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आखिर क्यों कुछ यूनिवर्सिटीज के छात्र कर रहे हैं नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन तो कुछ हैं खिलाफ

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
16 December 2019
in मत
नागरिकता संशोधन

PC: Scroll.in

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दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है। इसका प्रयोग महत्वाकांक्षी विचारधारावाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं। इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया था। हरिशंकर परसाई का यह वाक्य आज भी प्रासंगिक है और ऐसा लगता है कि यह नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे छात्राओं के रूप में स्पष्ट दिखाई भी दे रहा है। जब से सरकार ने इसे संसद के पटल पर रखा तब से ही विरोध शुरू हो चुका है और यह अब हिंसक स्वरूप ले चुका है।

इस विरोध प्रदर्शन के दौरान एक बात स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि इस कानून के विरोध में ऐसे कुछ विश्वविद्यालय के छात्र उतर आये हैं जो अपने आप को लिबरल कहते हैं या फिर अपने आप को मानवाधिकार का चैम्पियन मानते हैं। वहीं जिन विश्वविद्यालय में छात्र अपनी पढ़ाई पर ध्यान देते हैं और देश के लिए कुछ करना चाहते हैं वे पूरी तरह से समर्थन में दिखे है। उदाहरण के लिए Jamia Millia Islamia (JMI) University, Jawaharlal Nehru University, Patna University and AMU जैसे यूनिवर्सिटीज में नागरिकता संशोधन कानून का भारी विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है, Jadavpur University and IIT Mumbai भी इनके समर्थन में उतरी हैं। वहीं ठीक इसके उलट आईआईटी-आईआईएम और लॉ यूनिवर्सिटीज के हजारों छात्रों ने पत्र लिखकर नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया है। इन छात्रों का कहना है कि इस कानून से भारत के किसी भी नागरिक के अधिकार का हनन नहीं होता है, इसलिए इस विधेयक का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। छात्रों का कहना है कि इस विधेयक के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा है और लोगों को विरोध करने से पहले विधेयक को एक बार पढ़ना चाहिए। खुद देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने इस बात का आश्वासन दिया है कि जो देश के नागरिक हैं उन्हें किसी बात की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही दोनों ने ही इस बात पर जोर डाला है कि किसी भी भ्रामक खबरों में न पड़े।  

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अगर गौर करें तो विरोध करने वालों का कोई स्पष्ट मत नहीं है कि वह विरोध किसका कर रहे हैं क्योंकि इस कानून में कुछ भी ऐसा नहीं है जो देश के किसी भी नागरिक को चाहे वो किसी भी समुदाय से हो, उसकी नागरिकता को लेकर असमंजस की स्थिति में डाले। हैरानी की बात तो यह है कि इस कानून में कहीं भी मुस्लिम शब्द का ही प्रयोग ही नहीं किया गया तो यह मुस्लिम विरोधी कैसे हो गया? यह संशोधन कानून कहता है कि पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय का कोई भी व्यक्ति अगर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आया है तो उसे तुरंत ही भारतीय नागरिकता दी जाएगी। अगर कोई इस तिथि के बाद आता है तो उसे अब 11 वर्ष की बजाय 5 वर्ष तक भारत में रहने के बाद ही नागरिकता दे दी जाएगी। यह कानून ऐसा नहीं कहता कि कोई मुस्लिम भारत की नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर सकता। कानूनी तौर से कोई भी भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है। उदाहरण के लिए अदनान सामी को ही देख लीजिये। सोशल मीडिया के युग में लोग बिना पढ़े किसी बात का यकीन कर लेते हैं और भड़क जाते हैं। इससे राष्ट्रीय शांति को खतरा पहुंचता है। लोगों को किसी भी मुद्दे पर राय बनाने के लिए दूसरे की बात सुनने की बजाय उसे पढ़कर और उसकी गहराई में जाकर अपनी राय बनानी चाहिए।

विरोध प्रदर्शन करने वाले विश्वविद्यालय को देखें तो यह वही विश्वविद्यालय हैं जहां से अक्सर सरकार के सभी मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन की खबर आती रहती है। चाहे वो तीन तलाक का मुद्दा हो या आर्टिकल 370 को कश्मीर से हटाया जाना या फिर एनारसी का ही मुद्दा क्यों न हो, ऐसे में ये सवला उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है कि देश के बाकी छात्रों को भारत सरकार द्वारा लिए गये कुछ निर्णयों से कोई परेशानी नहीं होती परन्तु अपने आप को लिबरल और बुद्धिजीवी कहने वाले कुछ विश्वविद्यालयों के छात्रों को सभी मुद्दों पर अधिक परेशानी होती है। इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि छात्रों का राजनीतिक गठजोड़ हैं।

यह सभी छात्र उच्च पदों पर बैठे और घर से सोशल मीडिया पर क्रांति की पुकार लगाते बुद्धिजीवियों और नेताओं के राजनीतिक उपकरण या political tool हैं जिन्हें मौका पड़ने पर अपना एजेंडा फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। विरोध प्रदर्शन करने वाले, पत्थरबाजी करने वाले, नारे लगाने वाले और सार्वजनिक संपत्ति में को क्षति पहुँचाने वाले, इन सभी में से 80 प्रतिशत को तो यह भी नहीं पता होता है कि आखिर वे यह सब कर क्यों रहे है और इनके प्रदर्शन का आधार क्या है ये अभी तक अपने आप में सवाल बना हुआ है। बिना जांच-पड़ताल के ही विरोध-प्रदर्शन में कूद पड़ना इनकी बुद्धिमत्ता का ही परिचायक है। वहीं जो छात्र स्पष्ट रूप से समर्थन में दिख रहे है उनका स्टांस दिखाता है कि उन्होंने कानून को गहराई में जा कर पढ़ा है और सोशल मीडिया पर फैलाये जा रहे भ्रामक प्रचार में नहीं आ रहे है और उन्हें भारत सरकार पर भरोसा है।

एक तरफ लिबरल समर्थन वाले यूनिवर्सिटी हैं जो आये दिन अपनी देश विरोधी गतिविधियों और देश हित फैसलों का विरोध करने का एक मौका नहीं छोड़ते, और दूसरी तरफ USEFUL संस्थान हैं जो शिक्षा के साथ साथ हर उस निर्णय का समर्थन करते हैं जो देश हित में है। चाहे वो अनुच्छेद 370 का समर्थन करना हो या सेना द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक हो या देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वालों के खिलाफ कार्रवाई ही क्यों न हो..!! हर यूनिवर्सिटी में छात्र पढ़ते हैं परन्तु कुछ के विचारों देश हित हैं तो कुछ के अपने ही देश की सम्पत्ति को क्षति पहुँचाने से भी न झिझकना। अंतर आपको भी दिखाई दे रहा है, वास्तव में अगर इन कुछ यूनिवर्सिटी के छात्रों का पोलिटिकल टूल के तौर पर इस्तेमाल होना बंद हो जाये या ये समझ जाएँ कि इससे उनका कोई हित नहीं होने वाला तो शायद छात्रों के बीच का ये अंतर भी खत्म हो जाता और देश में कुछ राजनीतिक पार्टियों का एजेंडा धरा का धरा रह जाता।

  

Tags: जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटीजेएनयू
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