‘डरा रहा है भविष्य बनकर वो जो खुद अतीत में है’, ये पंक्तियां बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो नीतीश कुमार पर बिलकुल सटीक बैठती हैं। नीतीश कुमार ने सत्ता और पार्टी पद के लिए जो किया है वही आज उनके साथ हो रहा है। आप सोच रहे होंगे ऐसा क्या हुआ है? इसे समझने के लिए हमें थोडा पीछे जाना होगा। सत्ता और पार्टी पद के लिए नीतीश कुमार ने उसे ही धोखा दिया था जिन्होंने उन्हें भारतीय राजनीति के दांव-पेंच सिखाये और ये शख्स और कोई नहीं बल्कि जॉर्ज फर्नांडिस हैं अब ऐसा ही कुछ आज नीतीश कुमार के साथ हो रहा है। जॉर्ज फर्नांडिस वही व्यक्ति हैं जिन्होंने नीतीश कुमार के साथ वर्ष 1994 जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय लोकदल बनाई और इसका नाम बदलकर समता पार्टी भी रखा गया। इस पार्टी को बनाने का मकसद बिहार की राजनीति में बीस साल से राज कर रहे लालू यादव को सत्ता से बेदखल करना था। उस समय दोनों की दोस्ती के किससे खूब मशहूर थे परन्तु नीतीश कुमार के मन में तो कुछ और ही चल रहा था और नीतीश कुमार ने 2007 में अपना असली रंग भी दिखा दिया।
वैसे राजनीति में सत्ता और पद के लिए जोड़-तोड़ चलता रहता है और कई अवसरों पर तो विश्वासघात भी देखने को मिलता रहा है। परन्तु कुछ मामले ऐसे हैं जो हमेशा भारतीय राजनीति के इतिहास में काले अक्षरों में लिखे जा चुके हैं। जनता परिवार के इतिहास पर नजर डालें तो इनके नेता हमेशा जनता के बीच से ही उठे हैं, परन्तु निजी स्वार्थ के चलते या कुछ मुद्दों पर एकराय न बनने के चलते ये आपस में टूटते रहे हैं। जनता परिवार एक दो बार नहीं बल्कि कई बार पहले भी टूट चुकी है। अब जिस तरह प्रशांत किशोर के तेवर इन दिनों दिखाई दे रहे हैं उससे लग रहा है जैसे अब या तो जनता दल यूनाइटेड के दो टुकड़े हो जायेंगे या फिर जैसे नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस को जेडीयू के अध्यक्ष पद से हटाया था कुछ ऐसा ही प्रशांत किशोर भी करें।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस के बीच सबकुछ ठीक होने के बाद ऐसा क्या हुआ था? दरअसल, जॉर्ज फर्नांडिस भारत के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में रक्षा मंत्री, संचारमंत्री, उद्योगमंत्री, रेलमंत्री आदि के रूप में कार्य कर चुके हैं। वो एक सोशलिस्ट थे और यूनियन के आंदोलनों से भी जुड़े थे। 1950 में श्रमिकों की आवाज बनना हो, या फिर 1961 तथा 1968 में मुंबई सिविक का चुनाव जीतकर मुम्बई महानगरपालिका के सदस्य बनकर लगातार निचले स्तर के मजदूरों एवं कर्मचारियों के लिए आवाज उठाना हो, या फिर 1974 में इंडिया रेलवे फेडरेशन का अध्यक्ष बनने के बाद भारतीय रेलवे के खिलाफ हड़ताल कर सत्ता में बैठे नेताओं को हिलाकर रख देना हो या फिर इंदिरा सरकार में आपातकाल का विरोध करना हो उन्होंने हमेशा आम जनता के लिए आवाज उठाई और काम किया है। इन्हीं कारणों से वो देश की राजनीति में एक बड़ा चेहरा बनकर उभरे थे। वहीं नीतीश कुमार ने जब 1974 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा तब हर वक्त जार्ज साहब ने उनका पूरा साथ दिया था। इसके साथ ही नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में लालू यादव की बदौलत भी चर्चा में थे। जब 1990 में लालू बिहार के मुख्यमंत्री बन गए और नीतीश ने उनका साथ दिया लेकिन लालू के साथ उनकी दोस्ती ज्यादा नहीं टिक सकी।
भ्रष्टाचार और लालू यादव के जंगल राज को बिहार की सत्ता से बेदखल करने के लिए जॉर्ज फर्नांडिस ने वर्ष 1994 नीतीश कुमार समेत कुल 14 सांसदों के साथ जनता दल से नाता तोड़कर जनता दल (जॉर्ज) बनाया जिसका नाम बाद में अक्टूबर 1994 में समता पार्टी रखा गया। परन्तु वर्ष 1995 में हुए बिहार के विधानसभा चुनाव में ये पार्टी केवल 7 सीटों पर ही सिमट गयी। इसके बाद ये पार्टी एनडीए के साथ जुड़ी और वो देश के रक्षा मंत्री बने। कहा जाता है कि ये जार्ज फर्नांडीज ही थे जिन्होंने एनडीए की एक छतरी के भीतर कई पार्टियों को एकजुट किया था।
नीतीश कुमार और जॉर्ज के बीच सबकुछ ठीक चल रहा था उनकी छाँव में नीतीश कुमार भारतीय राजनीति के दांव-पेंच सीख रहे थे और दोनों के बीच की दोस्ती को लेकर हर जगह चर्चा भी थी। वर्ष 2000 में भारतीय जनता पार्टी की मदद से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे वो भी केवल 8 दिनों के लिए परन्तु जॉर्ज के साथ के कारण ही वो भाजपा से अलग हुए और वर्ष 2003 में जनता दल यूनाइटेड का गठन किया था और इस पार्टी के अध्यक्ष बने जॉर्ज फर्नांडिस। परन्तु इस पार्टी में चलती निक्कू की थी परन्तु ये जॉर्ज फर्नांडिस की भारतीय राजनीति में अच्छी पकड़ ही थी जिस वजह से वर्ष 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बन सके थे। नीतीश कुमार की जिह्वा पर सत्ता का स्वाद लग चुका था और अब वो स्वयं पार्टी की कमान अपने हाथ में लेना चाहते थे और बिहार की बागडोर संभालने के लिए जॉर्ज के दबाव में नहीं रहना चाहते थे। जॉर्ज के पीठ पीछे नीतीश कुमार इस योजना पर प्रयासरत थे और धीरे-धीरे उनका स्वार्थ सभी के सामने आने लगा था। वर्ष 2007 में जॉर्ज फर्नांडीज को बड़ा झटका लगा जब नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया और शरद यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया।
जैसे जैसे अटल बिहार वाजपेयी सक्रिय राजनीति से दूर होने लगे वैसे वैसे उनके निकटतम सहयोगी जॉर्ज भी हाशिए पर जाने लगे। और वर्ष 2009 में निक्कू ने जॉर्ज को एक और बड़ा झटका दिया और जिस नालंदा की सीट से वे सांसद थे उन्हें उसी नालंदा से टिकट तक नहीं दिया गया। इस बड़े धोखे से जॉर्ज फर्नांडीज बड़ा धक्का लगा। इसके बाद जिस पार्टी को उन्होंने बनाया था उसी पार्टी के खिलाफ मुजफ्फरपुर से निर्दलीय चुनाव लड़े और हार गए। एक के बाद एक झटके के बाद वो मानसिक अवसाद से घिरने लगे और ये दौर था जब वो राजनीति से दूर होने लगे लेकिन समय के साथ उनकी हालत बिगडती गयी। हर मंच पर जॉर्ज फर्नांडीज की याद में आंसू बहाते दिखाई देने वाले निक्कू और उनके नेताओं के पास जॉर्ज फर्नांडीज की हालत के बारे में जानने का थोड़ा समय भी नहीं था। वास्तव में नीतीश कुमार ने जॉर्ज की ढलती उम्र का फायदा उठाया और उन्हें बड़ा धोखा दिया था और कभी उन्हें वो सम्मान भी नहीं दिया।
समय के साथ जेडीयू में नीतीश कुमार ने ऐसी पकड़ बनाई कि पार्टी के लिए जो वो कहते और करते वही अन्य सदस्यों के लिए आदेश बन जाता। जो भी उनके खिलाफ जाता नीतीश कुमार उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने में जरा भी संकोच नहीं करते। इसका सबसे बड़ा उदाहरण शरद यादव हैं जो 13 सालों तक नीतीश के लिए हमेशा ढाल की तरह खड़े रहे, चाहे लालू सत्ता का सिंहासन छीनने की बात रही हो या फिर मोदी के नाम पर एनडीए से अलग राह चलने की। परन्तु जब शरद यादव ने नीतीश के खिलाफ बगावत का झंडा उठाया तो नीतीश कुमार ने उन्हें दरकिनार कर दिया। कभी पार्टी में नंबर एक की हैसियत रखने वाले शरद यादव को जेडीयू से ही बेदखल होना पड़ा। इन दिनों प्रशांत किशोर के पार्टी से हटकर बयान देना और उसपर नीतीश कुमार की ठंडी प्रतिक्रिया कई सवाल खड़े कर रही है। शायद नीतीश कुमार को ये आभास होने लगा है कि उनकी कुर्सी और पार्टी प्रशांत किशोर के इशारे से हिल सकती है।
वो कहते हैं न कि ‘कर्म के फल से कोई भी बच नहीं सकता’, और शायद अब ऐसा ही कुछ नीतीश कुमार के साथ हो रहा है। बिहार के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य और नजर डालें तो ऐसा लगता है कि जो नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडीज के साथ जो किया वही अब प्रशांत किशोर उनके साथ कर रहे हैं। बिहार के बक्सर ज़िले में जन्मे प्रशांत किशोर पांडेय चुनावी राजनीति में अपनी महारत दिखा चुके हैं और अब इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि बिहार की राजनीति में वो खुद को एक मजबूत नेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं वो भी जेडीयू के सहारे।
पहले नीतीश कुमार प्रशांत किशोर को अपनी पार्टी का उत्तराधिकारी चुनते हैं, फिर पार्टी का उपाध्यक्ष बनाते हैं और अब प्रशांत किशोर खुलेआम उनकी पार्टी लाइन तक तय कर रहे हैं। नीतीश कुमार की ढलती उम्र और बिहार में उनके लिए उत्पन्न आक्रोश का फायदा उठाकर वो पार्टी की कमान भी अपने हाथों में लेने के लिए प्रयासरत नजर आ रहे हैं। आप सोच रहे होंगे हम ऐसा किस आधार पर कह रहे हैं? कभी किसी राजनीतिक मुद्दे पर खुलकर अपने विचार नहीं रखने वाले जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर अब खुलेआम भाजपा की सहयोगी पार्टी होने के बावजूद भाजपा विरोधी ताकतों को एकजुट कर रहे हैं। इसके साथ ही वो जेडीयू को एनारसी और नागरिकता संशोधन कानून पर क्या रुख अपनाना चाहिए उसकी सलाह दे रहे हैं। कल तक नागरिकता संशोधन कानून पर दोनों सदनों में मत में वोट देने वाली जेडीयू प्रशांत किशोर की नाराजगी के बाद अपने स्टैंड में बदलाव कर लेती है। जो नीतीश कुमार कल तक पार्टी में केवल अपनी चलाते थे आज झुक से गये हैं। दरअसल, नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने पार्टी के खिलाफ बागी तेवर बरकरार रखा जिसके बाद ये उम्मीद की जा रही थी कि नीतीश कुमार इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे और उन्हें शरद यादव की तरह पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाएंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ।
Disappointed to see JDU supporting #CAB that discriminates right of citizenship on the basis of religion.
It's incongruous with the party's constitution that carries the word secular thrice on the very first page and the leadership that is supposedly guided by Gandhian ideals.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 9, 2019
Thanks @rahulgandhi for joining citizens’ movement against #CAA_NRC. But as you know beyond public protests we also need states to say NO to #NRC to stop it.
We hope you will impress upon the CP to OFFICIALLY announce that there will be #No_NRC in the #Congress ruled states. 🙏🏼
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 24, 2019
https://twitter.com/PrashantKishor/status/1209330363249463296
इसके विपरीत नीतीश कुमार ने बयान दिया कि वो बिहार में एनारसी को लागू नहीं करेंगे। इसके बाद प्रशांत किशोर का गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से एकजुट होने की बात कहना और फिर राहुल गाँधी को धन्यवाद करना कहीं न कहीं प्रशांत किशोर की फ्रंटफूट से भारतीय राजनीति में खेलने की मंशा को जाहिर कर रहा है। फिर भी नीतीश कुमार इसपर कुछ नहीं कह रहे ऊपर से उनकी चुप्पी प्रशांत किशोर के विचारों का समर्थन ही जाहिर कर रहा है। नीतीश कुमार भी समझ गये हैं कि अब उनकी उम्र ढल रही है और पार्टी के अंदर प्रशांत किशोर की जड़ें मजबूत हो रही हैं शायद यही वजह है कि वो कोई रिस्क लेने से डर रहे हैं। यदि आने वाले समय में प्रशांत किशोर नीतीश कुमार को दरकिनार कर खुद पार्टी की कमान संभाल लेते हैं तो किसी को हैरानी नहीं होगी।
खैर, भारतीय राजनीति में सत्ता और पद के लिए पीठ में छुरा घोंपने की कई कहानियां है, जिस तरह से जॉर्ज फर्नांडिस की पीठ में नीतीश कुमार ने छुरा घोंपा था वैसे ही चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एन टी रामा राव की पीठ में छुरा घोंपा था। एन टी रामा राव का लक्ष्मी पार्वती से दूसरी शादी करना और लक्ष्मी पार्वती का परिवार के साथ पार्टी में बढ़ता वर्चस्व उनके परिवार को नहीं भाया। चंद्रबाबू नायडू ने उनके परिवार के इस बगावत का फायदा उठाया। चंद्रबाबू नायडू ने पूरे परिवार और पार्टी को एन टी रामा राव के खिलाफ कर दिया और अब सत्ता उसी के हाथ में जानी थी जो पार्टी का सबसे बड़ा नेता होगा और ये नेता थे चंद्रबाबू नायडू। पार्टी की बागडोर चंद्रबाबू नायडू के हाथों में आ गयी उस समय एन टी रामा राव ने अपने परिवार से संबंध तोड़ते हुए कहा भी था कि चंद्रबाबू नायडू ने उनकी ‘पीठ में छुरा घोंपा है वो धोखेबाज‘ और ‘औरंगजेब’ है। सिद्धारमैया पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की छत्रछाया में बड़े हुए हैं और उनसे राजनीतिक दांवपेंच सीखे परन्तु उन्होंने भी सत्ता के लिए एचडी देवेगौड़ा को धोखा दिया था। सिद्धारमैया खुद कभी जेडीएस के ही नेता हुआ करते थे। सिद्धारमैया और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा का एक लंबा इतिहास है। अब यही राजनीति एक बार फिर से बिहार की राजनीति में भी देखने को मिल रही है जो अब भारतीय राजनीति में स्वार्थ की राजनीति का बड़ा हिस्सा बन चुका है।