करवाना।
दरअसल, हाल ही में सम्पन्न हुई 2+2 वार्ता के तहत भारत और जापान की बातचीत में यह तय किया गया कि जापान भारत के नॉर्थ ईस्ट में कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स में बड़े पैमाने पर निवेश करेगा और जापान अरुणाचल प्रदेश में भी निवेश करने का विचार कर रहा है। आपको बता दें कि इससे पहले भारत और रूस की सरकारें मिलकर लद्दाख में सोलर प्रोजेक्ट्स में निवेश करने की बात कह चुके हैं। यानि अन्य देशों से तथाकथित विवादित क्षेत्रों में निवेश करवाके भारत चीन को कड़ा संदेश देना चाहता है कि अब उसका कोई पैंतरा नहीं चलने वाला है।
भारत और जापान के विदेश और रक्षा मंत्रियों की मुलाक़ात के बाद मीडिया के सवालों के जवाब में जापान के विदेश मंत्रालय के डिप्टी सेक्रेटरी आत्शुशी कैफू ने बताया कि भारत में और खासकर कि नॉर्थ ईस्ट में निवेश करना उनके लिए भारत महत्वपूर्ण है। जब उनसे यह पूछा गया कि वे क्या वे अरुणाचल प्रदेश में भी निवेश करेंगे, तो उन्होंने कहा कि जापान उसपर अभी विचार कर रहा है। भारत और जापान के रिश्ते रणनीतिक हैं और ऐसे में भविष्य में यदि जापान अरुणाचल प्रदेश में निवेश करने का फैसला लेता है, तो हमें इसपर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नॉर्थ ईस्ट के बाकी इलाकों में जापान पहले भी इन्वेस्ट करता आया है। जापान नॉर्थ यहां 13 हज़ार करोड़ रुपयों का निवेश करने जा रहा है। इसके साथ ही जापान त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड, सिक्किम जैसे राज्यों में सिंचाई और सड़क निर्माण जैसे प्रोजेक्ट्स पर भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है। अब दोनों सरकारें अधिक सहयोग के साथ नॉर्थ ईस्ट का विकास करने की ओर ध्यान देंगी।
इसके अलावा लद्दाख क्षेत्र की बात करें तो जबसे भारत ने इसे UT का दर्जा दिया है, तभी से इस क्षेत्र को लेकर चीन की चिंताएं बढ़ी हुई हैं। हालांकि, भारत अपने दोस्त रूस के साथ मिलकर वहां भी चीन का सिरदर्द बढ़ाने की योजना तैयार कर चुका है। दरअसल, इसी वर्ष सितंबर में एक रूसी कंपनी ने लद्दाख के सोलर प्रोजेक्ट्स में निवेश करने की रूचि दिखाई थी, और उसने ‘इन्वेस्ट इंडिया’ संस्था को अपनी योजना के बारे में अवगत भी कराया था। इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, रूसी इन्वेस्टर्स में भारत को लेकर कफी उत्साह है और कई रूसी निवेशक ओला और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों में निवेश कर अरबों रुपये कमा चुके हैं। इसीलिए इस बात की आशंका काफी ज़्यादा है कि रूसी कंपनी जल्द ही लद्दाख में भी अपना निवेश कर दें।
भारत और रूस या भारत और जापान के रिश्ते आर्थिक सहयोग के साथ-साथ रणनीतिक सहयोग की बुनियाद पर भी टिके हैं। इसलिए जब भारत ने कश्मीर को लेकर इस वर्ष अगस्त में बड़ा फैसला लिया था तो रूस पी-5 देशों में पहला ऐसे देश था जिसने भारत के इस कदम का समर्थन किया था। इसके अलावा जब वर्ष 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद खड़ा हुआ था, तो जापान उन चुनिन्दा देशों में से एक था जिसने खुलकर भारत का समर्थन किया था और चीन की आलोचना की थी। बता दें कि रूस और जापान के रिश्ते चीन के साथ तनावपूर्ण ही रहते हैं और इसलिए चीन के खिलाफ अगर ये देश भारत का समर्थन करते हैं, तो किसी को कोई हैरानी या परेशानी नहीं होनी चाहिए, सिवाय चीन के।
इसी महीने जापान के पीएम शिज़ो आबे भारत भी आने वाले हैं जहां वे पीएम मोदी के साथ मिलकर नॉर्थ ईस्ट के राज्य असम का दौरा करेंगे, जो कि रणनीति दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भारत की नीति साफ है कि वह बिना कोई सैन्य या राजनीतिक आक्रामकता दिखाये चीन को कड़ी भाषा में यह संदेश देना चाहता है कि अब भारत किसी भी सूरत में भारत के किसी भी इलाके में चीन की आक्रामकता को स्वीकार नहीं करेगा और चीन के खिलाफ इस लड़ाई में भारत को जापान और रूस जैसे देशों का रणनीतिक और कूटनीतिक समर्थन हासिल है।